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- दिशा, टूल किट और...
टूलकिट मामले में दिशा रवि की ज़मानत की अर्ज़ी पर फैसला सुनते हुए दिल्ली की अदालत का फैसला ऐसे वक़त में नज़ीर बनकर हम सब के सामने आया है जबकि देश के हर कोने में मानवाधिकारों के हनन का सवाल मुंह बाए खड़ा हो रहा है और इन मामलों में अमूमन अदालती फ़ैसले कार्यकारिणी के पक्ष में माने जा रहे हैं।दिल्ली की अदालत का यह फैसला भाजपा सरकार,उसकी पुलिस व दूसरी जांच एजेंसियों और उस मुख्यधारा मीडिया के एक बड़े हिस्से के मुंह पर तमाचा है जो दिशा रवि और टूलकिट मामले को 'एटम बम' की तरह पेश कर रही थी। निष्पक्ष न्यायपालिका का गाला दबाने की प्रवत्ति का जैसा उदय हाल के सालों में हुआ है देखना होगा कि दिल्ली के उक्त युवा न्यायाधीश उससेकब तक बचे रह पाते हैं।
दिशा रवि को ज़मानत देते हुए दिल्ली की पटियाला कोर्ट अदालत ने कहा कि "किसी भी लोकतांत्रिक देश में नागरिक सरकार की अंतरात्मा की आवाज़ के रक्षक होते हैं। उन्हें जेल में सिर्फ इस आधार पर नहीं डाला जा सकता है कि वे सरकार की नीतियों से सहमत नहीं । राजद्रोह सरकारों के घायल अहं की तुष्टि के लिये नहीं लगाया जा सकता है। एक जाग्रत और मज़बूती से अपनी बातों को रखने वाला नागरिक समाज स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है।"
हमारे देश में व्याप्त नागरिक स्वतंत्रता की प्राचीन परम्परा का हवाला देते हुए न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा कि "हमारे पूर्वजों ने बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक सम्मानजनक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी और अलग-अलग विचारों को सम्मान दिया। भारत के संविधान में अनुच्छेद 19 के तहत असहमति का अधिकार दृढ़ता से निहित है।"
अदालत ने निहारेन्दुदत्त मजुमदार बनाम सम्राट मामले के फ़ैसले का सन्दर्भ उद्धृत करते हुए कहा "विचारों की भिन्नता, अलग-अलग राय, असहमति यहाँ तक अनुपात से अधिक असहमति भी सरकार की नीतियों में वैचारिकता बढ़ाती है।"
कोर्ट का कहना था कि जिन आरोपों के तहत दिशा को गिरफ़्तार किया गया है उसके लिए रत्ती भर भी सबूत नहीं है। उसने यहाँ तक कह दिया कि "22 साल की एक ऐसी लड़की जिसके ख़िलाफ़ पहले कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है उसको ज़मानत नहीं देने का कोई कारण नहीं बनता।"
दिशा पर टूलकिट के पीछे सिख अलगाववादी संगठन 'पोएटिक जस्टिस फ़ाउंडेशन' (पीजेएफ़) का हाथ होने के पुलिस के गंभीर आरोप थे। इसी के मद्देनज़र उस पर अंतरराष्ट्रीय साज़िश रचने और राजद्रोह जैसे आरोप लगाए गए थे। दिल्ली पुलिस के मुताबिक़, दिशा ने निकिता जैकब और शांतनु के साथ मिलकर टूलकिट को तैयार किया था। इस टूलकिट को स्वीडन की पर्यावरणविद ग्रेटा तनबर्ग ने ट्वीट किया था। दिशा रवि ने अदालत को बताया था कि उसने इस टूलकिट को नहीं बनाया है और वह सिर्फ़ किसानों का समर्थन करना चाहती है।
पुलिसिया आरोपों को ख़ारिज करते हुए मननीय अदालत ने कहा कि '26 जनवरी को हिंसा के अपराधियों को उस पीजेएफ़ (पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन) या याचिकाकर्/आरोपी से जोड़ने वाला रत्ती भर भी सबूत मेरे सामने नहीं लाया गया है।
