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Cancer in India: कम होने के बजाय बढ़ोतरी पर हैं अनेक कैन्सर
भारत समेत दुनिया की सभी सरकारों ने वादा किया है कि 2025 तक कैन्सर दर और मृत्यु में कम-से-कम 25% गिरावट आएगी। पर पिछले सालों के आँकड़े देखें तो स्पष्ट होगा कि अधिकांश देशों में साल-दर-साल अनेक कैन्सर, कम होने के बजाय लगातार बढ़ोतरी पर हैं।
वैश्विक स्तर पर, 2010-2019 के दौरान कैन्सर दर 21% और कैन्सर मृत्यु दर 26% बढ़ी। भारत में भी पिछले दशक में हर साल कैन्सर दर में 2% तक बढ़ोतरी होती रही है। कैन्सर मृत्यु दर में भी हर साल 1% तक इज़ाफ़ा हो जाता है।
2025 तक सरकारें कैन्सर दर और कैन्सर मृत्यु दर 25% कम कैसे करेंगी जब वह बढ़ते कैन्सर दर को रोकने में ही असमर्थ हो रही हैं? कैन्सर को 2025 तक कम-से-कम एक-चौथाई कम करने के लिए अब सिर्फ़ 46 माह शेष रह गए हैं।
इसीलिए एपीकैट (एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र के देशों के महापौरों का संगठन) ने आह्वान किया है कि कैन्सर की रोकथाम और बचाव, बिना विलम्ब जाँच, सही इलाज और चिकित्सकीय प्रबंधन और देखभाल, एवं कैन्सर उत्पन्न करने वाले कारण (जैसे कि तम्बाकू), पर अत्याधिक कार्यसाधकता और उच्च प्राथमिकता पर कार्य हो। एपीकैट से जुड़े महापौर और अन्य स्थानीय नेतृत्व का मानना है कि स्थानीय स्तर पर एकीकृत स्वास्थ्य कार्यक्रमों को अधिक कारगर और प्रभावकारी बनाना होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कैन्सर दुनिया में असामयिक मृत्यु का एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से 2020 में 1 करोड़ लोग मृत हुए। हृदय रोग के बाद कैन्सर से ही सबसे अधिक मृत्यु होती हैं। एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र में, हृदय रोग के बाद कैन्सर ही सबसे बड़ा मृत्यु का कारण है जिसकी वजह से 45 लाख लोग हर साल मृत होते हैं।
एक-तिहाई कैन्सर तो ऐसे हैं जिनसे पूर्णतः बचाव मुमकिन है क्योंकि वह तम्बाकू या शराब सेवन, अपौष्टिक असंतुलित आहार, पर्याप्त शारीरिक गतिविधियाँ न करना, आदि के कारण होते हैं।
कोविड महामारी के दौरान हुए वैज्ञानिक शोध यही बताते हैं कि कैन्सर से पीड़ित लोगों में कोविड होने पर, कोविड के भयंकर परिणाम और मृत्यु होने का ख़तरा बहुत अधिक है। इसीलिए यह और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि यदि कैन्सर-सम्बंधित स्वास्थ्य सेवाएँ और सामाजिक सुरक्षा सबको मिले तो कोविड होने पर गम्भीर परिणाम होने का ख़तरा भी कम रहेगा और कैन्सर से बचाव भी हो सकेगा।
तम्बाकू से होने वाले हर रोग से बचा जा सकता है क्योंकि तम्बाकू से पूर्ण रूप से निजात पाना मुमकिन है। कैन्सर से होने वाली 25% मृत्यु सिर्फ़ तम्बाकू जनित होती हैं। सबसे घातक कैन्सर, फेफड़े का कैन्सर (लंग कैन्सर) है जिसका एक बड़ा कारण है तम्बाकू। कैन्सर दर कैसे कम होगी जब तम्बाकू सेवन जैसे कैन्सर का ख़तरा बढ़ाने वाले कारण पर पूर्णविराम नहीं लग रहा है?
