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पढ़िए, अब्बास ताबिश की ग़ज़ल : "इनसान था आख़िर तू मिरा रब तो नहीं था"
ताबिश' तिरा चेहरा मह-ए-नख़शब' तो नहीं था
12 Aug 2021 7:15 PM IST
नफ़रतों के हमको , फिर मंज़र नज़र आने लगे... - मुजाहिद चौधरी
नफ़रतों के हमको फिर मंज़र नज़र आने लगे । रंजो गम के फिर नए मौसम नज़र आने लगे ।। दाग़ दामन के छुपाकर सामने वो आ गए । कल के रहज़न अब हमें रहबर नज़र आने लगे ।। का़तिलों और जा़लिमों की सफ़ में था जिनका...
19 July 2021 8:04 AM IST