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धार
मध्य प्रदेश के धार जिले में तनाव बढ़ गया है। यहां पर भोज उत्सव समिति और हिंदू जागरण मंच ने भोजशाला में वसंत पंचमी पर सुबह 7.30 से रात 8.30 बजे तक कार्यक्रम करने का ऐलान किया है। भोज उत्सव समिति का कहना है कि अगर उन्हें पूरे दिन पूजा नहीं करने दी गई तो भोजशाला के बाहर ज्योति मंदिर में पूजा करेंगे। इस बीच मंदिर परिसर में हवन कुंड के लिए ईट और लेपन सामग्री रखवा दी गई। आयोजन समिति की इस तैयारी से प्रशासन की चिंता बढ़ गई है।
तय समय पर ही धार्मिक परंपराओं का पालन करने देंगे
इंदौर संभाग के आयुक्त (राजस्व) संजय दुबे ने कहा, ‘हम 12 फरवरी को भोजशाला परिसर में एएसआई के आदेश का पालन कराएंगे। हम इस आदेश के मुताबिक हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों को भोजशाला परिसर में तय समय पर ही उनकी धार्मिक परंपराओं का पालन करने देंगे।’ भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अफसर ने कहा, ‘भोजशाला केंद्र सरकार के अधीन एएसआई का संरक्षित स्मारक है। लिहाजा हमारी जिम्मेदारी है कि हम एएसआई के 12 फरवरी के मद्देनजर जारी सरकारी आदेश का पालन कराएं। हमारे पास इस आदेश का पालन कराने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।’
दोनों समुदाय मिलकर करते है लेकिन अब
ऑर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया एएसआई ने बसंत पंचमी पर दिन भर पूजा, आरती की इजाजत हिंदुओं को दी है। लेकिन बीच में दोपहर में एक से तीन बजे तक मुसलमान जुमे की नमाज अदा करेंगे। इस दो घंटे के दौरान भोजशाला के अंदर पूजा अर्चना नहीं होगी। जिस जगह हिंदू मुस्लिम दोनों की इतनी आस्था है क्या खास है उस जगह में।
बसंतपंचमी पर भोजशाला युद्ध शाला मे तब्दील क्यों?
दरअसल ये भोजशाला 11 वीं सदी में राजा भोज ने बनाई थी। उसके बाद मुस्लिम हुकमरान आए और कमाल मौला मस्जिद बन गई लेकिन हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम करते हुए यहां नमाज भी होती रही और वागदेवी यानि देवी सरस्वती की पूजा भी होती रही लेकिन हर साल बसंतपंचमी पर भोजशाला युद्ध शाला मे तब्दील हो जाती है। ग्यारहवी सदी में मालवा इलाके में राजा भोज का राज था। राजा भोज की आराध्य देवी मां सरस्वती थीं। कहा जाता है कि राजा भोज ने सरस्वती की स्फटिक की बनी मूर्ति स्थापित की थीं। उस जमाने में वागदेवी के इस मंदिर में चालीस दिन का विशाल बसंतोत्सव मनाया जाता था। मध्यकाल में मुस्लिम शासकों के वक्त ये सिलसिला टूटा। मगर करीब पैंसठ साल से धार की भोज उत्सव समिति ने ये सिलसिला कायम रखा है।
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