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- चुनाव वही जीतेगा जिसका...
चुनाव वही जीतेगा जिसका प्रोपेगेंडा तंत्र सफल होता है, विकास का मुद्दा बस ...?
डा. रविन्द्र प्रताप सिंह
किसी भी राजनीतिक दल को देश के लोगो की गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और महंगाई से कोई लेना देना नही है, क्योंकि स्वयं इसके शिकार लोगो को भी इसकी चिंता कहाँ है? कौन सा बेरोजगार वोटिंग के समय अपने बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ वोट करने जाता है? वोटिंग के समय बस लोग अपने जाति का नेता चुनने जाते है, अपने जाति की पार्टी चुनने जाते है और बहुत से ऐसे है जो पैसा और शराब की कीमत पर अपना वोट बेंचकर आते है।
अगर बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार मुद्दा होता और चुनाव हारने या जीतने की कसौटी होती तो आज देश मे जाति विशेष सम्मेलन और गठबंधन ही क्यों होता? आज देश मे पढ़े लिखे युवाओं की बेरोजगारी दर आजादी के बाद सबसे अधिक है! खाने के सरसों के तेल से लेकर रसोई गैस तक, पेट्रोल से लेकर डीज़ल तक, रेलवे के स्पेशल ट्रेन के भाड़े के नाम पर मची लूट तक, बंद होती कंपनियों, के बीच कोरोना से तबाह हो चुके प्राइवेट स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों के कर्मचारियों की दुर्दशा तक क्या नही हो रहा है?
क्या आपने वर्तमान मे किसी समाचार चैनल वाले को इन मुद्दे पर सरकार से सत्ता मे विराजमान दलों से प्रश्न करते देखा है? एकमात्र देशद्रोही घोषित समाचार चैनल के आलावा क्या आपने किसी समाचार चैनल को अबतक बेरोजगारी पर सिरीज़ वाइज़ समाचार चलाते देखा है? या अभी खाने पीने के दामों मे बेतहाशा वृद्धि, जबरदस्त महंगाई और रोज़ आसमान को छूने वाले डीजल और पेट्रोल पर कोई विशेष समाचार बुलेटिन जारी करते देखा है?
आपने नही देखा है क्योंकि आपको यह चाहकर भी देखने का हक़ नही है क्योंकि आपको क्या देखना है यह समाचार चैनल के मालिक तय करता है, और वह तय होता है कि उसे पैसे सबसे ज्यादा कौन सा राजनीतिक दल दे रहा है और वह चौबीस घंटे क्या समाचार और खबर दिखाने के पैसे दे रहा है।
इसलिए आप हर शाम को समाचार चैनलों पर बैठकर अफगानिस्तान और तालिबान का बहस देख रहे है, अयोध्या, काशी और मथुरा देख रहे है, हिन्दू भीड़ ने मुश्लिम युवक को पीटा या मुश्लिम भीड़ ने हिन्दू युवक को पीटा पर प्राइम टाइम देख रहे है, राहुल गांधी ने कौन सा चुटकुले वाला बयान दिया, बुआ और बबुआ पर बहस या ब्राह्मण सम्मेलन, भुमिहार सम्मेलन, दलित सम्मेलन, राजपूत सम्मेलन या सबसे फेवरेट टापिक मंदिर और मस्जिद का मुद्दा या फिर किसी मुल्ले मौलवी के तालिबान के ऊपर बयान पर घंटे भर बकवास चलता देख रहे है।
अपनी आँखों को बंद करके यह सोचिए कि आप क्या जो देखना चाहते है वह देख पा रहे है? क्या आप जो सोचना चाहते है वह सोच भी पा रहे है? आप पायेंगे कि अब आपकी इच्छा भी आपकी नही है, आपकी सोच भी आपके कंट्रोल मे नही है! आपके समझ और सोचने की शक्ति को समाचार चैनलों के माध्यम से, सोशलमीडिया के प्रोपगैंडा के माध्यम से यहाँ तक की वैचारिकता के संघर्ष के नाम पर कंट्रोल किया जा रहा है।
जब आप इस आभाषी दुनिया से बाहर निकलते है तो देखते है कि आपके घर मे राशन नही है, गाड़ी मे तेल खत्म होने वाला है, रसोई गैस समाप्त होने वाला है, बच्चे की फीस जमा करना है, तनख्वाह आधी है, धन्धा चल नही रहा है, बैंक का लोन बढ़ता जा रहा है, घर जमीन बेचने की कगार पर खड़े है, अगले दिन सड़क पर ठेला लगाने के लिए पुलिस वाले को देने के लिए पैसे नही है, एमफिल, पीएचडी, बीएड, बीटीसी, नेट, जेआरएफ, टेट, सीटेट पास करने के बाद भी नौकरी के लिए अवसर नही है।
ऐसे तमाम रोजमर्रा की तकलीफदेह जीवन का दौर चल रहा है लेकिन सरकार और राजनीतिक दलों के लिए बस यह एक सामान्य बात है! वह इसलिए क्योंकि आप एक भेड़ की भातिं इन राजनीतिक दलों इनके कार्यक्रमों मे बढ़ चढ़कर हिस्सा बन रहे है और आप स्वयं ही बता रहे है कि आपको भुखे नंगे, बेरोजगारी मे जीना पसंद है और जब यही आपकी पसंद है तो सरकार और राजनीतिक दल आपके पसंद को नापसंद कैसे कर सकते है? अपने पसंद को बदलिये, विचार बदलिये, जातिवाद और धार्मिक उन्माद के ऊपर उठकर अपने और देश के विकास के मुद्दे पर खड़े हो जाईये यह राजनीतिक दल भी उस रास्ते पर आ जायेंगे।