- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- Shopping
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
- Home
- /
- Top Stories
- /
- 7 महीने की गर्भवती...
7 महीने की गर्भवती महिला को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली अबॉर्शन की इजाजत, जानें क्या है मामला
प्रतिकात्मक फोटो
गर्भवती महिला का अबॉर्शन कराना कानून जूर्म है लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने 28 सप्ताह की गर्भवती महिला को भ्रूण की असामान्यता को देखते हुए उसे गर्भपात कराने की अनुमति दे दी है। उच्च न्यायाल ने अपने फैसले में कहा है कि प्रजनन पसंद व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक आयाम है जो संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है।
न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने महिला की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि अगर उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं दी जाती है तो याचिकाकर्ता के मानसिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा। वहीं गर्भ की असमान्यता को देखते हुए याचिकाकर्ता को अपने गर्भ को रखने अथवा नहीं रखने के निर्णय की स्वतंत्रता देना ही न्यायसंगत है।
पीठ ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की राय को देखने के बाद यह आदेश दिया गया है। उच्च न्यायालय ने पाया कि भ्रूण स्वास्थ व सामान्य जीवन के अनुकूल नहीं है। पीठ के अनुसार चिकित्सा विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बच्चे को जीवन के प्रारंभिक चरण में ह्दय की सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है अथवा कुछ समय बाद भी ऐसी स्थिति बन सकती है।
पीठ ने माना कि इस तरह बच्चा अपनी किशोरावस्था व वयस्कता की उम्र में चिकित्सीय देखभाल पर ही निर्भर रह सकता है। ऐसे में बच्चे के जन्म के लिए पोस्ट-ऑपरेटिव जटिलताओं व अन्य दिक्कतों को देखते हुए गर्भपात की अनुमति देना सही है।
पीठ ने कहा कि यााचिकाकर्ता यह तर्क देने में सफल रही कि गर्भावस्था के दौरान ही भ्रूण एक दुर्लभ जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित है, जो कि एक 'पर्याप्त भ्रूण असामान्यता' है, जिसमें परिचर जटिलताओं और जोखिमों के साथ होगा। याचिकाकर्ता के मानसिक स्वास्थ्य पर एक हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है। हालांकि पीठ ने यह निर्णय देने से पहले एक मेडिकल बोर्ड गठित कर महिला के गर्भ की जांच के आदेश दिए थे। मेडिकल बोर्ड ने ही रिपोर्ट में बताया कि भ्रूण को जन्म के तुरंत बाद ह्दय सर्जरी की आवश्यकता पड़ेगी।