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पुराने पावर प्लांट्स की हो वैज्ञानिक तरीके से डीकमिशनिंग: एनजीटी
नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की चेन्नई स्थित दक्षिणी जोन की बेंच ने तमिलनाडु में राज्य सरकार के स्वामित्व वाले एक थर्मल पावर प्लांट को चलन से बाहर घोषित करने के दौरान उनमें मौजूद रहे खतरनाक तत्वों के समुचित निस्तारण के आदेश देने के आग्रह वाली एक याचिका पर नोटिस जारी किए हैं। इस पीठ में न्यायाधीश राम कृष्ण और एक्सपर्ट मेंबर साइबिल दासगुप्ता शामिल हैं।
यह नोटिस केंद्र सरकार, सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य सरकार के स्वामित्व वाली नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन इंडिया को 12 फरवरी 2021 को हुई सुनवाई के बाद जारी किए गए हैं। यह मामला तमिलनाडु के नेवेली में स्थित पावर प्लांट से जुड़ा है। इस प्लांट का संचालन वर्ष 1962 से किया जा रहा है।
याचिकाकर्ता धर्मेश शाह का कहना है कि थर्मल पावर प्लांट को वैज्ञानिक तरीके से चलन से बाहर घोषित किए जाने के लिए कोई प्रभावी दिशानिर्देश मौजूद नहीं हैं। इसकी वजह से ऐसे पावर प्लांट्स में इस्तेमाल होती आई फ्लाई ऐश तथा बचे हुए अन्य खतरनाक तत्वों का निस्तारण नहीं होने का खतरा है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि ऐसे हालात में परियोजना के मालिकान आमतौर पर पर्यावरण से ज्यादा आर्थिक पहलुओं को तरजीह देते हैं, नतीजतन ऐसे पावर प्लांट पर्यावरण के लिहाज से असुरक्षित हो जाते हैं।
उन्होंने केंद्र सरकार या राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से यह सुनिश्चित करने की मांग की है कि अप्रचलित हो चले कोयला आधारित बिजली घरों को चलन से बाहर किए जाने की प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माननीय वैज्ञानिक तरीकों से की जाए, ताकि पानी हवा और मिट्टी को दूषित होने से रोका जा सके। याचिकाकर्ता ने यह भी अपील की है कि अदालत सभी पक्षकारों को डीकमीशनिंग प्रक्रिया को रिकॉर्ड पर रखने के निर्देश दे।
एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है ''हम इस बात से सहमत हैं कि पर्यावरण को लेकर कुछ ऐसे सवाल उठ रहे हैं, जिनका संबंधित अधिकारियों से सलाह मशवरे के बाद वैज्ञानिक तरीके से समाधान किए जाने की जरूरत है। ऐसे कुछ दिशानिर्देशों का होना जरूरी है जिनका चलन से बाहर होने के इच्छुक थर्मल पावर प्लांट्स के प्रबंधन पालन करें।''
कोर्ट ने सभी पक्षों को 23 मार्च 2021 तक अपने जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं।
परिसंकटमय और अन्य अवशिष्ट (प्रबंध और सीमापार संचलन) नियम-2016 के तहत नुकसानदेह तत्वों के निस्तारण के लिए संबंधित संयंत्र का स्वामी जिम्मेदार होता है, लेकिन इसके लिए कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं की गई है। इसके अलावा डीकमीशनिंग टेंडर संबंधी दिशानिर्देशों यह प्लांट ऑपरेटर द्वारा जारी उत्तरदायित्व संबंधी नियमों में नुकसानदेह तत्वों के प्रबंधन के सिलसिले में कोई जिक्र नहीं किया गया है।
कोर्ट में दाखिल याचिका में मांग की गई है कि ऊर्जा संयंत्रों में रखें हानिकारक तत्वों के समुचित निस्तारण और संबंधित स्थल के उपचारात्मक खर्च को 'पोल्यूटर्स पे' सिद्धांत के मुताबिक एनएलसी इंडिया उठाएगा।
वर्ष 2020 में हेल्थ एनर्जी इनीशिएटिव इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह पाया गया है कि भारत में चलन से बाहर होने वाले पावर प्लांट्स स्थलों में रखे गए नुकसानदेह तत्व के निस्तारण के दौरान कोई भी उपचारात्मक या एहतियाती प्रोटोकॉल नहीं अपनाए जाते। रिपोर्ट में भटिंडा के गुरु नानक देव थर्मल पावर प्लांट से जुड़े मामले का जिक्र किया गया है, जिसके कबाड़ की नीलामी संबंधी प्रस्ताव में सिर्फ वित्तीय पहलुओं को ही शामिल किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक ई-नीलामी के अनेक दस्तावेज भी ऐसी ही कहानी कहते हैं।
विषैले रसायन जैसे कि एस्बेस्टस, आर्सेनिक, लेड और पाली क्लोरिनेटेड बिसफिनाइल्स का इस्तेमाल थर्मल पावर प्लांट में आमतौर पर होता है। इनकी वजह से घातक बीमारियां होती हैं। कोयला जलाने से उत्पन्न होने वाली रात एक अन्य जहरीला उप-उत्पाद है, जिसकी वजह से पानी और मिट्टी दूषित होती है और मानव स्वास्थ्य तथा पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचता है।