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- बाल कल्याण सरकार की...
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) ने बच्चों से संबंधित विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए चालू वित्त वर्ष के बजट में किए गए धन आवंटन पर गहरी चिंता व्यक्त की है और इसे अपर्याप्त बताया है। गौरतलब है कि 2021-22 के बजट में बच्चों से संबंधित कुल बजटीय आवंटन में 11 प्रतिशत की कमी की गई है। बच्चों के कल्याण के मद में आवंटित धनराशि इस बार कुल बजट का मात्र 2.46 प्रतिशत ही है, जबकि वर्ष 2020-21 में यह 3.16 प्रतिशत था। यह चिंता की बात है कि 2021-22 के दौरान बच्चों के कल्याण के लिए आवंटित बजट का हिस्सा पिछले ग्यारह वर्षों के दौरान सबसे कम है। बच्चों के कल्याण के लिए आवंटित राशि 96,042 करोड़ से घटाकर 85,713 करोड़ कर दिया गया है। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन की स्थापना नोबेल शांति पुरस्कार से समामनित बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी द्वारा की गई है।
स्वतंत्रता के बाद हुई भारी आर्थिक प्रगति के बावजूद हमारे देश में बंधुआ और बाल मजदूरी लगातार जारी है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बाल मजदूरों की अनुमानित संख्या 1 करोड़ 10 लाख थी। उनमें से बड़ी संख्या में बाल बंधुआ मजदूर थे। वर्ष 1988 में राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना कार्यक्रम (एनसीएलपीएस) की शुरुआत बाल मजदूरों की पहचान, बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराने और उनका पुनर्वास कराने के उद्देश्य से की गई थी। इसी तरह 2016 में बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के उद्देश्य से केंद्रीय क्षेत्र योजना (सीएसएस) लागू की गई। यह योजना एक बंधुआ मजदूर को पुनर्वास के लिए 1 लाख रुपये की धनराशि का हकदार बनाती है। जबकि इसी योजना के तहत एक बाल और महिला बंधुआ मजदूरन 2-3 लाख रुपये पाने की हकदार है। इसके अलावा राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) के एक भाग के रूप में देश के 312 जिलों में जिला परियोजना समितियां (डीपीएस) बनाई गई हैं। इसी प्रकार बाल मजदूरों की सुरक्षा के लिए 3324 विशेष प्रशिक्षण केंद्र (एसटीसी) की भी स्थापना की गई है।
आधिकारिक स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार डीपीएस और एसटीसी चलाने पर निर्धारित वार्षिक व्यय क्रमशः 29.20 करोड़ और 113.81 करोड़ होते हैं। इसी प्रकार 58,896 मुक्त बाल मजदूरों को 400 रुपये प्रति महीने की दर से वजीफा देने से कुल व्यय 28 करोड़ 27 लाख का आता है और राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना के तहत एमओएल को होने वाला व्यय 168 करोड़ के आसपास बैठता है।
केएससीएफ की सहयोगी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने 2020-21 के 20 जनवरी तक 1,417 बाल बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराने का काम किया है। इस तरह से भारत सरकार की केंद्रीय क्षेत्र योजना के तहत प्रत्येक बाल बंधुआ मजदूर को पुनर्वास के मद में यदि 2 लाख रुपये के हिसाब से आवंटित किए जाते हैं, तो यह रकम 28 करोड़ 3 लाख के आसपास बैठती है। यहां यह कहने की जरूरत नहीं है कि देशभर में बाल बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया जा रहा है और 2020-21 के दौरान मुक्त बाल मजदूरों की संख्या इससे कहीं अधिक होगी।
एनसीएलपी के अंतर्गत जितनी भी संस्थाएं हैं और बीबीए द्वारा 2020-21 के दौरान जितने भी बच्चों को मुक्त कराया गया है, दोनों के पुनर्वास के लिए 199.6 करोड़ रुपयों की जरूरत होगी, जबकि बजट में इसके लिए मात्र 120 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि बच्चों का कल्याण सरकार की प्राथमिकता में नहीं है।
