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पढ़ें, खुदकुशी करने वाले दलित छात्र रोहित का दिल को छूने वाला आखिरी खत
Special News Coverage
18 Jan 2016 1:00 PM GMT
हैदराबाद : हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पीएचडी के दलित छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी पर बवाल बढ़कर हैदराबाद से दिल्ली तक जा पहुंचा है। उनका सूइसाइड नोट सोशल मीडिया पर भी खूब शेयर किया जा रहा है। पढ़िए, उनके आखिरी खत का हिंदी अनुवाद...
गुड मॉर्निंग
आप जब यह खत पढ़ रहे होंगे तब मैं जा चुका होउंगा। मुझसे नाराज मत होना। मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी चिंता थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और मेरा बहुत ख्याल भी रखा। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। शिकायतें मुझे हमेशा खुद से ही रहीं। मैं अपनी आत्मा और शरीर के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस कर रहा हूं। मैं एक दानव बन गया हूं। मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था। कार्ल सगान की तरह सायेंस का लेखक, लेकिन अंत में मैं सिर्फ यही एक खत लिख पा रहा हूं।
मुझे विज्ञान, सितारों और प्रकृति से से प्यार था लेकिन फिर मैंने लोगों से भी प्यार किया, यह जाने बगैर कि वे कब का प्रकृति को तलाक दे चुके हैं। हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हो गई हैं। हमारा प्यार बनावटी है। हमारी मान्यताएं नकली हैं। हमारी मौलिकता बनावटी कला के जरिए टिकती है। अब आहत हुए बगैर प्यार करना बहुत मुश्किल हो गया है।
एक आदमी की कीमत उसकी तात्कालिक पहचान और संभावना तक सीमित कर दी गई है। आदमी सिर्फ एक वोट, एक नंबर, एक चीज बन कर रह गया है। कभी भी उस आदमी के दिमाग की परवाह नहीं की गई।
मैं पहली बार इस तरह का खत लिख रहा हूं। मैं पहली बार ही अपना आखिरी खत लिख रहा हूं। इसका कोई मतलब न निकले तो मुझे माफ करना।
हो सकता है कि दुनिया को समझने में मैं अबतक रहा गलत हूं। प्रेम, दर्द, जीवन और मौत को समझने में। ऐसी कोई हड़बड़ी भी नहीं थी, लेकिन मैं हमेशा जल्दी में था। मैं एक जीवन शुरू करने के लिए बेचैन था। इस पूरे समय में मेरे जैसे कुछ लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा। मेरा जन्म मेरी भयंकर दुर्घटना थी। मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया। बचपन में मुझे किसी का प्यार नहीं मिला।
अभी मैं आहत नहीं हूं। मैं दुखी नहीं हूं। मैं बस खाली हूं। मुझे अपनी भी चिंता नहीं है। यह बहुत दयनीय है और यही कारण है कि मैं ऐसा कर रहा हूं।
शायद लोग मुझे कायर कहेंगे। मेरे जाने के बाद शायद वे मुझे स्वार्थी और मूर्ख भी कहेंगे। लेकिन मुझे इसकी चिंता नहीं है कि लोग मेरे लिए क्या कहेंगे। मैं मरने के बाद की कहानियों और आत्माओं में यकीन नहीं करता।
मेरा यह खत पढ़ रहे लोग अगर कुछ कर सकते हैं तो उन्हें बता दूं कि मेरी 7 महीने की फेलोशिप मिलनी अभी तक बाकी है। कुल मिलाकर एक लाख 75 हजार रुपये। आप यह देख लें कि यह पैसा मेरे परिवार को मिल जाए। मुझे रामजी को 40 हजार रुपये देने थे। उन्होंने कभी पैसे मांगे नहीं, लेकिन फेलोशिप के पैसों में से रामजी को उनके पैसे दे दें।
मेरी अंतिम यात्रा शांति से निकले। आप ऐसे पेश आएं जैसे मैं आया था और चला गया। मेरे लिए आंसू न बहाए जाएं। आप जान जाएं कि मैं मर कर जीने से भी ज्यादा खुश हूं।
'परछाइयों से तारों तक'
उमा अन्ना, आपके कमरे में यह काम करने के लिए माफी चाहता हूं। एएसए परिवार के लोगों को निराश करने के लिए माफी चाहूंगा। आप सबने मुझे बहुत प्यार किया। सबको भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
अंतिम बार
जय भीम
मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया। मेरी खुदकुशी के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है। ऐसा करने के लिए मुझे किसी ने नहीं उकसाया। यह मेरा फैसला है और इसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं।
मेरे जाने के बाद दोस्तों और दुश्मनों को परेशान न किया जाए।
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