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भीम आर्मी का समाजवादी पार्टी से सीटों पर सहमति न बन पाने के चलते गठबंधन न होने को लेकर विवाद अभी थमा नहीं है। सोमवार को लखनऊ में अखिलेश यादव ने एक तरफ इसके पीछे किसी साजिश की आशंका जताई तो दूसरी तरफ चंद्रशेखर रावण ने एक ट्वीट के जरिए हमला बोला। चंद्रशेखर ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा- 'विरासत से तय नहीं होंगे सियासत के फैसले। ये तो उड़ान तय करेगी, आसमान किसका है। जय भीम।'
गौरतलब है कि 15 जनवरी को भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर रावण ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की सम्भावनाओं पर विराम लगा दिया था। चंद्रशेखर ने आरोप लगाया था कि अखिलेश यादव शायद गठबंधन नहीं चाहते। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव से उनकी मुलाकात हुई थी। उनसे आरक्षण सहित विभिन्न मुद्दों पर बात हुई थी। उन्होंने शाम तक बताने को कहा था लेकिन कुछ नहीं बताया।
उन्होंने अखिलेश यादव पर खुद को और बहुजन समाज को अपमानित करने का आरोप लगाया था। चंद्रशेखर रावण ने अखिलेश यादव को दलित विरोधी बताते हुए कहा था कि हम समाजवादी के साथ गठबंधन में नहीं जा रहे हैं। हमारी लड़ाई विधायक बनने की नहीं है, हमें सामाजिक न्याय चाहिए। पिछले 5 साल में समाजवादी पार्टी ने दलितों की हत्या और उनके शोषण पर आवाज नहीं उठाई। अखिलेश पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाने के अगले ही दिन रविवार को चंद्रशेखर रावण ने कहा कि यदि सपा अध्यक्ष अपना छोटा भाई कहकर मदद करने को कहें तो बिना शर्त समर्थन को तैयार हूं। एक टीवी इंटरव्यू में अ्पनी बात रखते हुए चंद्रशेखर भावुक भी हो गए थे।
उधर, सोमवार को अखिलेश यादव ने लखनऊ में मीडिया से बात करते हुए चंद्रशेखर रावण के आरोपों का जवाब दिया। उन्होंने कहा- 'मैंने चंद्रशेखर आजाद से बातचीत में उन्हें दो विधानसभा सीटें देने की बात कही थी। मुझसे मुलाकात के दौरान वह इस पर राजी हो गए थे। लेकिन फिर बाहर आकर उन्होंने पता नहीं कहां बात की और कहा कि हम दो सीटों पर चुनाव नहीं लड़ सकते। दिल्ली में बात की या फिर कहां बात की, पता नहीं।' अखिलेश यादव ने कहा कि यूपी के चुनाव के लिए बड़ी-बड़ी साजिशें हो रही हैं।' मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी ने अपने गठबंधन में लोगों को साथ लेने के लिए त्याग किया है। भाजपा को हराने के लिए जो भी त्याग जरूरी होगा हम करेंगे। मैंने चंद्रशेखर जी को सीटें दी थीं। यदि वह भाई बनकर मदद करना चाहें तो करें। इतिहास भी उठाकर देखो तो पता लगेगा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर जी और डॉ. राम मनोहर लोहिया साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। पहली बार सदन में कांशीराम जी को हमारे गृह जनपद इटावा से भेजा गया था। हमारी मंशा साफ है और हम सभी को साथ लेने के लिए तैयार हैं।