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क्या अमर-जवान-ज्योति, बीटिंग रिट्रीट में गांधीजी का प्रिय भजन हटाना, राजनीतिक-राष्ट्रवाद तो नहीं?

क्या अमर-जवान-ज्योति, बीटिंग रिट्रीट में गांधीजी का प्रिय भजन हटाना, राजनीतिक-राष्ट्रवाद तो नहीं?
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विजया पाठक,

देश में अब राष्ट्रवाद के नाम पर जो राजनीति चमक रही है उससे देश की परंपरा खास तौर पर फौज से जुड़ी परंपरा काफी आहत हुई है। चाहे बीटिंग रिट्रीट में गांधीजी का प्रिय भजन को हटाना हो, इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगाना या अमर जवान ज्योति को इंडिया गेट से हटा कर भव्य सीमेंट से बने वार मेमोरियल पर स्थानांतरित करना इन सबमें राष्ट्रवाद से ज्यादा राजनीति दिख रही रही है। आप सुभाष बाबू की मूर्ति जरूर लगवाओ पर गांधीजी की पसंदीदा धुन बीटिंग रिट्रीट से नहीं हटाना चाहिये था। हर वर्ष 26 जनवरी को प्रधानमंत्री और वरिष्ठ सैन्य अधिकारी अमर जवान ज्योति में शहीदों को नमन कर ही 26 जनवरी की परेड में जाते थे।

इस परंपरा को अब खत्म कर दिया गया है, इसके स्थान पर अब से वार मेमोरियल पर नमन कर सारे गणमान परेड पर जाया करेंगे। सरकार के इस एक कदम से आजादी के पहले हुए भारतीय शहीदों को अपमानित कर दिया गया है। भारतीय इतिहास में आजतक के सारे युद्ध सिर्फ फौजी के जस्बे से जीते गए है। आज भी गलवान घाटी में हमने चीन को पछाड़ा तो वो सिर्फ उन फौजीयों के जूनुन और जस्बे के कारण वर्ना सैन्य शक्ति में हम चीन के सामने कहीं नहीं ठहरते है। ठीक, ऐसा ही जस्बा अमर जवान ज्योति को लेकर है, अमर जवान ज्योति 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद निर्मित एक भारतीय स्मारक है, जिसमे सैनिकों के सम्मान में लौ लगातार जलती रह्ती है।

यह स्मारक इण्डिया गेट में स्थित है जिसे अखिल भारतीय युद्ध स्मारक कहा जाता है। नई दिल्ली के राजपथ पर स्थित 42 मीटर ऊँचा विशाल स्वतन्त्र भारत का राष्ट्रीय स्मारक है, जिसे पूर्व में किंग्सवे कहा जाता था। इसे सन् 1931 में बनाया गया था। स्मारक का निर्माण अंग्रेज शासकों द्वारा उन 90000 भारतीय सैनिकों की स्मृति में किया गया था जो ब्रिटिश-इंडिया सेना में भर्ती होकर प्रथम विश्वयुद्ध और अफ़ग़ान युद्धों में शहीद हुए थे। इनमें कुछ 13,300 फौजियों के नाम, गेट पर उत्कीर्ण हैं। भारतीय फौज पुरानी परंपरा पर चलते है, जैसे "नाम, नमक और निशान" जैसे कुछ पारंपरिक आचार-विचार से फौजी के दिल मे देश के प्रति प्रेम और सब कुछ नौछावर कर देने वाला जस्बा सिखाया जाता है ।

आखिर देश की सरकार उसपर "राजनीतिक-राष्ट्रवाद" का एक्सपेरिमेंट कर कहीं भविष्य में बड़ी क्षति तो नहीं करने जा रही। इंडिया गेट स्मारक जहां पर से अमर जवान ज्योति को हटाकर भव्य बने वार मेमोरियल में स्थानांतरित करना फौजी परंपरा के विपरीत है, जस्बे से भी अलग है जिसे ओढ़कर हमारे फौजी बनते है। सरकार की तरफ से बचाव में कहा गया की इसकी मंशा ब्रिटिश गुलामी की मानसिकता से बाहर आने की है। एक रिटायर्ड कर्नल ने सरकार के बचाव में कहा की अब संसद में वाइसराय नहीं बैठते तो इसको हटाने से इतना दुख क्यों।

