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राष्ट्रवाद: कल, आज और कल विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार शुरू, देश-विदेश के विद्वानों ने व्यक्त किए अपने विचार
मधेपुरा। भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र है। तमाम सामाजिक-राजनीतिक विविधताओं के बावजूद सांस्कृतिक भारत हमेशा एक रहा है। यही सांस्कृतिक भारत हमारे प्राचीन ग्रंथ में विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित है।
यह बात पूर्व सांसद एवं पूर्व कुलपति पद्मश्री प्रोफेसर डाॅ. रामजी सिंह ने कही। वे मंगलवार को दर्शनशास्त्र विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के तत्वावधान में ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन कर रहे थे। सेमिनार का विषय राष्ट्रवाद : कल, आज और कल था। इसमें देश-विदेश से सैकडों विद्वान, शोधार्थी एवं प्रतिभागी शिरकत कर रहे हैं।
डाॅ. सिंह ने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद वसुधैव कुटुंबकम् का आदर्श प्रस्तुत करता है। हमने कभी भी किसी दूसरे राष्ट्र को विजय करने का नहीं सोचा। हम मानते हैं कि पृथ्वी हमारी माँ है और हम सब उसकी संतान हैं। माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:।
उन्होंने कहा कि राष्ट्र को हम माँ मानते हैं और जैसे हमारे लिए हमारी माँ पूज्य है, वैसे ही अन्य लोगों की माँ भी सम्माननीय है। अतः हमारा राष्ट्र सबसे अच्छा कहना, यह अहंकार की भावना है। हमारा अपने राष्ट्र से प्रेम करें, लेकिन हमेशा दूसरे राष्ट्र की अवमानना नहीं करें।
उन्होंने कहा कि विकास एवं शांति के लिए सभी नागरिकों के बीच प्रेम एवं भाईचारा का होना जरूरी है। देश के नागरिक अलग-अलग गुटों में बंटे रहेंगे, तो देश की अखंडता प्रभावित होगी और अलग-अलग राष्ट्रों के बीच वैमनस्य रहेगा, तो विश्वशांति कायम नहीं हो सकेगी। अतः आज दुनिया में विश्व सरकार कायम करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि आज हम आजादी के 75वर्षों का उत्सव मना रहे हैं। लेकिन हमारे आँखों में आँसू आ जाता है कि इतने वर्षों में भी हम सबों के लिए रोटी, रोजी एवं मकान और शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सम्मान की गारंटी नहीं कर पाए। अतः अमृत महोत्सव उत्सव नहीं, आत्म मूल्यांकन एवं राष्ट्रीय संकल्प का वर्ष है। हम विश्व गुरु केवल भाषण देकर नहीं हो सकते हैं। हमें वैश्विक दृष्टि के साथ अपने राष्ट्र को उस ऊँचाई तक ले जाना चाहिए, जिससे संपूर्ण विश्व प्रेरणा ग्रहण करे।
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. रमेशचन्द्र सिन्हा ने कहा कि राष्ट्र मात्र भौगोलिक इकाई नहीं है। राष्ट्र संस्कृति मूल्यों का पूंज है। राष्ट्र की अवधारणा कुछ खास व्यक्ति या समूह तक सीमित नहीं है। इसमें सभी नागरिकों का समावेश है। राष्ट्र सभी धर्म, जाति, क्षेत्रों का सम्मलित रूप है।
उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में राष्ट्र की अस्मिता पर ध्यान दिया गया है और यह नए भारत के निर्माण का एक माॅडल प्रस्तुत करता है। हमें नए भारत का निर्माण करने के लिए वंचितों एवं सीमांतकों को ऊपर उठाना होगा।
विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. जटाशंकर ने कहा कि यूरोप तथा अन्य पश्चिमी राष्ट्रों की जो अवधारणा है, उससे भारतीय राष्ट्रवाद अलग रही है। यूरोपियन राष्ट्रवाद की अवधारणा संकीर्ण है। यह एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र से बिल्कुल पृथक करती है और राष्ट्र एवं राष्ट्र के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देती है। इसके विपरीत भारतीय राष्ट्रवाद संपूर्ण चराचर जगत के कल्याण की कामना करता है।
उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा सर्वसमावेशी रही है। हमारा आदर्श सर्वे भवन्तु सुखिनः है। यहाँ सर्वे में केवल भारत के लोग नहीं सम्मिलित है, बल्कि संपूर्ण विश्व समाहित है। इसमें मनुष्य के साथ- साथ संपूर्ण चराचर जगत, समस्त ब्रह्माण्ड सम्मिलित हो जाता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर डाॅ. आर. के. पी. रमण ने कहा कि भारत मात्र एक भौगोलिक इकाई नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक इकाई भी है। यह हमारी माँ है। हम माँ के रूप में भारत की पूजा-अर्चना एवं वंदना करते हैं।जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है। राष्ट्र का गौरवगान सर्वोत्तम भजन, राष्ट्रहित-साधन सर्वश्रेष्ठ तप और राष्ट्र के लिए निःस्वार्थ निष्ठा पवित्रतम यज्ञ माना गया है।
उन्होंने कहा कि हमारा भारत सदियों से एक सांस्कृतिक राष्ट्र है। हमारे पूर्वजों ने हमारे अंदर राष्ट्रवाद की जो अमर ज्योति जलाई है, उसकी दूसरी कोई मिशाल नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें दुनिया को बचाने के लिए आगे आना होगा। व्यक्ति को परिवार के हित में, परिवार को समाज के हित में, समाज को राष्ट्र के हित में और राष्ट्र को विश्व के हित में कार्य करना होगा। ... यदि ऐसा नहीं हो सका, तो मानवता नहीं बचेगी। हम स्वार्थ से ऊपर उठने का प्रयास करें और अपनी मिट्टी का कर्ज चुकाएँ- मातृभूमि के प्रति अपना फर्ज निभाएँ।
हिंदी विभाग की अध्यक्ष डाॅ. वीणा कुमारी ने कहा कि उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद एक उदात्त भावना है। इसके कारण देश के नागरिको उनके धर्म, भाषा, जाति इत्यादि सभी संकीर्ण मनोवृत्तियों को पीछे छोड़कर एक साथ खड़े होते है। इसकी वजह से ही देश के सैनिक एवं नागरिक अपने देश के लिए अपनी जान देने से पीछे नहीं हटते।
अतिथियों का स्वागत पूर्व कुलपति प्रोफेसर डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने किया। धन्यावाद ज्ञापन करते हुए प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने की। संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने किया।
इस अवसर पर डाॅ. गोविंद शरण (नेपाल), प्रो. राजकुमारी सिन्हा (राँची), जयती कपूर (मुम्बई), प्रो. विजय कुमार (भागलपुर), राजीव सिंह (भोपाल), शोभाकांत कुमार डाॅ. अमोल राय, डॉ. एम. आई. रहमान, डाॅ. जवाहर पासवान, एनसीसी ऑफिसर लेफ्टिनेंट गुड्डु कुमार, डाॅ. शंकर कुमार मिश्र, डाॅ. राजकुमार रजक, डाॅ. प्रियंका सिंह, रंजन यादव, सारंग तनय, किशोर कुमार, राहुल यादव, अमरेश कुमार अमर, माधव कुमार, दिलीप कुमार दिल, डाॅ. प्रत्यक्षा राज, सौरभ कुमार चौहान, गौरब कुमार सिंह, रौशन कुमार सिंह, डाॅ. स्वीटी कुमारी, श्रेया सुमन, शेखर सुमन आदि उपस्थित थे।
इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरूआत में एनसीसी कैडेट्स एवं दार्जिलिंग पब्लिक स्कूल, मधेपुरा के बैंड ने अतिथियों की अगुवानी की। संस्थापक कीर्ति नारायण मंडल की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। अतिथियों का अंगवस्त्रम् एवं पुष्पगुच्छ से स्वागत किया गया। वैदिक मंत्रोच्चार एवं दीप प्रज्जवलन के साथ कार्यक्रम की विधिवत शुरूआत हुई। कार्यक्रम के दौरान संगीत शिक्षिका शशिप्रभा जायसवाल द्वारा विशेष तौर पर देशभक्ति गीतों की प्रस्तुति किया। इस अवसर पर अधिनीतिशास्त्र : एक सामान्य परिचय पुस्तक का लोकार्पण भी हुआ।
सेमिनार हाॅल को राष्ट्रभक्ति के रंग में रंगने की कोशिश की गई। हाॅल के अंदर एवं बाहर राष्ट्रीय महापुरूषों के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई जाएगी। साथ ही राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े सौ तस्वीरों को विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया। अंत में राष्ट्रगान जन-गण-मन के सामूहिक गायन के साथ समारोह संपन्न हुआ।