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- जहरीली शराब का तांडव
अरविंद जयतिलक
उत्तर प्रदेश राज्य के आजमगढ़ जिले में जहरीली शराब के सेवन से 10 लोगों की दर्दनाक मौत रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि राज्य में जहरीली और अवैध शराब निर्माण का काला धंधा थमा नहीं है। चिंताजनक तथ्य यह कि यह जानते हुए भी कि पिछले दो दशक में आजमगढ़ में चार बार हुए जहरीली शराब कांड में एक सैकड़ा से अधिक लोगों की जान जा चुकी है फिर भी जिला प्रशासन उदासीन क्यों बना हुआ है। वह भी ऐसे समय में जब राज्य में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं और यह आशंका भी बनी हुई है कि राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने के लिए शराब का इस्तेमाल कर सकते हैं। हैरान करने वाली बात यह भी कि जहरीली शराब की बिक्री सरकारी देशी दुकान से हुई है और बताया जा रहा है कि यह दुकान एक रसूखदार राजनेता के रिश्तेदार की है। लोगों की मानें तो इस जिले के देवरांचल क्षेत्र में कुटीर उद्योग का रुप धारण कर चुका जहरीली शराब का धंधा राजनीतिक संरक्षण में फल-फूल रहा है। इस जानलेवा खेल में स्थानीय पुलिसकर्मी और आबकारी विभाग के कर्मचारियों की भी मिलीभगत है।
अगर इस आरोप में रंचमात्र भी सच्चाई है तो फिर समझना कठिन नहीं रह जाता है कि लोगों की जिंदगी जहरीली शराब की भेंट क्यों चढ़ रही है। तथ्य यह भी कि राज्य में जहरीली शराब से मौत होने पर दोषियों को आजीवन कारावास और मृत्युदंड दिए जाने का प्रावधान है। बावजूद इसके मिलावटी शराब के कारोबारियों का हौसला बुलंद है तो मतलब साफ है कि उनके मन में कानून का भय नहीं है। यहीं वजह है कि राज्य में जहरीली शराब निर्माण का धंधा जोरों पर है। यह ठीक है कि जिला प्रशासन ने तत्परता दिखाते हुए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई और धरपकड़ शुरु कर दी है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इसलिए कि इस तरह की असरहीन कार्रवाई पहले भी होती रही है लेकिन जहरीली शराब निर्माण का धंधा थमा नहीं है। राज्य सरकार को समझना होगा कि जब तक अवैध शराब निर्माण से जुड़े माफियाओं और उन्हें प्रश्रय देने वाले लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं होगी तब तक जहरीली शराब का धंधा बंद होने वाला नहीं है। गौर करें तो देशी शराब को असरदार बनाने के लिए मिथेनाॅल मिलाया जाता है जो जिंदगी और सेहत के लिए बेहद खतरनाक होता है।
मिथेनाॅल मिलाने का मकसद भारी मुनाफा कमाना होता है। यहां ध्यान देना होगा कि शराब की जहरीली होने का मुख्य कारण घातक मिथाइल एल्कोहल होता है जो ऊंचे तापमान पर उबालने पर हानिरहित इथाइल एल्कोहल में बदलता है। लेकिन शराब निर्माण की प्रक्रिया की अधूरी जानकारी और लापरवाही के कारण इसमें घातक रसायनों का प्रयोग जहर का काम कर जाता है। लिहाजा पीते ही लोग उल्टियां करने लगते हैं और आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है। यकृत क्षतिग्रस्त हो जाता है और लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। लेकिन इससे भी अवैध शराब माफियाओं की संवेदना प्रभावित नहीं होती है और न ही शासन-प्रशासन विचलित होता है। ध्यान दें तो जब भी जहरीली शराब से लोगों की मौत होती है तो उनके परिवारजनों द्वारा आरोप लगाया जाता है कि स्ािानीय शराब माफियाओं का पुलिस और आबकारी विभाग के कर्मचारियों से मिलीभगत होती है। लेकिन बिडंबना कि इस आरोप पर गंभीरतापूर्वक ध्यान नहीं दिया जाता है। यानी यों कहें कि गुनाहगारों को बचा लिया जाता है। दूसरी ओर जिला प्रशासन मृतकों के परिजनों को मुआवजा थमा अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेता हैं।
