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#AtmaNirbharMP: बड़ा सवाल – क्या सच में हम आत्मनिर्भर प्रदेश की तरफ बढ़ रहे है?
आज मध्यप्रदेश की स्थापना को 66 वर्ष हो गए है। निश्चित ही स्थापना दिवस हर प्रदेशवासियों के लिए खुशी का दिन है। मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से भी इस दिन को खास मनाने के लिए जोर-शोर से तैयारियां की जाती है। राज्य का प्रमुख आयोजन राजधानी भोपाल के लाल परेड ग्राउंड पर आयोजित किया जा रहा है। इस बार राज्य सरकार ने मप्र उत्सव की थीम आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश रखी है। जिसके तहत आत्मनिर्भर मप्र पर केंद्रित एक वृहद नाट्य प्रस्तुति का आयोजन किया जाएगा। प्रदेश का यह मुख्य उत्सव इस बार प्रदेशवासियों के मन में कई सवाल खड़े करता है। इस उत्सव के लिए करोड़ों रूपए सरकार खर्च करती है। लेकिन इस खर्च हुई राशि का लाभ प्रदेश के कलाकारों को मिलता है या नहीं यह एक बड़ा सवाल है। जब उत्सव की थीम आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश रखी गई है तो फिर इस प्रस्तुति के लिए दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों के कलाकारों का चयन क्यों? प्रदेश के कलाकारों का अधिकार दूसरे राज्यों के कलाकारों को देकर हम कैसे आत्मनिर्भर होंगे।
यदि यह प्रस्तुति मध्यप्रदेश के कलाकारों द्वारा तैयार की जाती और इसमें सहभागिता भी यही के कलाकारों की होती तो निश्चित ही आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश की यह परिकल्पना साकार होती। लेकिन अभी संस्कृति विभाग ने इस पूरी परिकल्पना को ही पलट कर रख दिया है। इस प्रस्तुति की कोरियोग्राफी से लेकर मंचीय प्रस्तुति तक की जिम्मेदारी मध्यप्रदेश के बाहर के कलाकारों को दी गई है। संस्कृति विभाग के इस फैसले ने एक बार फिर मध्यप्रदेश के कला संस्कृति से जुड़े कलाकारों की काबिलियत पर सवालियां निशान खड़ा कर दिया है। जबकि इसके उलट देश के दूसरे राज्यों में इस तरह के आयोजनों में प्रदेश के ही कलाकारों को वरियता दी जाती है, मध्यप्रदेश की तरह उन्हें उपेक्षित नहीं किया जाता है।
इससे पहले भी उपेक्षित हुए है कलाकार
सूत्रों की मानें तो यह पहला अवसर नहीं है जब संस्कृति विभाग द्वारा प्रदेश के मुख्य उत्सव में प्रदेश के ही कलाकारों को उपेक्षित होना पड़ा है। इससे पहले भी विगत कई सालों से यह सिलसिला चला आ रहा है कि प्रदेश के इस मुख्य उत्सव की पूरी जिम्मेदारी दिल्ली की कोरियोग्राफर मैत्रीय पहाड़ी एवं उनके समूह के लोगों को दी जाती है। इस बार भी यही हुआ और उत्सव की प्रमुख सांस्कृतिक प्रस्तुति मैत्रीय पहाड़ी एवं उनके साथी कलाकारों द्वारा दी जानी है।
विभागीय मिलीभगत भी है एक बड़ा कारण
प्रदेश के कलाकारों का आरोप है कि मैत्रीय पहाड़ी को कोरियोग्राफर चुने जाने के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के सहायक संचालक राहुल रस्तोगी रहते है। वे ही हर बार इस प्रस्तुति के लिए मैत्रीय पहाड़ी का नाम विभाग के आलाअधिकारियों के समक्ष रखते है। इस प्रस्तुति के लिए हर बार करोड़ों रूपए खर्च किए जाते है जिसका संस्कृति विभाग के पास कोई हिसाब-किताब भी नहीं होता। मैत्रीय पहाड़ी-राहुल रस्तोगी के खेमे की बताई जाती है और यह भी कहा जा रहा है कि प्रस्तुति के लिए स्वीकृत होने वाली वृहद राशि में करोड़ो रुपए का बंदरवाट होता है।
ये कलाकार भी कर सकते है प्रस्तुति तैयार
मध्यप्रदेश में ऐसे कई नामचीन और ख्यात कलाकार है जो देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी प्रस्तुति के लिए अलग पहचान रखते है। प्रदेश का प्रतिष्ठित शिखर सम्मान प्राप्त डॉ. लता मुंशी, डॉ. सुचित्रा हरमलकर, डॉ. अल्पना वाजपेयी, रागिनी मक्खर, बिंदु जुनेजा, कीर्ति बारिक, वी अनुराधा, सहित कई महिला कलाकार है जो प्रस्तुति तैयार करने की काबालियत रखतीं हैं। लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा उन्हें लगातार उपेक्षित किया जा रहा है। यदि सरकार अपने ही स्थानीय कलाकारों की काबिलियत पर भरोसा दिखाती तो निश्चित ही करोड़ों रुपए खर्च से बचती और प्रदेश के कलाकारों को रोज़गार मिलता। पहले ही कोरोना के संकट के कारण दो वर्षों से भी अधिक समय से प्रदेश के कलाकार आर्थिक रूप से परेशान है। यदि इस प्रस्तुति में उन्हें कार्य करने का अवसर मिलता तो निश्चित ही यह उनके लिए एक संबल होता।
संस्कृति विभाग के खेल से अंजान है मुख्यमंत्री
सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान संस्कृति विभाग द्वारा रचे गए इस मायाजाल से पूरी तरह अंजान है। विभाग के अध्यक्ष होते हुए भी उन्हें आलाअधिकारियों द्वारा सही जानकारी दी नहीं जाती। वे सिर्फ वहीं बात मुख्यमंत्री तक पहुंचाते है जिसमें उनका और उनसे जुड़े कलाकारों का भला हो जहां से उन्हें एक आय का स्त्रोत दिखाई पड़ता है। इसलिए मेरी प्रदेश के मुखिया से एक गुजारिश है कि वे अगली बार से जब भी इस तरह के आयोजन की नींव रखें तो उसमें प्रदेश के कलाकारों की वरिष्ठता और उनकी उपयोगिता को सुनिश्चित करें। जब प्रदेश के कलाकारों को राज्य उत्सव जैसे बड़े आयोजनों में काम करने का अवसर मिलेगा वे आत्मनिर्भर होंगे तभी सही मायने में मध्यप्रदेश आत्मनिर्भर बनेगा।