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अमित शाह की कश्मीर यात्रा - डॉ. वेदप्रताप वैदिक

Shiv Kumar Mishra
25 Oct 2021 11:18 AM IST
अमित शाह की कश्मीर यात्रा - डॉ. वेदप्रताप वैदिक
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक

गृहमंत्री अमित शाह कश्मीर के दौर पर गए, यह अपने आप में बड़ी बात है। आजकल कश्मीर से जैसी खबरें आ रही हैं, वैसे माहौल में किसी केंद्रीय नेता का वहां तीन दिन का दौरा लगना काफी साहसपूर्ण कदम है। जो जितना बड़ा नेता होता है, उसे अपनी जान का खतरा भी उतना ही बड़ा होता है।

अमित शाह ने ही गृहमंत्री के तौर पर दो साल पहले धारा 370 को खत्म किया था और कश्मीर को सीधे दिल्ली के नियंत्रण में ले आए थे। उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने बदले हुए कश्मीर के नक्शे में कई नए रंग भरे और शासन को जनता से सीधे जोड़ने के लिए रचनात्मक कदम उठाए लेकिन पिछले दो-तीन सप्ताहों में आतंक की ऐसी घटनाएं घट गईं, जिन्होंने कश्मीर को फिर से चर्चा का विषय बना दिया। आतंकवादियों ने ऐसे निर्दोष लोगों पर हमले किए, जिनका राजनीति या फौज से कुछ लेना-देना नहीं है। इन लोगों में ठेठ कश्मीरी भी हैं और ज्यादातर वे लोग हैं, जो देश के दूसरे हिस्सों से आकर कश्मीर में रोजगार करते हैं। ये घटनाएं बड़े पैमाने पर नहीं हुई हैं लेकिन इनका असर बहुत गंभीर हो रहा है। न केवल हिंदू पंडित, जो कश्मीर लौटने के इच्छुक थे, निराश हो रहे हैं बल्कि सैकड़ों गैर-कश्मीरी नागरिक भागकर बाहर आ रहे हैं।

ऐसे डर के माहौल में अमित शाह श्रीनगर पहुंचे और उन्होंने जो सबसे पहला काम किया, वह यह कि वे परवेज अहमद दर के परिवार से मिले। वे सीधे हवाई अड्डे से उनके घर गए। परवेज अहमद सीआईडी के इंस्पेक्टर थे। वे ज्यों ही नमाज़ पढ़कर मस्जिद से निकले आतंकियों ने उनकी हत्या कर दी थी। शाह ने उनकी पत्नी फातिमा को सरकारी नौकरी का नियुक्ति-पत्र दिया। परवेज अहमद के परिवारवालों से अमित शाह की मुलाकात के जो फोटो अखबारों में छपे हैं, वे बहुत ही मर्मस्पर्शी हैं।

शाह ने राजभवन में पांच घंटे की बैठक करके कश्मीर की सुरक्षा पर विचार-विमर्श किया। उन्होंने आतंकवाद को काबू करने के लिए कई नए कड़े कदम उठाने के निर्देश दिए। यह ठीक है कि उन्होंने कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटाने का कोई संकेत नहीं दिया लेकिन त्रिस्तरीय पंचायत के चुनावों को बड़ी उपलब्धि बताया। क्या ही अच्छा होता कि वे कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटाने की बात कहते और यह शर्त भी लगा देते कि वे ऐसा तभी करेंगे, जबकि वहां आतंकवाद की एक भी घटना न हो।

कश्मीर की तीनों प्रमुख पार्टियों पर हमला बोलने की बजाय यदि वे उनके नेताओं से सीधी बात करते तो अभी जो कर्फ्यू लगा है, वह भी शायद जल्दी ही हटाने की स्थिति बन जाती। अभी जबकि पाकिस्तान में अफगानिस्तान को लेकर खलबली मची हुई है, यदि भारत के नेताओं में दूरंदेशी हो और वे नौकरशाहों के शिकंजों से मुक्त हो सकें तो वे काबुल और कश्मीर, दोनों मुद्दों पर नई पहल कर सकते हैं। वे अटलजी के सपने— कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत— को जमीन पर उतार सकते हैं।

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