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खूनी इश्क की दास्तान : शबनम और सलीम

Shiv Kumar Mishra
19 Feb 2021 9:14 AM IST
खूनी इश्क की दास्तान : शबनम और सलीम
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आसपास ऐसा माहौल था कि लोग अपने बच्चो को दूसरे के घर भेजने से भी कतराते थे।

अमरोहा का नाम एक बार फिर से विश्व स्तर पर रोशन होने जा रहा है लेकिन इस बार रोशनी में खूनी शाजिस, दुखी आत्माओं, गिले-शिफे और झूठे वादो के अलावा कुछ नही मिलेगा। जिस अमरोहा ने शायरो के बादशाह जाॅन एलिया, नखत अमरोही और कमाल के लेखक एवं फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही को जन्मा, वहीं शबनम और सलीम के खूनी प्रेम की शाजिस भी रची गई। 15 फरवरी को लगभग सभी याचिका खारिज होने के बाद बावनखेड़ी हत्याकांड की दोषी शबनम को फांसी होना तय हो चुका है। यदि ऐसा होता है, तो शबनम देश की प्रथम महिला होगीं जिसे फांसी की सजा मिली हो। जबकि भारत में रेयरेस्ट आॅफ रेयर मामलो में ही फांसी का प्रावधान है।

उस काली रात के मुखबिर गवाह क्या कहते हैं ? जब यह कांड हुआ , तो उस रात बावनखेड़ी के ही पास के गाँव मेें रामायण सम्पन्न हुई थी जिसमे शिरकत करने के लिए ब्लाक गजरौला, बांसली गाँव के निवासी दिनेश शर्मा, राम कुमार शर्मा, कृष्ण कुमार शर्मा, विनोद शर्मा और केशव शर्मा पैदल ही रामायण पढ़ने के लिए वहाँ गए थे, ये सभी निवासी आज भी बताते हैं कि लगभग 2 बजे रामायण पढ़कर जैसे ही बावनखेड़ी गांव मेंं शबनम के घर के सामने से ही गुजरे तो उन्हे शबनम के घर से कोलाहल सुनाई दिया, लेकिन इनमे से किसी ने भी इस प्रकार की आशंका नही जताई और करीब सुबह के चार बजे सीधे अपने घर लौट आए।

थोड़ी बहुत देर सोने के बाद जब सुबह इस कांड के बारे में इन्हे पता चला तो मानो सभी के पैरो तले जमीन ही खिसक ही गई हो। ये सब अचंभित हो उठे। उन दिनो मेेेेरी भी छोटी उम्र थी, जिसके कारण घरवालो ने इस कांड को मुझे भी नही बताया, लेकिन इस खबर को छुपा पाना असंभव था।लगभग हर मां-बाप अपनी औलाद से इस बारे मे कोई संवाद ही नही चाहता था। लोग बात करते थे, लेकिन छुप-छुपकर। क्योंकि आज किसी ने प्रेम प्रसंग के नाम पर खूनी संघर्ष को जन्म दिया था। आसपास ऐसा माहौल था कि लोग अपने बच्चो को दूसरे के घर भेजने से भी कतराते थे।


15 अप्रैल सन् 2008 को यह एक ऐसी घटना घटी थी जिसके 48 घंटे बाद इस पर वीडियो - फिल्मे बननी स्टार्ट हो गई थी, एक फिल्म का टाइटल था- "शबनम बनी शोला" शबनम ने न जाने उस वक्त कितने मासूूूम बच्चो की पढ़ाई भी छुड़वा दी थी जो संगत केे असर होने की झूठी आशंका के शिकार हुए थे। बावनखेड़ी के इस कांड ने अमरोहा को विश्व स्तर पर शर्मसार किया।ये केस इतना हाई प्रोफाइल बन गया था कि अगले दिन खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री, मायावती शबनम से मिलने और उसे सांत्वना देने आईं। इसकी वीभत्सता का पता इससे लगाया जा सकता है कि इसे एक दशक बाद आज भी 'अमरोहा मास मर्डर केस' के नाम से जाना जाता है।

आज एक परंपरा बन गई है, जब कोई युवा/युवती आपस में बेइंतहा प्रेम करते हैं तो उन पर अक्सर लैला-मजनू ,हीर-रांझा ,शीरी-फरहाद और रोमियो-जूलियट होने का टोंट कसा जाता है यहां तक कि एक प्रदेश सरकार ने रोमियो को ही नही बख्शा, एन्टी-रोमियो स्क्वायड चलाकर प्रेम की खूब धज्जी उड़ाई , शायद विदेशी नाम होने की वजह रही हो जबकि खुद के प्रदेश में शबनम और सलीम प्रेम के सबसे कद्दावर हत्यारे हैं।13 साल बाद खूनी इश्क का अंजाम यहां तक पहुँच गया है कि 7 मर्डर के बावजूद भी एक दोषी को सजा नही हो सकी है।अन्तिम याचिका खारिज होने के बाद अब शबनम को फांसी होना लगभग तय हो गया है।

मथुरा की जेल आज देश की पहली महिला को फांसी देने के लिए बेताब है। बताया जा रहा है, शबनम इन दिनो रामपुर की जेल में बन्द है।आज भी अमरोहा के लोग इस कांड को अपने जहन में दबाये हैं। जिस अमरोहा ने इश्किया शायर जौन को हमेशा प्यार की तालीम दी, वो अमरोहा आज कह रहा है मेरे साथ छल हुआ है, जिस अमरोहा ने फिजाओ को भी मोहब्बत करना सिखाया ,आज मोहब्बत के नाम पर उसका हरण हुआ है। ये अमन की नगरी कभी किसी के साथ अन्याय नही होने देती। - प्रत्यक्ष मिश्रा (पत्रकार)

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