अगर समय रहते जिला प्रशासन, स्थानीय प्रशासन और आबकारी विभाग के जिम्मेदार कर्मचारी जहरीली शराब के धंधे से जुड़े लोगों पर शिकंजा कसें तो लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता है। अब यह जांच के बाद ही पता चलेगा कि इन मौतों के गुनाहगार और उनके संरक्षणदाता कौन हैं और उनके उपर कितनी संजीदगी से कार्रवाई होती है। फिलहाल इस बात की कोई गारंटी नहीं कि इस दर्दनाक घटना के बाद इस तरह की पुनरावृत्ति नहीं होगी। ऐसा इसलिए कि हर बार शराब माफियाओं के खिलाफ कड़े कदम उठाने का हुंकार भरा जाता है लेकिन सच इसके उलट होता है। याद होगा अभी गत वर्ष ही आजमगढ़ और अंबेडकर नगर जिले में जहरीली शराब के सेवन से डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की मौत हुई। गत वर्ष पहले आजमगढ़ जिले के ही रौनापार में जहरीली शराब से 14 लोगों की मौत हो चुकी है। इसी जिले में वर्ष 2009 में 23 और 2013 में मुबाकरपुर में 53 लोगों की जिंदगी जहरीली शराब की भेंट चढ़ गयी। इसी तरह गत वर्ष पहले कानपुर नगर व देहात क्षेत्र में जहरीली शराब के सेवन से दर्जन भर से अधिक लोगों की मौत हुई। गौर करें तो उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी जहरीली शराब की घटनाएं लोगों को विचलित करती रही हैं। याद होगा गत वर्ष पहले देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में जहरीली शराब से 50 से अधिक लोगों की मौत हुई। पश्चिम बंगाल के दक्षिण चैबीस परगना जिले में जहरीली शराब पीने से पौने दो सौ से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।
2008 में भी इस राज्य के गार्डनरीच में जहरीली शराब पीने से 40 लोगों और 2009 में किद्दूपुर में 28 लोगों की मौत हुई। इसी तरह बिहार के समस्तीपुर में 11, राजस्थान के जोधपुर में 22, पंजाब के होशियारपुर में 18 और केरल के मल्लपुरम में 26 लोग जहरीली शराब से अपनी जान गंवा चुके हैं। 2008 में जहरीली शराब से कनार्टक में 180 लोग जान से हाथ धो बैठे। अब मौंजू सवाल यह है कि जहरीली शराब से होने वाली मौतों का सिलसिल कब थमेगा और अवैध शराब के सौदागरों पर निर्णायक कारवाई कब होगी? सवाल यह भी है कि केंद्र व राज्य सरकारें दोनों मिलकर इसे रोकने की दिशा में ठोस पहल क्यों नहीं कर रही हैं? जबकि 2006 में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि केंद्र व राज्य सरकारें संविधान के 47 वें अनुच्छेद पर अमल करें यानी शराब की खपत को घटाएं। लेकिन गौर करें तो राज्य सरकारों का रवैया ठीक इसके उलट है। वह शराब पर पाबंदी लगाने के बजाए उसे बढ़ावा दे रही हैं। सवाल लाजिमी है कि इस तरह की सोच से नशामुक्त समाज का निर्माण कैसे होगा? क्या इस शुतुर्गमुर्गी रवैए से अवैध शराब के कारोबारियों का हौसला बुलंद नहीं होगा? बेहतर होगा कि केंद्र व राज्य सरकारें अवैध शराब के निर्माण और उसकी बिक्री की रोकथाम के लिए कड़े कानून बनाएं। अन्यथा जहरीली शराब से दम तोड़ने वालों का सिलसिला थमने वाला नहीं है।
यह तथ्य है कि देश के सभी राज्यों में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में हर रोज शराब की अवैध भट्ठियां हजारों लीटर जहर उगलती हैं। स्थानीय शासन-प्रशासन और आबकारी विभाग इससे अच्छी तरह अवगत होने के बाद भी उन्हें रोकने की पहल नहीं करता है। ऐसा इसलिए कि उन पर राजनीतिक दबाव तो होता ही है और साथ ही वे धनउगाही के धंधे में भी लिप्त होते हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि अवैध शराब से जुड़े अधिकांश माफिया राजनीति से जुड़े हैं या तो उन्हें राजनीतिक संरक्षण हासिल है। चूंकि अवैध शराब की कीमत कम और नशा ज्यादा होता है इसलिए इसे पीने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। इसका सेवन करने वालों में अधिकांश गरीब, मजदूर और कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं जो नशा के नाम पर भूल जाते हैं कि वे शराब पी रहे हैं या जहर गटक रहे हैं। हद तो तब होती है जब स्थानीय पुलिस-प्रशासन अवैध शराब माफियाओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई के बजाए उनके बचाव में उतर आता है। इसका परिणाम यह होता है कि सैकड़ों की जान लेने वाला गुनाहगार दंड से बच निकलता है। उचित होगा कि देश की सभी राज्य सरकारें ऐसे अवैध शराब माफियाओं और इन्हें संरक्षण देने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को चिंहित कर उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करे।