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बांग्लादेश, दूसरा पाकिस्तान बनने की राह पर तेजी से घट रही हिन्दुओं की संख्या
ढाका: खुद को संवैधानिक रूप से धर्मनिरपेक्ष कहलवाने वाले देश बांग्लादेश में हिन्दुओं की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। दुर्गा पूजा के दौरान हिंदू समुदाय के साथ जो हिंसक घटनाएं देखने को मिली, उससे यही पता चलता है कि बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतें हावी हो रही हैं।
बांग्लादेश के बीते 40 साल के इतिहास पर नजर डालें तो हम पाएंगे कि यहां हिंदुओं की आबादी 13.5% से सिर्फ 8.5% रह गई है। बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन भारत में होता रहा है। बांग्लादेश में परंपरागत रूप से हिंदू सत्तारूढ़ अवामी लीग की मुखिया भले ही हिंदुओं समुदाय की सुरक्षा की गारंटी देती हों, लेकिन हाल ही घटनाओं पर उनकी सरकार की नाकामी दिखाती है कि वह भी इन पर रोक लगाने में असमर्थ हैं।
वामपंथी रुझान वाले गणसमिति आंदोलन के जुनैद साकी का कहना है कि सत्तारूढ़ अवामी लीग अल्पसंख्यकों विशेषकर हिंदुओं को सुरक्षा देने का बस वादा करती है। ये जमीन पर कहीं दिखाई नहीं देते। हिंदुओं पर हमले एक निश्चित पैटर्न पर होते हैं। कुछ सामग्री सोशल मीडिया पर पोस्ट की जाती है और इसे इस्लाम के खिलाफ करार दिया जाता है। फिर कट्टरपंथी संगठन हिंदुओं पर हमले का फरमान जारी कर देते हैं। इसके बाद हमलों का दौर शुरू हो जाता है। अल्पसंख्यक खासकर हिंदू समुदाय भी समझ चुका है, वे राजनीतिक रूप से हाशिये हैं और कुछ नहीं कर सकते।
बांग्लादेश में 1971 से 2011 के चार दशकों के दौरान कुल आबादी 110 फीसदी बढ़ी है। 1971 में आबादी 7 करोड़ 14 लाख थी। जो 2011 में बढ़कर लगभग 15 करोड़ हो गई। जबकि इसी अवधि के दौरान हिंदुओं की आबादी लगभग 96 लाख से सवा करोड़ ही हुई।
धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में स्थापित हुआ बांग्लादेश सन 1988 से एक इस्लामिक राष्ट्र बना हुआ है। हालांकि वहां की सरकारें अब भी धर्मनिरपेक्षता की बात करती रहती हैं, लेकिन वास्तविकता यही है कि धर्मनिरपेक्षता अब न तो बांग्लादेश के संविधान में बची है और न ही वहां के बहुसंख्यक समुदाय के व्यवहार में ही उसके दर्शन होते हैं। अब वहां धीरे-धीरे सबकुछ उस इस्लामिक कट्टरपंथ जैसा रूप लेता जा रहा है।