दिल्ली पुलिस ने दिशा रवि के मामले में अदालत से कहा था कि 'हालांकि ऐसा कोई सबूत नहीं है जिसके आधार पर अभियुक्त का हिंसा से सीधा सम्बन्ध जोड़ा जा सके, पर जो स्थितियाँ हुई थीं उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अलगाववादी ताक़तों ने हिंसा फैलाई थीं और किसान आन्दोलन सिर्फ इसके लिए एक मुखौटा था।' दिल्ली पुलिस ने दिशा पर राजद्रोह की धारा के तहत भी केस दर्ज किया था। अदालत ने लिखा, "अभियोग झूठा, बढ़ा-चढ़ा कर लगाया गया या ग़लत नीयत से भी लगाया हुआ हो सकता है, पर उसे तब तक राजद्रोह कह कर कलंकित नहीं किया जा सकता जब तक उसका चरित्र सचमुच हिंसा पैदा नहीं कर रहा हो।" राजद्रोह के मामले में जज ने 1962 के केदार नाथ मामले का हवाला देते हुए कहा कि 'सिर्फ शब्दों से ही नहीं, बल्कि उन शब्दों के कारण वास्तव में हिंसा या उसके लिए उकसावा देने का मामला साबित होना चाहिए।'
दिशा पर आरोप लगाया गया कि वो खालिस्तान समर्थक मो धालीवाल के संपर्क में थी। इस आरोप पर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने अपने फ़ैसले में कहा, "कोई भी व्यक्ति अपने सामाजिक मेल-मिलाप के सिलसिले में संदिग्ध चरित्र के कई लोगों के संपर्क में आ सकता है। जब तक यह मेल-मिलाप या संपर्क नियम-क़ानून की चहारदीवारी के अंदर है, ऐसे लोगों से अनजाने में, जानबूझ कर या उसके संदिग्ध चरित्र की जानकारी होने के बावजूद उससे संपर्क रखने पर सबको एक ही रंग में नहीं रंगा जा सकता है।"
दिशा रवि पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120 'बी' लगाया गया है, जिसके तहत आपराधिक साजिश रचने का आरोप लगता है। इसके अलावा धारा 124 'ए' ( राजद्रोह) और अलग-अलग समुदायों के बीच भाषा, धर्म, जाति, लिंग के आधार पर आपस में विद्वेष (धारा 153 'ए') भी लगाए गए हैं।
किसान आंदोलन को एक अंतरराष्ट्रीय साज़िश भी करार देने की कोशिश सत्ता पक्ष की तरफ़ से की गयी। पॉप स्टार रिहाना और थनबर्ग के ट्वीट को इस का सबूत बताया गया। दिशा पर भी इस साज़िश में शामिल होने आरोप लगाया गया। पटियाला हाउस के न्यायाधीश ने फ़ैसले में लिखा "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत भूमंडलीय दर्शक को सम्बोधित करने की कोशिश करना भी हो सकता है। जब तक वह नियम-क़ानून के चहारदीवारी के अंदर हो, संचार की कोई भौगोलिक सीमा नहीं हो सकती।"
दिशा रवि ने मीडिया ट्रायल पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि ''मीडिया के लिए जाँच सामग्री का लीक करना ग़ैर क़ानूनी है, निजता और सम्मान के अधिकार का उल्लंघन है, और निर्दोषता की धारणा को ख़त्म करते हुए निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के प्रति पक्षपात करता है। इस प्रकार दिल्ली पुलिस की कार्रवाई भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का स्पष्ट उल्लंघन है।'' उन्होंने केएस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फ़ैसले का ज़िक्र किया था। इस पीठ ने मान्यता दी थी कि एक फ़ोन पर बातचीत एक अंतरंग और गोपनीय प्रकृति की है, और अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति के गोपनीयता के मौलिक अधिकार के तहत संरक्षित किए जाने का हकदार है।' दिशा के इस आवेदन पर अदालत ने चंद रोज़ पहले ही मीडिया के पेंच कसे थे।
जलवायु परिवर्तन जैसे पर्यावरण के गंभीर मुद्दों पर बीते 6 सालों से 'यूनेस्को' ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्कूल और कॉलेज परिसरों में शैक्षिक जागरूकता का जो अभियान छेड़ा है उसने बड़ी संख्या में क्रन्तिकारी विचारों वाले युवा नेतृत्व को जन्म दिया है। जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में ये युवा अपना सबसे नज़दीकी मित्र किसानों को मानते हैं और उनके विरुद्ध होने वाले किसी भी कृषिगत फैसले पर उनके पक्षधर बनते हैं। स्वीडन की ग्रेटा तनबर्ग (थन्बर्ग) से लेकर बेंगलुरु की दिशा रवि ऐसे ही लाखों युवाओं में शामिल हैं। उम्मीद है कि पटियाला कोर्ट का फ़ैसला ऐसे तमाम युवाओं के नैतिक बल को सुदृढ़ करेगा।