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- क्या कहता है कोविड-19...
क्या कहता है कोविड-19 पर किया गया आईसीएमआर द्वारा शोध ?
ICMR द्वारा कराए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि कोविड-19 के खिलाफ कोवैक्सीन प्राप्त कर चुके लोगों में एंटीबॉडीज 2 महीनों के बाद कम होने लगती हैं वहीं, कोविशील्ड का डोज लेने वालों में एंटीबॉडी का स्तर 3 महीनों बाद कम होने लगता है।
यही दोनो वेैक्सीन भारत में 99 प्रतिशत लोगो को लगी हैं, अब इस बात के क्या मायने है ? दरअसल लोगो के दिमाग में यह चीज स्टेबलिश करना है कि आगे हमे बूस्टर डोज लगवाने ही होंगे इसलिए धीरे धीरे माइंड मेकअप किया जा रहा है कि लोग नेक्स्ट जेनरेशन की कोविड वेक्सीन के लिए तैयार रहे।
दो दिन पहले ब्रिटेन ने भी 50 साल से अधिक आयु के लोगो को बूस्टर शॉट देने की मंजूरी दे दी है अमेरिका और इजरायल में तो बूस्टर लगना शुरू भी हो गयी है।
हालाँकि यह बात बहुत पहले ही सामने आ गयी थी कि वेैक्सीन लगने के कुछ दिनों बाद एंटीबॉडीज घटने लगते हैं.... आपको याद होगा कि कोवीशील्ड बनाने वाली संस्था सीरम इंस्टीट्यूट और उसे मंजूरी देने वाली ICMR और WHO पर लखनऊ के एक व्यापारी प्रतापचन्द ने FIR दर्ज कराने के लिए एप्लीकेशन दी थी ।
उनका कहना था कि कोवीशील्ड की पहली डोज लगवाने के बाद भी उनके शरीर में एंटीबॉडी डेवलप नहीं हुई। बल्कि वैक्सीन लगवाने के बाद उसकी तबीयत खराब हो गई थी जिसके कारण उनकी प्लेटलेट्स घट गई।
उन्होंने कहा था कि मैंने डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव की प्रेस कॉन्फ्रेंस देखी थी जिसमे उन्होंने स्पष्ट कहा था कि कोवीशील्ड की पहली डोज लेने के बाद से ही शरीर में अच्छी एंटीबॉडी बनने लगती है। लेकिन जब उन्होंने सरकारी लैब में एंटीबॉजी जीटी टेस्ट कराया। जिसमें पता लगा कि उनमें अभी तक एंटीबॉडी नहीं बनी है। बल्कि प्लेटलेट भी घटकर तीन लाख से डेढ़ लाख पहुंच गई। उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी जान के साथ खिलवाड़ किया गया है। जिससे संक्रमण का खतरा ज्यादा हो गया है, जिससे कभी भी मौत हो सकती है.उनका कहना है कि उनके साथ धोखा हुआ है। यह हत्या के प्रयास का विषय है।
वैसे प्लेटलेट्स की बात निकली ही है तो आपको यह बात भी याद दिला दें कि कुछ महीने पहले ब्रिटेन में किए गए एक अध्ययन में पता चला था कि कोविशील्ड टीके का संबंध खून में प्लेटलेट कमी होने से हो सकता है इस बढ़े हुए खतरे को आइडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपिनक प्यूप्यूरा (आईटीपी) के नाम से जानते हैं और वहाँ यह आकलन यह लगाया गया था कि यह स्थिति प्रति 10 लाख खुराक में 11 मामलों में हो सकती है, ब्रिटेन में एस्ट्राजेन्का का इस्तेमाल कम हुआ लेकिन भारत मे 88 प्रतिशत लोगो को यही वैक्सीन लगी है।