केएससीएफ के सीईओ श्री एससी सिन्हा ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ''बाल सुरक्षा सेवाएं (सीपीएस) उन बच्चों को प्रदान की जाती हैं जो दुर्व्यवहार या शोषण का शिकार होते हैं या समाज के सुरक्षा जाल से बाहर होते हैं। यह बच्चों की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है। बाल सुरक्षा सेवाएं गुलामी से मुक्त उन सभी बच्चों को प्रदान की जाती हैं जो मजदूरी, ट्रैफिकिंग, दुर्व्यवहार, बाल विवाह आदि के शिकार होते हैं। यह योजना जुवेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत स्थापित संस्थानों को चलाने के लिए धन भी प्रदान करती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट से पता चलता है कि बच्चों के यौन शोषण और शोषण के अन्य रूपों के अपराध लगातार बढ़े हैं। कोविड-19 महामारी के कारण हाशिए के लोग और हाशिए पर चले गए हैं। इसीलिए आज के दौर में सीपीएस कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।''
वर्तमान वर्ष के बजट में बाल सुरक्षा सेवाओं को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (एमडब्ल्यूसीडी) के तहत "वात्सल्य मिशन" नामक एक नए कार्यक्रम में मिला दिया गया है। इस कार्यक्रम में सीपीएस के अलावा बाल कल्याण सेवाओं को भी मिला दिया गया है। दूसरी ओर वात्सल्य मिशन के लिए वर्तमान बजट में मात्र 900 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो 2020-21 में सीपीएस के तहत आवंटित धनराशि 1500 करोड़ रुपयों से काफी कम है। जाहिर है, इस कमी से विभिन्न बाल संरक्षण सेवाएं प्रभावित होंगी।
बच्चों की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए आवंटित धन का यदि विश्लेषण किया जाए तो उसका भी निष्कर्ष बच्चों की सुरक्षा सेवाओं की तरह ही निकलता है। शिक्षा मंत्रालय के समग्र शिक्षा कार्यक्रम के लिए चालू वित्त वर्ष के बजट में जितने धन का आवंटन किया गया है, वह 2020-21 में आवंटित किए गए धन से 20 प्रतिशत कम है। जबकि इस कार्यक्रम के तहत प्राथमिक, माध्यमिक और शिक्षक की शिक्षा व प्रशिक्षण आदि भी शामिल है। वर्ष 2020-21 के बजट में इसके लिए 36,322 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया था, जबकि 2021-22 के बजट में इसे घटा कर 31,050 करोड़ रुपये कर दिया गया। धनराशि के आवंटन में यह कमी बच्चों की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी। विशेष रूप से उन गरीब परिवारों के बच्चों पर जो सरकारी स्कूलों पर निर्भर है। चूंकि शिक्षकों के प्रशिक्षण को भी समग्र शिक्षा कार्यक्रम में शामिल किया गया है, इसलिए यह कमी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।
नई शिक्षा नीति 3-6 साल के बीच के बच्चों की स्कूल-पूर्व शिक्षा को बहुत अधिक महत्व देती है। गरीब परिवारों के बच्चों को स्कूल पूर्व शिक्षा आंगनवाड़ियों द्वारा प्रदान की जाती है। आंगनवाडि़यां गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को भी 6 वर्ष तक के बच्चों को भोजन और पूरक पोषण प्रदान करती है। चालू वित्त वर्ष में एमडब्ल्यूसीडी की आंगनवाड़ी सेवा और राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम) द्वारा संचालित दो प्रमुख योजनाओं को एक साथ एक नई योजना में विलय कर दिया गया है, जिसका नाम "सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0" है। वर्ष 2021 के दौरान समन्वित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के लिए बजटीय आवंटन 19,916 करोड़ रुपये था। वहीं एनएनएम के लिए 3,700 करोड़ रुपये। इस प्रकार दो कार्यक्रमों के लिए कुल बजटीय आवंटन 23,616 करोड़ रुपयों का रहा। जबकि नई योजना के लिए आवंटित धनराशि मात्र 19,413 करोड़ रुपयों का है। यानी नई योजना के लिए आवंटित धनराशि में 18 प्रतिशत की कमी की गई है। चालू वित्त वर्ष के बजट में आवंटित धनराशियों में कमी से बच्चों की बेहतर स्कूली शिक्षा और उनके पोषण की स्थिति में सुधार के दोहरे लक्ष्यों को प्राप्त करना दूर का सपना लगता है।