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मातृभाषाओं की सरकारी सूची में अंगिका का नाम नहीं होने पर अंगवासी गुस्से में
नई दिल्ली। बिहार के अंग प्रदेश की मातृभाषा अंगिका की लगातार उपेक्षा से अंग वासी बहुत गुस्से में हैं क्योंकि पिछले साठ सत्तर सालों से लगातार विकसित हो रही अंगिका के साथ उपेक्षा का रवैया आज भी जारी है। अंगिका के रचनाकारों,नाटककारों और कलाकारों के अथक प्रयासों से अंगिका अब जन जन में न सिर्फ लोकप्रिय हो रही है बल्कि इस भाषा में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में अंगिका की पढ़ाई ही रही है। सैकड़ों विद्यार्थी अंगिका में एम् ए और पी एच डी कर चुके हैं। पिछले चार दशकों से आकाशवाणी और दूरदर्शन में अंगिका में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होते अा रहे हैं। रेलवे मंत्रालय द्वारा अंग एक्सप्रेस चलाए जा रहे हैं। इस तरह लगातार व्यापक और समृ द्ध होती अंगिका का दुर्भाग्य है कि हाल ही में भारत सरकार के रजिस्टर जनरल द्वारा जारी की गई देश की मातृ भाषाओं की सूची से अंगिका को गायब कर दिया है। ऐसा पहली बार हुआ है।
मातृभाषाओं की सूची से अंगिका का नाम नहीं होने से अंगवासी बहुत मर्माहत हैं। कहां तो अंग वासी अंगिका के अष्टम सूची में शामिल होने की उम्मीद में समय समय पर आंदोलन करते अा रहे थे । अब उनको लगने लगा है कि जब मातृभाषाओं की सूची में ही अंगिका का नाम नहीं है तो बिहार में दूसरी भाषा का दर्जा दिलाने और अष्टम सूची में शामिल होने का सपना कैसे साकार होगा। भारत सरकार के रजिस्टर जनरल द्वारा देश भर की मातृभाषाओं की सूची जारी की गई तो उसमें अंगिका का नाम नहीं होने से अंगिका के लेखक,कवि,पत्रकार,समाजसेवक गुस्से में अा गए हैं और निंदा प्रस्ताव पास करने के साथ सरकारी सूची में अंगिका को शामिल करने की मांग भी तेज़ हो गई है। संभव है कि इस मांग को लेकर कोई आंदोलन भी शुरू हो सकता है। क्योंकि अंग वासी पूरी तरह मर्माहत हो गए हैं उन्हें लगता है कि यह उनकी उस संस्कृति का अपमान है जिसका गुणगान देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद से लेकर अनेक विद्वानों ने गाया है। उन हजारों लेखकों के लिए पूरी तरह से असहनीय है, जिन्होंने अपनी जिंदगी झोंकी और पुस्तकों के प्रकाशन के लिए अपनी जमीन बेची और पत्नी के गहने गिरवी पर दे दिए।
स्पेशल कवरेज न्यूज़ के खास मुलाकात कार्यक्रम में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी और अंगिका के विभागाध्यक्ष डा योगेन्द्र ने हैरानी जताते हुए कहा कि यह यू ही नहीं हुआ है। इसके पीछे गहरी साजिश की बू अा रही है। उन्होंने खुद को सभी भाषाओं का प्रेमी बताते हुए कहा कि विभिन्न भाषा भाषी के लोगों को आपस में परस्पर प्रेमी होना चाहिए। डॉ योगेन्द्र ने एक दूसरे की भाषाओं का सम्मान करने की जरूरत जताते हुए कहा कि भाषाओं को कभी भी नफरत पैदा करने वाला हथियार नहीं बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हरेक भाषा का अपना स्वायत्त क्षेत्र होता है जहां एक खास भाषा का अपना क्षेत्र होता है। उस क्षेत्र को दूसरी भाषा के लोगों को अपना क्षेत्र बताने की धृष्टता नहीं करनी चाहिए।
डॉ योगेन्द्र कहते हैं कि जो अंगिका इतना आगे निकल चुकी है कि उसमें विश्वविद्यालय में पढ़ाई हो रही है। नाटक हो रहे हैं। फिल्में बन रही है। झारखंड राज्य में इसे दूसरी भाषा का दर्जा दिया गया है। बिहार में पांच साल पहले बाकायदा बिहार अंगिका अकादमी का गठन हो गया है। बावजूद अंगिका को मातृभाषाओं की सूची में शामिल नहीं करना अंग प्रदेश के एक एक जन का अपमान गई। आज अंगिका बोलने वाली आबादी पांच करोड़ से अधिक है। इतनी बड़ी आबादी की भाषा अंगिका का मातृभाषाओं की सूची से गायब कर देना पूरी तरह से शर्मनाक कृत्य है। डॉ योगेन्द्र ने अंग प्रदेश के लोगों से अपील की है कि वे इस बार नहीं चूके। संगठित होकर आवाज बुलंद करें और जरूरत पड़े तो कुर्बानी देने में भी पीछे नहीं रहें।
इस बीच बिहार सरकार की भी नींद टूटी है। बिहार सरकार के उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा संचालित बिहार अंगिका अकादमी के अध्यक्ष सह निदेशक सत्येन्द्र कुमार ने भारत सरकार के मतगणना आयुक्त के रजिस्टर जनरल को पत्र लिख कर कहा है कि अंगिका भाषा बिहार के अंग जनपद की पांच छह करोड़ की आबादी में बोली जाने वाली और विभिन्न विधाओं में प्रकाशित हजारों पुस्तकों से भरी पूरी लोकप्रिय भाषा है।जनगणना कार्यालय की प्रकाशित 277 मातृभाषाओं की सुचिं कोड में अंगिका स्थान नहीं देख कर हम सब मर्माहत हैं। सत्येन्द्र कुमार ने जानकारी दी है कि बिहार सरकार ने 2015 में बिहार अंगिका अकादमी का गठन के दिया है। बिहार अंगिका अकादमी अंगिका भाषा के उत्थान के लिए सतत प्रयासरत है। उन्होंने निवेदन किया है कि भारतीय जनगणना के लिए तैयार किए मातृभाषा कोड में अंगिका भाषा के लिए भी कोड निर्धारित करने की कृपा की जाए ताकि अंग जनपद के पांच छह करोड़ अंगिका भाषी जनगणना के मौके पर स्वतंत्र रूप से अपनी मातृभाषा अंगिका कोड का प्रयोग कर सके। इसी तरह का एक अन्य पत्र तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के अंगिका विभाग के अध्यक्ष डॉ योगेन्द्र ने भी लिख कर भेजा है। उन्होंने लिखा है कि विश्वविद्यालय के अंगिका विभाग से सैकड़ों विद्यार्थी एम् ए और पी एच डी हासिल कर चुके हैं। ऐसे में मातृभाषाओं की सूची कोड में अंगिका का नाम नहीं होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। उस बात को लेकर अंग प्रदेश के लोगों में भारी असंतोष है। अखिल भारतीय अंगिका साहित्य और कला मंच ने रोष जाहिर किया है।