- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- Shopping
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
- Home
- /
- Top Stories
- /
- अपने ही पिता से...
अपने ही पिता से प्रेगनेंट है 10 साल की बच्ची, अब हाई कोर्ट ने दिया ऐसा निर्देश
रिश्ते को शर्मसार करने वाले एक पिता की ऐसी करतूत है कि लोगों की पैरो तले जमीन खिसक जायेगी, क्योकि ेक पिता ने अपनी बेटी से ही संबध बनाया और वो गर्भवती हो गई ये मामला केरल का है अपने ही पिता से प्रेगनेंट हुई 10 वर्षीय बच्ची के केस में केरल हाई कोर्ट ने गुरुवार को अहम निर्देश जारी किया।
कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड से प्रेगनेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन पर उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया है। इससे पहले मेडिकल बोर्ड ने मामले में अपनी राय दी थी। मेडिकल बोर्ड ने कहा था कि चूंकि गर्भ 31 सप्ताह का हो चुका है और ऑपरेशन से डिलीवरी करनी होगी। ऐसे में इस बात की 80 फीसदी तक संभावना है कि नवजात शिशु बच जाए।
बता दें कि 10 वर्षीय बच्ची की मां ने उसके स्वास्थ्य और मानसिक हालत का हवाला देते हुए कोर्ट का रुख किया था। जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन की सिंगल बेंच ने मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि बच्ची का पिता ही आरोपी है। अगर यह आरोप सही है तो कोर्ट इस बात पर शर्मिंदा है। उन्होंने कहाकि पूरे समाज के लिए यह शर्मनाक है। कोर्ट ने यह भी कहाकि कानून के लंबे हाथों से आरोपी बच नहीं पाएगा और दोषी पाए जाने पर उसे सजा जरूर होगी। वहीं कोर्ट मेडिकल बोर्ड को एक हफ्ते के अंदर इस मामले में उचित निर्णय लेने का आदेश दिया।
अगर शिशु जिंदा रहे तो सरकार उसका इंतजाम करे
कोर्ट ने कहाकि अगर नवजात शिशु जिंदा रहता है और लड़की के माता-पिता उसकी जिम्मेदारी लेने की स्थिति में नहीं रहते तो यह सरकार और उसकी अन्य संस्थाओं की जिम्मेदारी बनती है उसकी देखभाल करें। दक्षिण केरल के रहने वाले याचिकाकर्ता की तरफ से एडवोकेट एम कबानी दिनेश और सी अचला ने दलील पेश की। कोर्ट बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा 2019 में दिए एक ऐसे ही फैसले का भी हवाला दिया। तब कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि अगर बच्चा जिंदा बच जाता है तो रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर और संबंधित अस्पताल की जिम्मेदारी है कि उसे मानकों के मुताबिक बेहतरीन इलाज मिले। साथ ही सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उसका पालन-पोषण ठीक ढंग से हो।