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- अखिलेश यादव की बेरुखी...
अखिलेश यादव की बेरुखी से आज़म खान सपा को कह सकते हैं अलविदा ?
(शमशाद रज़ा अंसारी)
रामपुर। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवम सपा के संस्थापक सदस्य आज़म खान लगभग ढाई साल से जेल में हैं। उनकी पत्नी एवम पुत्र जेल से रिहा हो चुके हैं। आज़म खान की गिरफ्तारी से लेकर अब तक सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उनके समर्थन में कोई आंदोलन नहीं किया। यहाँ तक कि विधानसभा में लगभग एक घन्टे तक बोलते हुए अखिलेश यादव ने आज़म खान का नाम तक नहीं लिया। आज़म खान एवम उनके परिवार के प्रति अखिलेश यादव की इस उदासीनता से आज़म खान के समर्थकों में ज़बरदस्त रोष है।
यह रोष इतना बढ़ गया है कि सोशल मीडिया के बाद अब खुले मंच से उनके समर्थक खुलकर अखिलेश यादव के खिलाफ बोलने लगे हैं। आज़म खान के बेहद करीबी माने जाने वाले एडवोकेट मोईन हसन खान द्वारा सोशल मीडिया पर अखिलेश यादव से सवाल किये गए। उन्होंने अक्कू भैया का खिताब देते हुए अखिलेश यादव को चापलूसों से घिरा हुआ बताया। जिसके बाद आज़म खान के मीडिया प्रभारी फ़साहत अली खान शानू ने पार्टी कार्यालय में आयोजित सभा में बोलते हुए अखिलेश यादव पर जमकर निशाना साधा।
आज़म खान के मीडिया प्रभारी एवम आज़मवादी मंच के राष्ट्रीय महासचिव फ़साहत अली खान शानू ने कहा कि आज आज़म खान रामपुर में नहीं हैं,रामपुर में समाजवादियों पर ज़ुल्म हो रहे हैं। हम किससे कहें और किसको जाकर अपना दर्द बताएं। आज़म खान साहब ने अपनी पूरी ज़िन्दगी समाजवादी पार्टी को दे दी।
शानू ने अखिलेश यादव को सम्बोधित करते हुए कहा कि 1989 में जब आपके पिता मुलायम सिंह को कोई मुख्यमंत्री बनाने को तैयार नहीं था तो आज़म खान ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। अखिलेश यादव जी हमने आपके पिता को रफीकुल मिल्लत का नाम दिया,आज़म खान ने 1992 में समाजवादी पार्टी का निर्माण किया था। जब आप कन्नौज से चुनाव लड़े थे तो आज़म खान ने कहा था कि टीपू को सुल्तान बना दो। तब आप मुख्यमंत्री बने। आपने जब बीजेपी का टीका बताते हुए कोरोना का टीका लगवाने को मना कर दिया था तो आज़म खान साहब ने मौत का सामना करना मंजूर किया,लेकिन आपकी बात को रखते हुए कोरोना का टीका नहीं लगवाया। इतना सब करने के बाद भी आपने हमारे साथ क्या किया।
शानू ने कहा कि हमें शिकायत बीजेपी से नहीं है,क्योंकि जो हमारा सलूक उनके साथ है,वही सलूक वो हमारे साथ करते हैं। हमें शिकायत उस समाजवादी से है,जिसे हमने खून पसीने से सींचा। हमारे कपड़ों से हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष को बदबू आती है।
फ़साहत अली ने कहा कि क्या सारा ठेका अब्दुल ने लिया है। अब्दुल ही दरी बिछाएगा, अब्दुल ही गोली खायेगा और अब्दुल ही जेल जायेगा। सीएए/एनआरसी में अब्दुल जेल जायेगा, अब्दुल पर मुकदमें किये जायेंगे और अब्दुल के घर की कुर्की की जायेगी। लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष जी आपके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकलेगा। हमने आपके पिता और आपको मुख्यमंत्री बनाया,लेकिन आप आज़म खान साहब को नेता विपक्ष भी नहीं बना सके। ये कड़वा सच है कि आपकी जाति ने भी आपको वोट नहीं दी। हमारी वजह से 111 सीट आई हैं। मुख्यमंत्री आप बनेंगे, नेता विपक्ष भी आप बनेंगे, हमें आप नेता विपक्ष भी नहीं बना सकते। आप सदन में एक घन्टे बोले, आपने सबके बारे में बात करते हुए कहा कि वो यहाँ बैठता था,वो वहाँ बैठता था, लेकिन आपने आज़म खान साहब का नाम तक नहीं लिया। आप डरते हैं कि आप हमारा नाम लेंगे तो वो लोग नाराज़ हो जायेंगे। आपने हमें मौत के मुँह में धकेल दिया। आपने हमारी दुश्मनी भाजपा से करा दी। सज़ा हमें मिली और मज़े आप ले गए।
