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- बबूल के वृक्ष पर...
राजेश बैरागी
सत्ता की गाड़ी किसी को भी कुचल सकती है। यदि उस गाड़ी का नियंत्रण सत्ता के उद्दंड पुत्र के हाथों में है तो दृश्य काफी गंभीर हो सकता है और यदि नियंत्रण उसके हाथ में भी न रहे तो गाड़ी के लिए यह पहचान करने का कोई अवसर नहीं रहता कि कौन अपना है और कौन पराया है।
सत्ता की हनक सत्ता विरोधी लहर पैदा कर देती है। इस बीच यह जानना दिलचस्प हो सकता है कि अजय मिश्र टेनी जनप्रतिनिधि होने से पहले क्या थे।जो वो पहले थे और जिसे होने का उन्हें अब भी गुमान है, यदि वे वही रहते और सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद न बन पाते तो योगी की पुलिस संभवतः उन्हें ठोंक देती।
देश के गृह राज्यमंत्री का सार्वजनिक तौर पर अपने ही क्षेत्र के लोगों को सुधार देने और तड़ीपार कराने की धमकी देना क्या साबित करता है? यदि कर्म अच्छे न हों तो व्यवहार को संतुलित रखकर माहौल को बचाया जा सकता है। सत्ता की हनक ऐसा होने नहीं देती। परंतु लखीमपुर-खीरी की हिंसात्मक घटना के लिए किसानों का हद पार कर चुका उत्साह भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। भीड़ को भयभीत करने के लिए या भीड़ से भयभीत होकर गाड़ी को जिगजैग स्टाइल में दौड़ाया जा सकता है, तो भी यह गलत ही है।
भीड़ में शामिल लोगों में कितने किसान थे और कितने उन्हें उकसाने वाले, यह भी जांच का विषय है। जहां तक मैं समझता हूं किसान उपद्रवी नहीं होते। उन्हें उकसाया जा सकता है। उकसाने वाले लोग क्या चाहते हैं और कौन हो सकते हैं? उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अपनी जांच में सर्वप्रथम वहां के भाजपाइयों को तलब करना चाहिए। जवाब वहीं से निकलेगा, ऐसा मेरा अनुमान है।