द यून्यन एशिया पैसिफ़िक के निदेशक और एपीकैट के बोर्ड निदेशक डॉ तारा सिंह बाम ने कहा कि अनेक कैन्सर से बचाव मुमकिन है और इलाज भी उपलब्ध है। ज़रूरत है एक ज़िम्मेदार राजनैतिक नेतृत्व की जो कैन्सर रोकधाम के लिए समर्पित हो जिससे कि कैन्सर से बचाव हो सके, जो लोग कैन्सर से ग्रसित हैं उन्हें बिना-विलम्ब जाँच और सही इलाज मिले, सामाजिक सुरक्षा मिले, और जिन उद्योग के कारण कैन्सर पनप रहे हैं उनपर लगाम लगायी जा सके और उनको ज़िम्मेदार ठहराया जा सके (जैसे कि तम्बाकू उद्योग, शराब उद्योग, शीतल पेय उद्योग, आदि)।
इसीलिए एपीकैट (एशिया पैसिफ़िक महापौर संगठन) के सह-अध्यक्ष और इंडोनेशिया के बोगोर शहर के महापौर डॉ बीमा आर्य सुगीआर्तो ने कहा कि स्थानीय स्तर पर एकीकृत स्वास्थ्य और विकास के लिए सभी वर्गों को एकजुट होना होगा जिससे कि असामयिक मृत्यु पर अंकुश लगे और जानलेवा रोगों से लोग बच सकें। तम्बाकू नियंत्रण को सशक्त करना ज़रूरी है, ग़ैर-संक्रामक रोगों से लोगों को बचाने की दिशा में बहुत कार्यसाधकता के साथ प्रयासरत रहना है, और वाइरल हेपटाइटिस से भी लोगों को बचाना होगा।
2016 में एपीकैट (एशिया पैसिफ़िक महापौर संगठन) 12 शहरों के महापौर के साथ आने पर आरम्भ हुआ था जो आज विकसित हो कर 79 शहरों के महापौर को जोड़ रहा है जिससे कि स्थानीय स्तर पर एकीकृत स्वास्थ्य की दिशा में कार्य तेज़ी और मज़बूती से बढ़ सके।
इन्हीं महापौरों ने दिसम्बर २०२१ में एशिया पैसिफ़िक क्षेत्रीय महापौर सम्मेलन में एक घोषणापत्र भी पारित किया था, जिसके महत्वपूर्ण बिंदु रहे:
- तम्बाकू नियंत्रण मज़बूत हो जिससे कि लोग तम्बाकू जनित रोगों की चपेट में न आएँ और कोविड के गम्भीर परिणाम से भी बच सकें।
- कोविड के साथ-साथ अन्य स्वास्थ्य सेवाएँ भी प्राथमिकता पाएँ और सक्रिय रहें। टीबी सेवाएँ हो या ग़ैर संक्रामक रोगों की रोकथाम, उपचार और प्रबंधन-सम्बंधित सेवाएँ सभी सक्रिय रहें और मज़बूत हों जिससे कि सभी देश सतत विकास लक्ष्य की ओर अग्रसर होते रहें।
- एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र के देशों में वाइरल हेपटाइटिस एक बड़ी चुनौती बना हुआ है जबकि जागरूकता और टीके के ज़रिए इसका दुष्प्रभाव काफ़ी कम किया जा सकता है।
हेपटाइटिस सम्बंधित कैन्सर
एशिया पैसिफ़िक देशों में दुनिया के आधे से अधिक हेपटाइटिस-बी और हेपटाइटिस-सी से संक्रमित लोग हैं। 20 करोड़ लोग इस क्षेत्र में हेपटाइटिस-बी और हेपटाइटिस-सी से संक्रमित हैं (18 करोड़ हेपटाइटिस-बी से और 2 करोड़ हेपटाइटिस-सी से)। इनमें से अधिकांश को यह भी नहीं पता कि वह हेपटाइटिस से संक्रमित हैं।
भारत समेत दक्षिण-पूर्वी एशिया के अन्य देशों में 6 करोड़ लोग हेपटाइटिस-बी और 1 करोड़ लोग हेपटाइटिस-सी से संक्रमित हैं। इस दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र में दुनिया के 15% हेपटाइटिस से संक्रमित लोग हैं पर दुनिया में हेपटाइटिस से मृत होने वालों में से 30% मृत्यु इस दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र में ही होती हैं।
हेपटाइटिस के दीर्घकालिक संक्रमण वाले लोगों में जिगर (लिवर) का कैन्सर होने का ख़तरा अत्याधिक होता है, हेपटाइटिस से होने वाली हर मृत्यु असामयिक है क्योंकि हेपटाइटिस-बी से बचाव, जाँच और इलाज मुमकिन है और हेपटाइटिस-सी की जाँच, इलाज भी उपलब्ध है। हेपटाइटिस-बी का टीका भी है जो नवजात शिशु को लगना चाहिए।
यदि आने वाले समय में जिगर के कैन्सर में गिरावट देखनी है तो आज बहुत कार्यसाधकता के साथ प्रभावकारी कार्यक्रम संचालित करने होंगे जिससे कि लोगों को लिवर (जिगर) की बीमारियाँ ही न हों और कैन्सर का ख़तरा भी नगण्य रहे। सभी को हेपटाइटिस जाँच उपलब्ध रहे, जिससे कि लोगों को यह पता रहे कि उन्हें हेपटाइटिस संक्रमण तो नहीं, यदि है तो उपयुक्त इलाज और देखभाल मिले।
एशिया पैसिफ़िक हेपटाइटिस इलिमिनेशन इनिशिएटिव
इसीलिए एपीकैट (एशिया पैसिफ़िक महापौर संगठन) ने एशिया पैसिफ़िक हेपटाइटिस इलिमिनेशन इनिशिएटिव (एपीएचईपी) का आरम्भ किया जिससे कि हेपटाइटिस कार्यक्रम अधिक कारगर हों। जेनीवा, स्विट्सर्लंड में स्थित "द हेपटाइटिस फंड" के संस्थापक अध्यक्ष डॉ वैंग़शेंग ली ने सराहा कि एपीकैट ने वाइरल हेपटाइटिस को प्राथमिकता दी है। डॉ ली ने कहा कि एशिया पैसिफ़िक हेपटाइटिस इलिमिनेशन इनिशिएटिव के कारण उन्हें उम्मीद है कि २०३० तक वाइरल हेपटाइटिस का उन्मूलन हो सकेगा।
शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत - सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
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