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सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने का श्रेय मोदी सरकार से ज़्यादा कांग्रेस को जाता है
वरिष्ठ पत्रकार हरीश गुप्ता के ताजा ब्लॉग के कुछ अंश-
नरेंद्र मोदी विनिवेश शब्द के 'जनक' नहीं हैं. इसका श्रेय 1991 में पी.वी. नरसिम्हा राव को जाता है, जिन्होंने वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और स्वतंत्र प्रभार वाले वाणिज्य राज्य मंत्री पी. चिदंबरम के साथ इसकी प्रक्रिया शुरू की थी. यह रिकॉर्ड में दर्ज है कि 1991-96 के बीच 31 सार्वजनिक उपक्रमों को महज 3038 करोड़ रु. में बेच दिया गया था.
वाजपेयी सरकार ने दिसंबर 1999 में एक अलग विनिवेश विभाग बनाकर इसे एक कदम आगे बढ़ाया और स्वर्गीय अरुण जेटली इसके पहले मंत्री बने जिन्होंने हिंदुस्तान लीवर को मॉडर्न फूड्स (दिल्ली मिल्क स्कीम सहित) बेचा. प्रारंभ में, विनिवेश आईओसी, बीपीसीएल, एचपीसीएल, गेल और वीएसएनएल जैसी बड़ी ब्लू चिप कंपनियों में शेयरों की बिक्री तक सीमित था.
फिर प्रधानमंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम का युग आया, जिन्होंने यूपीए के दस वर्षो के शासन के दौरान एक के बाद एक पीएसयू को बेचने की काफी कोशिश की. इस लेखक द्वारा विभिन्न आधिकारिक स्नेतों से एकत्र किए गए डाटा से पता चलता है कि 107879 करोड़ रुपए तब मुनाफा कमाने वाले सार्वजनिक उपक्रमों और शेयरों को बेचकर अर्जित किए गए थे.
1991 से 2014 के बीच लगातार पांच प्रधानमंत्रियों की 23 साल की अवधि के दौरान सार्वजनिक उपक्रमों की बिक्री के माध्यम से सिर्फ 152781 करोड़ रु. ही मिल सके थे लेकिन मोदी ने अपने सात वर्षो के शासन (2014-2021) के दौरान ही 3.61 लाख करोड़ रु. जुटा लिए हैं, जो 23 वर्षो में एकत्र की गई राशि के दोगुने से भी अधिक है.
कम से कम 35 सार्वजनिक उपक्रम बिक्री के लिए तैयार हैं और कई और अगले वित्त वर्ष की सूची में जोड़े जा सकते हैं.
सन्दर्भ : रंगनाथ सिंह