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गंगा नदी में शुरू हुई डॉल्फिन की गिनती, यहां जानिए कैसे होगी इनकी गिनती
गंगा नदी में शुरू हुई डॉल्फिन की गिनती।
Dolphin: गंगा नदी में डॉल्फिन की गिनती शुरू हो गई है। दो से छह अक्टूबर तक बिजनौर से गढ़मुक्तेश्वर और गढ़मुक्तेश्वर से नरौरा बुलंदशहर के बीच डॉल्फिन की गिनती की जाएगी। इस बार एक बोट की बजाय दो बोट में टीमें डॉल्फिन की गणना करेंगी और उनकी जीपीएस लोकेशन सेट करेंगी। इसके बाद छह अक्टूबर को जीपीएस के माध्यम से गूगल मैप पर उनकी लोकेशन देखकर गिनती की जाएगी। आठ अक्टूबर को गणना करने वाली टीम ब्रजघाट पहुंचेगी।
पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है डॉल्फिन का उल्लेख
गांगेय डॉल्फिन विश्व में पाई जाने वाली दुर्लभ डॉल्फिन की प्रजातियों में से एक है। डॉल्फिन का वर्णन पौराणिक ग्रंथों एवं ऐतिहासिक पुस्तकों में भी मिलता है। स्तनधारी जीव होने के कारण यह नदी की सतह पर आकर सांस लेतीं हैं। श्वांस की ध्वनि के कारण ही इसको आमतौर पर सूंस या सुसु के नाम से भी जाना जाता है।
तेजी से कम हो रही है डॉल्फिन की संख्या
किसी समय बड़ी संख्या में पाई जाने वाली गांगेय डॉल्फिन की संख्या अब घटकर केवल 3500 रह गई है। इसका मुख्य कारण प्रतिदिन नदियों का घटता जलस्तर और प्रदूषण है।
टीमें कैसे गिनेंगी डॉल्फिन
डब्लूडब्लूएफ विभाग के सीनियर कोऑर्डिनेटर संजीव यादव ने बताया कि इस बार डॉल्फिन की गणना के बारे में छह अक्टूबर के बाद ही सही स्थिति पता लगेगी। पिछले वर्ष की तरह इस बार भी जीपीएस सिस्टम से डॉल्फिन को लोकेट किया जा रहा है। दो टीमें डॉल्फिन की गणना कर रही हैं। जीपीएस से यह देखा जाएगा कि जो डॉल्फिन दोनों टीमों को दिखी हैं वह एक ही हैं या अलग-अलग लोकेशन पर हैं।
गंगा नदी अभ्यारण्य घोषित
वर्तमान में गांगेय डॉल्फिन भारत, नेपाल एवं बांग्लादेश में गंगा, ब्रह्मपुत्र, मेघना एवं करनाफुल्ली नदी में पाई जाती हैं। गांगेय डॉल्फिन का 80 प्रतिशत क्षेत्र भारत की सीमा में आता है। भारत में गांगेय डॉल्फिन को भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत कानूनी संरक्षण के साथ-साथ राष्ट्रीय जलीय जीव का दर्जा भी प्राप्त है।
डॉल्फिन के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए 1991 में केंद्र सरकार द्वारा बिहार में सुल्तानगंज से कहलगांव के बीच 50 किमी लंबाई में फैली गंगा नदी को विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन अभ्यारण्य घोषित किया गया था। यूपी में डॉल्फिन के आवास संरक्षण की पहल करते हुए विश्व प्रकृति निधि भारत एवं वन विभाग के संयुक्त प्रयास से गढ़मुक्तेश्वर से नरौरा बैराज के बीच की लगभग 100 किमी गंगा नदी को रामसर साइट 2005 में घोषित कराया गया था।
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उद् भव त्रिपाठी
इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज से स्नातक पूर्ण किया हूं। पढ़ाई के दौरान ही दैनिक जागरण प्रयागराज में बतौर रिपोर्टर दो माह के कार्य का अनुभव भी प्राप्त है। स्नातक पूर्ण होने के पश्चात् ही कैंपस प्लेसमेंट के द्वारा haribhoomi.com में एक्सप्लेनर राइटर के रूप में चार महीने का अनुभव प्राप्त है। वर्तमान में Special Coverage News में न्यूज राइटर के रूप में कार्यरत हूं। अध्ययन के साथ साथ ही कंटेंट राइटिंग और लप्रेक लिखने में विशेष रुचि है।