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चुनाव जीतने के लिए रेवड़ियां बांटने की होड़: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरपरस्ती में समूचे देश के भीतर खेला जा रहा है घटिया व अनैतिक खेल

महेश झालानी
इनदिनों चुनावों के वक्त रेवड़ियां बांटने का प्रचलन बहुत बढ़ गया है । चुनाव जीतने और मतदाताओ को लुभाने के लिए हर राजनीतिक दलों द्वारा सरकारी खजाने से रेवड़ियां बांटने में जुटी हुई है । राजनीतिक दलों में होड़ मची हुई है कि मतदाताओ को काबू करने के लिए कौनसा हथकंडा अपनाया जाए। इसी होड़ के चलते राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे को पछाड़ने के लिए ओछे और अनैतिक आचरण पर उतर आई है ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेवड़ी बांटने की कल्चर की अनेक बार सार्वजनिक मंच से मुखालफत की थी । उनका मानना था कि चुनावो के समय रेवड़ियां बांटना बहुत ही गलत आचरण है । बावजूद इसके नरेंद्र मोदी की पार्टी बीजेपी इनदिनों हरियाणा में थोक भाव मे रेवड़ियां बांटने के अभियान में सक्रिय है । स्कूटी, महिलाओ को हर माह पेंशन, अग्निवीरो को नौकरी का वादा करके मतदाताओ को लुभाने का प्रयास किया जा रहा है । प्रधानमंत्री की निगाह में रेवड़ियां बांटना अनैतिक आचरण है तो हरियाणा आदि प्रदेशो में बीजेपी अनैतिक आचरण करने पर आमादा क्यों ?
हकीकत यह है कि कोई भी पार्टी इस अनैतिक आचरण से अछूती नही है । कांग्रेस हो या आप । बीजेपी हो या टीडीपी, सभी दल वोट बटोरने के लिए टुच्ची हरकत करने पर उतारू है । दिल्ली में जब केजरीवाल ने मुफ्त बिजली, पानी, राशन आदि का वितरण किया जाने लगा तो बीजेपी ने जमकर केजरीवाल को आड़े हाथों लिया । लेकिन आज खुद बीजेपी केजरीवाल की तर्ज पर मुफ्त की सामग्री बांटने को विवश है । क्या मोदी को हस्तक्षेप कर ऐसे घटिया कारनामो पर रोक नही लगानी चाहिए ?
सभी राजनीतिक दलों का एक ही मकसद है येन-केन-प्रकारेण जीत हासिल की जाए । उन्हें मतदाताओ से कोई मतलब नही है । मतलब है तो केवल सत्ता पर काबिज होंना । सता हासिल करने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां ओछे हथकंडे अपनाने को विवश है । कई पार्टिया केवल चुनाव के वक्त ही लुभावनी घोषणा करती है । चुनाव जीतने के बाद उन घोषणाओं को पूरी तरह भुला दिया जाता है ।
नरेंद्र मोदी ने चुनाव के दौरान देश की जनता से वादा किया था कि देश का तमाम काला धन विदेशो से वापिस लाया जाएगा । क्या हुआ उस वादे का ? बल्कि उनके वादे के बाद विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे लोग खरबो रुपये डकार कर विदेश भाग गए । 56 इंच वाले मोदी इतने सालों से विदेशी धन वापसी को लेकर खामोश क्यो है ? क्या हुआ उस दहाड़ का कि न तो खाऊंगा और न किसी को खाने दूंगा । हकीकत यह है कि मोदी की सरपरस्ती में अनेक लोग देश का पैसा चरने में लगे हुए है । इसी तरह कांग्रेसी शासन में भी कई लोग सरकारी पैसो को डकार गए ।
चूंकि सभी राजनीतिक दल एक ही थैली के चट्टे बट्टे है । नाम अलग अलग है । लेकिन चरित्र सबका एक जैसा है । वैसे भी आजकल बड़ी बेशर्मी और बेहयापन से एक दूसरे दल में जाकर पिछली पार्टी को गरियाने का जबरदस्त रिवाज चल पड़ा है । राजनेताओ में न नैतिकता बची और न ही शर्म व लिहाज । सत्ता पर काबिज होने के लिए राजनेता नैतिकता की सभी दीवारे फांदने को लालायित है ।
इस हकीकत से कोई इनकार नही कर सकता है कि सत्ता पर काबिज होने के बाद राजनीतिक पार्टियां औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने, एम्स, आईआईटी जैसी संस्थान खोलने के बजाय अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए निर्ममता से सरकारी खजाने का दुरुपयोग किया जाता है । यह आम जनता का कल्याण नही, राजनीतिक टुच्चापन है । सभी राजनीतिक दलों को मिलकर ऐसी आचार संहिता विकसित की जानी चाहिए जिससे सरकारी धन को पलीता नही लगाया जा सके । चुनाव आयोग को भी चौकस रहने की आवश्यकता है ।
यदि कोई राजनीतिक दल मुफ्त में सामान देने का चुनावी वादा करता है तो उसकी तमाम राशि राजनीतिक दल को स्वयं वहन करनी चाहिए । सरकार खजाने पर सेंध लगाने का किसी को कोई हक नही है । आजकल कोई घटना या दुर्घटना घटित होने पर मामले पर छीटें डालने की गरज से लाखों रुपये का मुआवजा, दुकान का आवंटन, सरकारी नौकरी देने का प्रचलन बहुत बढ़ गया है । राजनेता ऐसे उदार होकर घोषणा करते है जैसे सरकारी खज़ाना उनके बाप-दादा छोड़कर गए हो । इस तरह की अनैतिक घोषणा से लोगो मे ब्लैकमेल की प्रवृति बढ़ती ही जा रही है ।
कुछ राजनेता घटिया प्रचार करने के लिए राशन की बोरी, पाठ्य पुस्तकों और आवंटन पत्र आदि पर अपना फ़ोटो छपवा कर सरकारी खजाने को पलीता लगा देते है । फ़ोटो तो ऐसे छपवाते है जैसे राशन आदि का तमाम खर्च वे स्वयं वहन कर रहे हो । वसुंधरा हो गहलोत, शिवराजसिंह चौहान हो य…
