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- पुण्यतिथि : गणेश शंकर...
हफीज किदवई
आप गौर से देखिये तो जानिएगा की देश में दो ऐसी महान आत्माएं हुई हैं, जिनकी हत्या के बाद न दंगे हुए,बल्कि हत्या के समाचार ने दंगो को रोक दिया,एक थे महात्मा गांधी और दूसरे गणेश शंकर विद्यार्थी, दोनों को सांप्रदायिक विचार ने शहीद किया मगर यह ऐसी रूह थे,की लोगों ने इसपर अफसोस किया, न कि बदला लेने निकल गए । एक हत्या के बदले लाखों हत्या के खूनी नाच को रोक दिया गया ।
दोनों के मानने वालों ने उनके बाद उन्ही के विचारों के अनुरूप हिंसा को रोकने और सद्भाव को कायम करने में अपनी जीतोड़ मेहनत की । गणेश शंकर विद्यार्थी का आज जन्मदिन है । 1890 अक्टूबर 26 को जन्मे गणेश जी उस पत्रकारिता की लम्बी लकीर हैं जिसे अभी तक कोई पार नही कर सका । भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद समेत क्रांतिकारियों के हमदर्द और मौलाना हसरत मोहानी जैसी आंधी के साथ साथ महात्मा गांधी के बहुत करीब तक असर रखने वाले गणेश शंकर कभी यह कहकर रोए नही और न ही लोगों को उकसाया की हमे मार दिया जाएगा ।बेख़ौफ़,साफदिल गणेश उस दंगो से उपजी कट्टर मुसलमानों की भीड़ में कूद गए जो उनके नामभर हिन्दू को भी खत्म करने को आमादा थी । वह उन कट्टर हिन्दुओं में भी उतरे थे जो मुसलमानो के घर और दुकान जलाकर उनके लोगों को मार देना चाहती थी । गणेश जी जानते थे कि दंगे की शुरआत भले किसी एक कि गलती से हों मगर जैसे जैसे यह बढ़ता जाएगा,सबकी गलतियां बराबर होती जाएँगी और दोनों ही वहशी होने के झंडे उठा लेंगे ।
वहीं वह आपस में लड़ते हुए लोगों को देखकर,मुस्कुराते हुए अंग्रेज देख रहे थे । जो भी अपनी मिट्टी से प्रेम करेगा और भारत माँ का सच्चा बेटा होगा,वह हिन्दू-मुसलमान को आपस में लड़ता देख तड़प उठेगा,कोई बदतर किरदार का आदमी ही इन्हें आपस में लड़ता देख खुश होगा । उस दिन गणेश जी की हत्या हुई,यक़ीन जानो अगर वह जीवित होते और कोई कहता कि आपकी मौत इन दोनों धर्मो को आपस मे जोड़ सकती है, तो चाहे गणेश जी हों,चाहे गांधी जी हों,हँसी हँसी मौत को चुनते,मैं भी कहता हूं कि यदि मेरी मौत से देश में हिन्दू मुस्लिम एकता और सद्भावना आ रही हो,तो दो पल नही लगेंगे इस जान को जिस्म से अलग करते हुए और यह हम ही नही,हर देश प्रेमी जिसे अपनी मिट्टी से मोहब्बत है, बेहिचक कर जाएगा,क्योंकि सबका ख़्वाब है मुल्क में प्रेम और भाईचारा रहे ।
गणेश जी की हत्या ने दंगो को शांत कर दिया और इतनी महान आत्मा की लाश भी बहुत खोजकर मिली,मगर उनके रक्त ने वहशी हो चुके जीवों को दोबारा इंसान बनाया । ख़ैर वह वक़्त निकल गया ।मारने वाले लोग नए आ गए तो मरने वाले भी नए आ गए ।गणेश शंकर को नमन की उन्होंने लिखने की ऐसी लकीर खींची जिसपर चलना सच्चे दिल की निशानी है । गणेश की मोहब्बत लम्बे अरसे तक हम जैसों को ताक़त देती रहेगी ।जो मर जाएँगे मगर शिकवा नही करेंगे ।जो मिट जाएँगे मगर अपनी माटी को शर्मिंदा नही होने देंगे ।हम सबके ख़ून से इंसानियत अगर खुशहाल हो तो मरना हमारा फ़र्ज़ है... गणेश जी नमन आपको....