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आखिर मर्म क्या है, जिंदगी की...कौन हूं ...मैं?

आखिर मर्म क्या है, जिंदगी की...कौन हूं ...मैं?
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नीले गगन की छांव के सुख में उड़ता हुआ उसका मन चांद तारों से मिलने का करता कि चलो एक ऐसी दुनिया बनाये।


डॉ विजय यादव(लेखक)

लघु कथा-"कौन हूँ..मैं"अर्ध निंद्रा में कई आंखें घूमते नजर आ रहे थे। कई सवाल विनय के सामने था। गोया कुल बीस साल मैं एक शहर में बीता दिए। पता ही नहीं चला ... सोच की सीमा का विस्तार के आगे काफी कुछ पीछे छूट गया ।

समय के पूर्व बहुत कुछ आगे चला गया। एक सपनानुमा महल रूपी घर ..जहां पहली बार वह दूल्हा बना लेकिन उतनी ही तीव्र गति से शादी का टूटना सिर्फ इस बात के लिए कि वह पत्नी के अनुकूल नहीं जब फैशन की चकाचौंध में डूबा तो उसे बहुत सुंदर लगता और अब विरान पतझड़ जैसा बिना रस की जिंदगी नीरस सरीका.. उसे एहसास हुआ कि शादी की रस्म की हल्दी नहीं छुटा की रिश्ते छूटने लगे। जितने भी दूसरे दृश्य में कई पात्र दिखे ।उसके परिवार जहां सिर्फ कुलेशन इस बात का था कि यह सब क्यों कर रहा है? यह ऐसा क्यों नहीं करता? अगर मैं सहयोग कर रहा हूं तो उसे ऐसा ही करना होगा तीसरे दृश्य में एक विशाल स्वप्निल सरीखा एक ख्वाब पाया कि सारा जहां है जिसमें उलाहनापूर्ण कि वही जो उन्हें चाहिए।

विनय की आंखों में नींद की जगह अश्रू प्रवाह था कि वह ना योग्य बेटा न योग्य पति ..सब लोगों ने उसे अपने -अपने नजरिए से देखा और उसे बनाने का प्रयास किया लेकिन उसका क्या हुआ ,जो वह चाहता था ?सोचने लगा जिंदगी किसी और के लिए जीना ही नाम है या अपनी जिंदगी के माफिक ...आखिर क्या सही और क्या ग़लत है?एक तरफ शोला तो दूसरी तरफ ओला , एक तरफ उसकी मोहब्बत तो दूसरी तरफ उसकी जिंदगी ।

नीले गगन की छांव के सुख में उड़ता हुआ उसका मन चांद तारों से मिलने का करता कि चलो एक ऐसी दुनिया बनाये। जहां कोई न शिकवा ना कोई शिकायत हो। बस चलते ही रहना है और यही चलती का नाम गाड़ी.. वह धुंध में खोया हुआ बीस वर्ष पूर्व का बालक की यादों में खो गया.. धीरे-धीरे अश्रु की बीच नन्हे-मुन्ने दो आवाजें लगाता....चाचू..छाचू.. मैंने तो कुछ नहीं किया लेकिन वक्त और हालात ने हमें भी बदल दिया.. बच्चे बड़े हो गए थे ।उसे भी दुनियादारी की हवा लग गई थी अब उनके कोमल भावनाएं खत्म ...बस धुंधली सी यादें... उसके बचपन में खोया हुआ अपना बचपन ढूंढना उसे बड़ा सुकून देता लेकिन अब अपनी सुकून के खो जाने के डर से भयभीत हो उठा था ...विनय। सोचने लगा कि आखिर मर्म क्या है ,जिंदगी की।कौन हूं ...मैं?

(डॉ विजय यादव,प्रबंध निर्देशक,लिवर्म ग्रुप ऑफ कंपनी)


अभिषेक श्रीवास्तव

अभिषेक श्रीवास्तव

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