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रूह कंपा देने वाली प्रथाएं, किचन में मत जाओ, अचार मत छूना, मंदिर से दूर रहो।

रूह कंपा देने वाली प्रथाएं, किचन में मत जाओ, अचार मत छूना, मंदिर से दूर रहो।
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पीरियड्स के कारण व्यवहार में इतना परिवर्तन बड़ा अजीब सा लगता है। यह कोई छूने से फैलने वाली बीमारी नहीं है, बल्कि यह तो उस भगवान की देन है। पता नहीं आप और हम ऐसे अंधविश्वास को जीवन का हिस्सा क्यों बना रहे हैं। मासिक धर्म या माहवारी में लड़कियों को दौड़ने- भागने, खेलने- कूदने, नृत्य करने तथा व्यायाम आदि करने से मना किया जाता है, ताकि उन्हें दर्द कम हो और ज्यादा आराम मिल सके। जबकि यह सोच बिलकुल गलत है, ज्यादा आराम करने से शरीर में रक्त का संचार अच्छे से नहीं हो पाता और दर्द भी अधिक महसूस होता है। अगर माहवारी या मासिक धर्म के समय आप खेलते- कूदते या व्यायाम करते हैं तो इससे आपके शरीर में रक्त और आक्सीजन का प्रवाह सुचारू रूप से होता है जिससे पेट में दर्द और ऐंठन जैसी समस्याएं नहीं होती हैं। तो अब पीरियड्स में बिंदास होकर खेलें, कूदें और व्यायाम करें।

अचार न छूना, खराब हो जाएगा

अकसर पीरियड्स में मां हमेशा कहती हैं कि अचार को मत छूना बिटिया नहीं तो अचार खराब हो जाएगा। जबकि यह सच नहीं हैं क्योंकि अतिरिक्त सफाई रखने से माहवारी के दिनों में लड़की के शरीर या हाथों में जीवाणु, विषाणु या बैक्टीरिया नहीं होते इसलिए भला अचार को छूने से खराब कैसे हो जाएगा। ये सारी बातें अंधविश्वास और भ्रांति हैं, जो पीढ़ी- दर- पीढ़ी हम अपने बच्चों को देते जा रहे हैं। जरूरी है कि हम जागरूक बनकर ऐसे अंधविश्वास को यहीं पर रोकें और सच से सबको रू-ब-रू कराएं।

मंदिर में पूजा मत करना

माहवारी के समय लड़कियों को मंदिर में पूजा करने के लिए मना किया जाता है क्योंकि लोग ऐसा मानते हैं कि इससे भगवान अपवित्र हो जाएंगे। जिस भगवान ने हमें बनाया उसी ने इस संसार को बनाया है और हम मानवों में होने वाली कई क्रियाएं ईश्वरीय देन हैं। माहवारी का अवस्था एक बायोलॉजिक प्रोसेस है। जो न हो तो शादी के बाद दुनिया हर लड़की को बांझ कहेगी। भला फिर भगवान की यह देन भगवान को कैसे अपवित्र कर देगी। इस दुनिया को आगे ले जाने के लिए ही तो ईश्वर ने स्त्री को यह आशीर्वाद दिया है, तो फिर उस अवस्था में भगवान के मंदिर जाने से भगवान अपवित्र कैसे हो सकते हैं।

किचन में पांव मत रखना

पीरियड्स या माहवारी में किचन में नहीं जाना चाहिए क्योंकि इस में भगवान के लिए भोग बनता है। यह सोच बिलकुल निराधार है और अंधविश्वास से भरी हुई है। पता नहीं किसने इस अंधविश्वास को जन्म दिया और पीढ़ी- दर- पीढ़ी आगे बढ़ने के लिए इसे वायरस की तरह छोड़ दिया है। अब समय है कि हम स्वयं सजग बनें और वास्तविकता और सच के ज्ञान को अगली पीढ़ी को उपहार के रूप में दें।

अभिषेक श्रीवास्तव

अभिषेक श्रीवास्तव

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