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भारतीय क्रिकेट के लाजवाब हरफनमौला क्रिकेटर सलीम दुर्रानी जब मैदान में दर्शकों की मांग पर मारते थे छक्का
विवेक शुक्ला
भारतीय क्रिकेट के अपने दौर के लाजवाब हरफनमौला क्रिकेटर सलीम दुर्रानी जब मैदान में होते थे, तो कोई भी लम्हा नीरस नहीं होता था। सलीम दुर्रानी के लिए मशहूर था कि वे दर्शकों की मांग पर छक्का मारते थे। उन्हें भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल हरफनमौला क्रिकेटर माना जाता था। दर्शकों की छक्के की मांग को वे फौरन पूरा करते थे। उनका 88 साल की उम्र में निधन हो गया है। वे राजधानी में सालों राजस्थान की तरफ से रणजी ट्रॉफी के मैच खेलने के लिए करनैल सिंह स्टेडियम में आया करते थे।
राजस्थान की उस दौर की टीम में हनुमंत सिंह, लक्ष्मण सिंह तथा कैलाश गट्टानी जैसे स्टार प्लेयर होते थे। हनुमंत सिंह तो सेंट स्टीफंस कॉलेज के स्टुडेंट रहे थे। पर सलीम दुर्रानी की लोकप्रियता के सामने बाकी सब उन्नीस थे।
कहते हैं कि उनकी बेखौफ बल्लेबाजी को देखने के लिए भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान लाला अमरनाथ विशेष रूप से स्टेडियम में आया करते थे। लाला अमरनाथ करनैल सिंह स्टेडियम के पीछे पंचकुईया रोड में रेलवे के बंगले में रहा करते थे। उन्हें घर से वसंत लेन होते हुए स्टेडियम पहुंचने में पांच मिनट से अधिक नहीं लगते थे। सलीम दुर्रानी के सच में जलवे थे। उन्हें दर्शकों का भरपूर प्यार मिलता था। उन्हें देखने और उनके आटोग्राफ लेने वालों की लंबी लाइन होती थी।
वसंत कुंज में क्यों रहते थे सलीम दुर्रानी
सलीम दुर्रानी साल 2005 से 2007 के बीच लगातार दिल्ली आने लगे थे। वे वसंत कुंज के एक फ्लैट में रहा करते थे। दरअसल यहां पर उनके नाम पर एक क्रिकेट चैंपियनशिप आयोजित हुई थी। तब उन्हें आयोजकों ने दिल्ली बुलाकर वसंत कुंज में रहने को फ्लैट दे दिया था। वे उस दौरान एक प्रॉपर्टी डीलर के दफ़्तर में भी बैठने लगे.
सलीम दुर्रानी यारबाश किस्म के इंसान थे। उनकी शामें प्रेस क्लब में गुजरती। वहां पर उन्हें दोस्त घेरे रहते। वे कैरम भी खेलते और आमतौर पर जीत जाते। दोस्तों के साथ ड्रिंक्स कर रहे होते थे. रात को कोई उन्हें उनके घर छोड़ देता. उनके पास क्रिकेट की दुनिया से जुड़े तमाम किस्से थे।
पर वे राजधानी में क्रिकेट कोचिंग के किसी भी प्रस्ताव को मानने के लिए तैयार नहीं होते थे। यह बात समझ नहीं आई कि सलीम भाई ने कभी कोचिंग क्यों नहीं की। हालांकि उन्हें पैसे की जरूरत रहती थी. सलीम दुर्रानी फक्कड़ किस्म के मनुष्य थे। उनके पुराने दोस्तों को याद आ रहे हैं उनके साथ गुजारे यादगार लम्हें। वे प्रेस क्लब में हमेशा बिल देने की जिद्ध करते थे। फिर खुद ही अपने हाथ खींच लेते थे। बाद में बड़ी ही मासूमियत से कहते थे- 'अच्छा हुआ बिल आपने दे दिया। मेरे पास तो पैसे हैं ही नहीं।'
सलीम दुर्रानी की चरित्र कमल पर
सलीम दुर्रानी बेहतरीन बल्लेबाज के अलावा शानदार ऑफ स्पिनर गेंदबाज भी थे। वह पहले भारतीय क्रिकेटर थे जिन्हें अर्जुन पुरस्कार मिला था। यह 1960 की बात है। वे बहुत खूबसूरत इँसान थे। सलीम दुर्रानी ने अपना साल 1973 में आखिरी इंटरनेशनल मैच खेला था। इसके बाद उन्होंने क्रिकेट से रिटायरमेंट ले लिया और बॉलीवुड में एंट्री ली। बाबू राम इशारा ने उनको और परवीन बॉबी को लेकर 'चरित्र' नाम की फिल्म बनाई। फिल्म पिट गई थी। चरित्र को कमल पर आईएनए कॉलोनी में रहने वाले भास्कर राममूर्ति ने देखा था। उन्हें याद है कि चरित्र को लेकर दिल्ली में काफी उत्साह था। जब फिल्म रीलिग हुई थी तब सलीम दुर्रानी अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे। पर फिल्म में दम नहीं था। सलीम दुर्रानी एक बार प्रेस क्लब में बता रहे थे कि उन्हें चरित्र में काम करने के बदले में 18 हजार रुपया मिला था। उन्होंने उस पैसे के बड़े हिस्से से परवीन बॉबी को गिफ्ट खरीद कर दे दिए थे।