शानू ने भर्राये गले से कहा कि दो-ढाई साल से आज़म खान साहब का परिवार मुसीबतें झेल रहा है,ज़िन्दगी मौत की लड़ाई लड़ रहा है। लेकिन आपने उन आज़म खान का नाम लोकसभा में और विधानसभा में नहीं लिया,जिनकी वजह से आपको 111 सीट मिलीं। आप इतने बेमुरव्वत थे कि आप आज़म खान साहब से जेल में मिलने तक नहीं गए। क्या ये मान लिया जाये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो कहा है कि अखिलेश यादव नहीं चाहते कि आज़म खान जेल से बहार आएं,यह सही है।
अंत में शानू ने कहा कि कोई कहे न कहे लेकिन जब आज़म खान बाहर आएंगे तो मैं उनसे ज़रूर कहूँगा कि हमारी आहें, हमारा दर्द, हमारी तन्हाईयाँ कह रही हैं कि कोई फैसला कीजिए।
आज़म खान के समर्थकों द्वारा दिए गए बयानों से यह तो तय है कि आज़म खान सपा से किनारा कर सकते हैं। क्योंकि आज़म खान को अनुशासन का पक्का माना जाता है। यही कारण है कि उनके कार्यकर्ता उनकी मर्जी के बिना एक शब्द भी नहीं बोलते हैं। आज़म खान के मीडिया प्रभारी द्वारा दिए गए इस बयान के बाद जब हिन्द न्यूज़ संवाददाता ने उनसे सम्पर्क करने का प्रयास किया तो उन्होंने फोन बन्द मिला।
यूज़ एन्ड थ्रो पर चलते हैं अखिलेश यादव
यदि देखा जाये तो आज़म खान के समर्थकों की यह नाराज़गी बेवजह नहीं है। आज़म खान को लेकर अखिलेश यादव की उदासीनता अब जगजाहिर हो चुकी है। वहीं दूसरी ओर बीते कुछ वर्षों में अखिलेश द्वारा सभी के साथ किये गए व्यवहार से उनकी छवि यूज़ एन्ड थ्रो करने वाले व्यक्ति की बन चुकी है।
वह व्यक्ति का इस्तेमाल करके उसे छोड़ देने में यकीन रखते हैं। इसकी शुरुआत अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव को किनारे करके की थी। जिसके बाद उन्होंने पार्टी के लिए जी तोड़ मेहनत करने वाले अपने चाचा शिवपाल यादव को भी नज़रअंदाज़ किया। जिससे आहत होकर शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन किया। हालाँकि विधानसभा चुनाव 2022 में अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल को साथ लिया,लेकिन चुनाव खत्म होते हुई शिवपाल को विधायकों की बैठक में नहीं बुलाया। जिससे शिवपाल अभी तक नाराज़ हैं। इसी चुनाव में मुस्लिम वोटों के लिए अखिलेश यादव आज़म खान से हमदर्दी जताने रामपुर तक पहुँच गए,लेकिन इसके बाद विधानसभा में उन्होंने आज़म खान का नाम तक नहीं लिया। इसके अलावा अपना हित साधने के लिये अखिलेश यादव ने मायावती एवम राहुल गांधी से गठनबन्धन किया, लेकिन चुनाव के बाद उनसे भी अखिलेश की नहीं बनी। राहुल से गठबंधन को अखिलेश ने बड़ी भूल बताया था।
इन सबको देखा जाए तो अखिलेश यादव को यूज़ एन्ड थ्रो पर विश्वास करने वाला कहा जाये तो गलत नहीं होगा।
आज़म बसपा में गए तो काम आएगा दलित-मुस्लिम गठजोड़
अब यदि आज़म खान सपा को छोड़कर बसपा की ओर रुख करते हैं तो प्रदेश में बसपा फिर वापसी कर सकती है। दलित-मुस्लिम का गठजोड़ बसपा को पहले भी सत्ता में ला चुका है। सर्वविदित है कि मायावती का कोर वोटर उनके सिवा कहीं नहीं जाता है। वहीं दूसरी ओर मुसलमानों में एकतरफा वोट करके दिखा दिया है कि यदि दूसरे वोट बैंक का साथ मिले तो वह निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। अखिलेश यादव अपने ही समाज का वोट पाने में असफल रहे हैं। ऐसे में आज़म खान बसपा में जाते हैं तो अखिलेश का सत्ता में आना सपना ही रह जायेगा।