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जानिए मतगणना से पहले कैसे पता चलता है किसकी बनेगी सरकार
उत्तर प्रदेश में सात चरण विधानसभा चुनाव 2022 समाप्त हो गया है। यूपी में 10 फरवरी, 14 फरवरी, 20 फरवरी, 23 फरवरी, 27 फरवरी, 3 मार्च और 7 मार्च को सात चरण में मतदान हुआ। उत्तर प्रदेश में बहुमत का आंकड़ा 202 सीटों पर है। इस बार उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच सीधी टक्कर है। इस चुनाव में पहली बार पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से मैदान में हैं। उनके सामने भाजपा के करहल से भाजपा ने केंद्रीय मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल को उम्मीदवार बनाया है। गोरखपुर शहर विधानसभा सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी चुनाव लड़ रहे हैं, उनके सामने राजनीति के नई खिलाड़ी मैदान में हैं।
लेकिन सरकार किसकी बनेगी ये 10 मार्च को पता चलेंगा, लेकिन आज अलग-अलग मीडिया चैनलों और सर्वे एजेंसियों की तरफ से एग्जिट पोल जारी किए जाएंगे। किस राज्य में किस पार्टी की सरकार बन रही है? किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी? इसका अनुमान इनमें जारी किया जाएगा।
अब आप सोच रहे होंगे कि ये एग्जिट पोल है क्या? कैसे मतगणना से पहले ही ये सरकार बनने और बिगड़ने का दावा कर देते हैं? इसका इतिहास क्या है? एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल में क्या अंतर होता है?
पहले जान लीजिए ये एग्जिट पोल है क्या?
दरअसल एग्जिट पोल एक तरह का चुनावी सर्वे होता है। मतदान वाले दिन जब मतदाता वोट देकर पोलिंग बूथ से बाहर निकलता है तो वहां अलग-अलग सर्वे एजेंसी और न्यूज चैनल के लोग मौजूद होते हैं। वह मतदाता से वोटिंग को लेकर सवाल पूछते हैं। इसमें उनसे पूछा जाता है कि उन्होंने किसको वोट दिया है? इस तरह से हर विधानसभा के अलग-अलग पोलिंग बूथ से वोटर्स से सवाल पूछा जाता है। मतदान खत्म होने तक ऐसे सवाल बड़ी संख्या में आंकड़े एकत्र हो जाते हैं। इन आंकड़ों को जुटाकर और उनके उत्तर के हिसाब से अंदाजा लगाया जाता है कि पब्लिक का मूड किस ओर है? मैथमेटिकल मॉडल के आधार पर ये निकाला जाता है कि कौन सी पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती हैं? इसका प्रसारण मतदान खत्म होने के बाद ही किया जाता है।
कितने लोगों से सवाल पूछा जाता है?
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद श्रीवास्तव बताते हैं कि एग्जिट पोल कराने के लिए सर्वे एजेंसी या न्यूज चैनल का रिपोर्टर अचानक से किसी बूथ पर जाकर वहां लोगों से बात करता है। इसमें पहले से तय नहीं होता है कि वह किससे सवाल करेगा? आमतौर पर मजबूत एग्जिट पोल के लिए 30-35 हजार से लेकर एक लाख वोटर्स तक से बातचीत होती है। इसमें क्षेत्रवार हर वर्ग के लोगों को शामिल किया जाता है।
ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में क्या होता है अंतर?
ओपिनियन पोल: ओपिनियन पोल चुनाव से पहले कराए जाते हैं। ओपिनियन पोल में सभी लोगों को शामिल किया जाता है। भले ही वो वोटर हों या नहीं हों। ओपिनियन पोल के रिजल्ट के लिए चुनावी दृष्टि से क्षेत्र के प्रमुख मुद्दों पर जनता की नब्ज को टटोलने का प्रयास किया जाता है। इसके तहत क्षेत्रवार यह जानने की कोशिश की जाती है कि जनता किस बात से नाराज और किस बात से संतुष्ट है।
एग्जिट पोल: एग्जिट पोल मतदान के तुरंत बाद किया जाता है। एग्जिट पोल में केवल वोटर्स को ही शामिल किया जाता है। मतलब इसमें वही लोग शामिल होते हैं, जो वोट डालकर बाहर निकलते हैं। एग्जिट पोल निर्णायक दौर में होता है। मतलब इससे पता चलता है कि लोगों ने किस पार्टी पर भरोसा जताया है। एग्जिट पोल का प्रसारण मतदान के पूरी तरह से खत्म होने के बाद ही किया जाता है।
ओपिनियन पोल के बारे में रोचक जानकारी
दुनिया में चुनावी सर्वे की शुरुआत सबसे पहले अमेरिका में हुई।
जॉर्ज गैलप और क्लॉड रोबिंसन ने अमेरिकी सरकार के कामकाज पर लोगों की राय जानने के लिए ये सर्वे किया था।
बाद में ब्रिटेन ने 1937 और फ्रांस ने 1938 में अपने यहां बड़े पैमाने पर पोल सर्वे कराए।
इसके बाद जर्मनी, डेनमार्क, बेल्जियम तथा आयरलैंड में चुनाव पूर्व सर्वे कराए गए।
एग्जिट पोल के बारे में रोचक जानकारी
एग्जिट पोल की शुरुआत नीदरलैंड के समाजशास्त्री और पूर्व राजनेता मार्सेल वॉन डैम ने की थी।
वॉन डैम ने पहली बार 15 फरवरी 1967 को इसका इस्तेमाल किया था। उस समय नीदरलैंड में हुए चुनाव में उनका आकलन बिल्कुल सटीक रहा था।
भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन (आईआईपीयू) के प्रमुख एरिक डी कोस्टा ने की थी।
1996 में एग्जिट पोल सबसे अधिक चर्चा आए। उस समय दूरदर्शन ने सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएसडीएस) को देशभर में एग्जिट पोल कराने के लिए अनुमति दी थी।
1998 में पहली बार टीवी पर एग्जिट पोल का प्रसारण किया गया।
ये एजेंसी और चैनल कराते हैं सर्वे
टुडे चाणक्य
एबीपी-सी वोटर
न्यूजएक्स-नेता
रिपब्लिक-जन की बात
सीएसडीएस
न्यूज18-आईपीएसओएस
इंडिया टुडे-एक्सिस
टाइम्स नाउ-सीएनएक्स
सीएसडीएस