वैसे अगर सरकार की असली ब्रिटिश मानसिकता से बाहर लाने की तो उसे पूरी सेना को ही बदलना होगा। भारत के सभी अन्य बड़े प्रतिष्ठान जैसे एनडीए खड़कवासला पुणे, आईएमए देहरादून, डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज वेलिग्टन सभी आज भी अंग्रेजों के बनाई परंपरा और आधारभूत संरचना पर चलते है। इसके साथ ही वर्तमान के 80 प्रतिशद फौजी रेजिमेंट भी अंग्रेजों के द्वारा बनाई थी और उसी परंपरा और आधारभूत संरचना पर चल रही है, जैसे मद्रास सैपर्स (इंजीनियर्स), 1921 में बॉम्बे सेपोय राइफल बटालियन की 6 बटालियन मिला कर राजपूताना रेजिमेंट (राजपुताना राइफल) बनी, जाट रेजीमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल डेसमंड हेडे जो एंग्लो- इंडियन थे और उनका जन्म आयरलैंड में हुआ था उन्हें 1965 के भारत-पाकिस्तान के युद्ध में महावीर चक्र से सम्मानित किया गया जाट रेजीमेंट का इतिहास भी 200 साल पुराना है बल्कि आजादी के पहले के इनके सूबेदार मेजर मौजी राम जाट रेजीमेंट किं पहचान बन गए। जाट बलवान जय भगवान इनकी युद्धघोष सुन कर दुश्मन के पैर कांपने इनका रेजिमेंटल हेडक्वार्टर 1922 में बरेली में स्थापीत हुआ था।

सारागही के युद्ध में सिख रेजीमेंट के 21 सिख फौजियों को ब्रिटिश काल का सबसे बड़ा इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट मिला था एवं यूनेस्को ने इसे सबसे कठिन युद्ध की श्रेणी में रखा है, 1856 में सिख रेजीमेंट अंग्रेजों ने बनाया था। इसी सिख रेजीमेंट में से जमादार नंद सिंह को पहले ब्रिटिश विक्टोरिया क्रॉस और आजाद भारत में महावीर चक्र सम्मान मिला था। राजपूत रेजीमेंट की स्थापना अंग्रेजों ने 1778 में की थी एवं बल्कि रानी विक्टोरिया ने तो अपनी मूर्ति इनके रेजिमेंटल हेडक्वार्टर में लगवाया था जो आज भी वहां स्थित है। मराठा लाइट इन्फेंट्री ,डोगरा रेजीमेंट, पंजाब रेजिमेंट सबने अपने शौर्य से विश्व को परिचित कराया, मद्रास रेजीमेंट की शुरुवात रोबर्ट क्लाइव ने 1758 में किया, ग्रेनेडियर्स की शुरुवात 1719 के लगभग हुई।

गढ़वाल रेजीमेंट का गठन 1891 में हुआ और इसको प्रथम विश्वयुद्ध में 2 विक्टोरिया क्रॉस मिला। कुमाऊं रेजीमेंट, गोरखा रेजीमेंट सबकी स्थापना अंग्रेजों द्वारा कि गयी थी, गोरखा रेजीमेंट आज भी ब्रिटिश आर्मी की एक रेजीमेंट है। इन सब इतिहास से एक बात तो स्पष्ट है की इंडिया गेट पर मौजूद 13300 भारतीय फौजी की शहादत को इस सरकार ने राजनीतिक-राष्ट्रवाद के नाम पर अपमानित कर दिया है। आज देश में स्वदेशी हथियार विकसित करने के बजाए, देश की सरकारी रक्षा कम्पनी को कमजोर कर प्राइवेटाइज किया जा रहा है। ब्रिटिश गुलामी की मानसिकता को अगर हटाना ही है तो देश के करीब करीब सारे सैन्य प्रतिष्ठान, करीब पूरी फौज को हटाकर नए सिरे से गुथना होगा। ऐसी मानसिकता जिसमें अमर-जवान-ज्योत को नए भव्य बने वार मेमोरियल में स्थानांतरित करने से भारतीय फौज की परंपरा और जस्बे पर चोट पहुंची है।

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