- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- Shopping
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
- Home
- /
- Top Stories
- /
- उपासना स्थल कानून के...
उपासना स्थल कानून के प्रावधानों के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई एक और याचिका
देश में मंदिर-मस्जिद के मुद्दे पर चल रहे विवाद के बीच उपासना स्थल कानून का मामला फिर एक बार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इस बार उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की कुछ धाराओं की वैधता को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि ये धाराएं संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती हैं, जिसमें कानून के समक्ष समानता से संबंधित और धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के निषेध से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट में डाली गयी याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने अधिनियम के माध्यम से घोषणा की है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद उपासना स्थल और तीर्थस्थल का धार्मिक चरित्र बरकरार रहेगा और इसके जरिये किसी भी अदालत में इस तरह के मामले के संबंध में वाद के जरिए उपचार पर रोक लगाई गयी है।
मथुरा निवासी देवकीनंदन ठाकुर द्वारा दायर याचिका में 1991 के अधिनियम की धारा 2, 3, 4 की वैधता को चुनौती दी गई है। याचिका में दावा किया गया है कि यह हिंदुओं, जैनों, बौद्धों और सिखों के उनके उपासना स्थलों और तीर्थयात्रा एवं उस संपत्ति को वापस लेने के न्यायिक उपचार का अधिकार छीनती है जो देवता की है। अधिवक्ता आशुतोष दुबे की ओर से दायर याचिका में कहा गया है, 'हिंदुओं, जैनों, बौद्धों और सिखों का आघात बहुत बड़ा है क्योंकि अधिनियम की धारा 2, 3, 4 ने अदालत जाने का अधिकार छीन लिया है और इस तरह न्यायिक उपचार का अधिकार बंद कर दिया गया है।'
इसमें कहा गया है कि अधिनियम की धारा 3 उपासना स्थलों के रूपांतरण पर रोक से संबंधित है, धारा 4 कुछ उपासना स्थलों के धार्मिक चरित्र की घोषणा और अदालतों के अधिकार क्षेत्र पर रोक से संबंधित है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्र ने न्यायिक समीक्षा के उपचार पर रोक लगाकर अपनी विधायी शक्ति का उल्लंघन किया है जो संविधान की एक बुनियादी विशेषता है।
इसमें कहा गया है, 'हिंदू सैकड़ों सालों से भगवान कृष्ण के जन्मस्थान की बहाली के लिए संघर्ष कर रहे हैं और शांतिपूर्ण सार्वजनिक आंदोलन जारी है, लेकिन केंद्र ने अधिनियम को अधिनियमित करते हुए अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान को इससे बाहर रखा, लेकिन मथुरा में भगवान कृष्ण की जन्मस्थली को नहीं, इसके बावजूद कि दोनों भगवान विष्णु के अवतार हैं जो कि इस सृष्टि को बनाने वाले हैं।' याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह अधिनियम कई कारणों से अमान्य और असंवैधानिक है और यह हिंदुओं, जैनों, बौद्धों और सिखों के उपासना स्थलों और तीर्थस्थलों के प्रबंधन, रखरखाव और प्रशासन के अधिकारों का उल्लंघन करता है।