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महामारी का अंत अभी नहीं: 2022 के हर सप्ताह मृत्यु में हुई बढ़ोतरी
कोविड नियंत्रण में ढिलाई देख के यह लग रहा होगा जैसे कि कोरोना वाइरस विलुप्त हो गया है या महामारी का अंत नज़दीक है परंतु यह सत्य से बहुत परे है। २०२२ के आँकड़े देखें तो ज्ञात होगा कि इस साल की कोविड-मृत्यु दर, हर सप्ताह-दर-सप्ताह बढ़ी है। फरवरी के दूसरे सप्ताह में इस साल के सबसे अधिक संख्या में लोग कोविड से मृत हुए: 75,000।
नए संक्रमित लोगों की संख्या भी कुछ कम नहीं है। फरवरी के दूसरे सप्ताह में, विश्व में 1.6 करोड़ नए संक्रमण रिपोर्ट हुए जो अब तक के सबसे अधिक साप्ताहिक रिपोर्ट हुए संक्रमण से थोड़े ही कम थे: अब तक के 7 दिन में सबसे अधिक नए कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या पिछले माह रिपोर्ट हुई थी: 2.2 करोड़। अब आप ही सोचें कि यह साप्ताहिक संक्रमण दर जो 1.6 करोड़ हुआ है, यह 2.2 करोड़ से कम तो निश्चित है पर इतना भी कम नहीं कि हम लोग कोरोना महामारी का अंत मान लें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, जनवरी 2022 के पहले हफ़्ते 41000 लोग कोविड से मृत हुए थे, दूसरे सप्ताह 43000, तीसरे सप्ताह 45000, चौथे हफ़्ते 50000, और आख़री सप्ताह 59000। फरवरी 2022 के पहले हफ़्ते 68000 लोग मृत हुए और पिछले हफ़्ते 75000।
इन देशों की सूची भी देख लीजिए जहां पिछले 7 दिन में सबसे अधिक कोविड मृत्यु हुई हैं (1000 से अधिक): अमरीका, ब्राज़ील, रूस, इंडिया, इटली, फ़्रान्स, टर्की, पोलैंड, यूक्रेन, आर्जेंटीना, मेक्सिको, पेरू, जर्मनी, कोलंबिया, जापान, इंगलैंड, ईरान, और दक्षिण अफ़्रीका।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि कोविड के नए संक्रमण और मृत्यु, आधिकारिक तौर पर कम रिपोर्ट हो रहे हैं। 'साइयन्स' जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, भारत में कोविड मृत्यु दर, सरकारी आँकड़ों से छह गुणा अधिक है - 32 लाख। दुनिया में कोविड से कुल मृत हैं 58 लाख, तो इस शोध से साफ़ ज़ाहिर है कि आधे से अधिक कोविड-मृत्यु भारत में हुई हैं (पर सरकारी आँकड़े 6 गुणा कम मृत्यु दर दिखा रहे हैं)।
यदि हर जीवन अमूल्य है तो संक्रमण नियंत्रण को तिलांजलि देना कहाँ तक उचित है?
कोविड टीकाकरण को एक साल से ऊपर हो गया है और जितनी दुनिया की आबादी है उससे कहीं ज़्यादा तो टीके लग चुके हैं। टीके सबको लगने के लिए पर्याप्त थे पर लालच और स्वार्थ के चलते सबको बराबरी से नहीं लगे - अमीर देशों में अनेक खुराक लगीं - बूस्टर लगीं - वहीं ग़रीब देशों में बहुत ही कम खुराक लगी - और चंद देशों में एक भी खुराक नहीं लगी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की डॉ मारिया वेन करखोवे ने कहा कि छह हफ़्तों से लगातार कोविड मृत्यु दर में बढ़ोतरी हो रही है, अनेक देशों में कोविड टेस्ट कम हो रहे हैं, इसीलिए साप्ताहिक नए संक्रमण की संख्या में थोड़ी-सी गिरावट देख कर, इतनी जल्दी सब कोविड नियंत्रण को बंद करना उचित न होगा।
भारत के प्रख्यात संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ ईश्वर गिलाडा ने सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) से कहा कि कोरोना वाइरस कहीं विलुप्त नहीं होने जा रहा है। पर यदि दुनिया में सभी लोगों का बराबरी से सामाजिक न्याय के साथ टीकाकरण हो और स्वास्थ्य व्यवस्था सशक्त हो, तो यह सम्भव है कि कोविड के कारण उत्पन्न जन स्वास्थ्य आपात-स्थिति ख़त्म हो सके - लोग अस्पताल में कम भर्ती हो रहे हों, ऑक्सिजन-वेंटिलेटर आदि की ज़रूरत न रहे और मृत्यु पर अंकुश लगे।
यदि हम संक्रमित होने का ख़तरा नहीं जानेंगे तो बचेंगे कैसे?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ माइकल राइयन ने सही कहा है कि जैसे सड़क पर चलते हुए, स्थिति के मुनासिब सबकी सुरक्षा देखते हुए हम साइकल धीमी करते हैं या रोकते हैं, उसी तरह यह जानना ज़रूरी है कि कोविड से संक्रमित होने का ख़तरा कितना अधिक है और उसी के अनुरूप हम पूरा प्रयास करें कि न हम और न ही कोई और संक्रमित हो। टीकाकरण करवाना इसीलिए अत्यंत ज़रूरी कड़ी है। सही तरह से मास्क पहने, हाथ धोएँ और भौतिक दूरी बना के रखें और अन्य जन स्वास्थ्य और सामाजिक संक्रमण नियंत्रण के प्रमाणित कदम आवश्यकतानुसार उठाएँ।
यदि भीड़ वाली जगह जाना हो रहा हो तो यथासंभव सभी कोविड संक्रमण नियंत्रण को सख़्ती से अपनाएँ, यह आपके और सबके हित में ही श्रेयस्कर है। यदि घर में हैं तो जिन लोगों को कोविड का ख़तरा अधिक है और कोविड होने पर गम्भीर परिणाम का ख़तरा अत्याधिक हो (जैसे कि जिन्हें मधुमेह, हृदय रोग, पक्षाघात, आदि हो) उनको और स्वयं के हित में जो संक्रमण नियंत्रण सम्भव हो, सब अपनाएँ। सबसे हितकारी यह है कि कोविड संक्रमण हो ही न, और यदि कोई कोविड से संक्रमित हो तो उसे कोविड के गम्भीर परिणाम होने का ख़तरा न्यूनतम रहे।
अर्थ-व्यवस्था चालू करना ज़रूरी तो है परंतु हम सब लोगों ने देखा है कि कैसे कोविड महामारी ने वैश्विक अर्थ-व्यवस्था को घुटनों पर ला दिया था। यदि अर्थ-व्यवस्था चालू करना है तो सबको स्वास्थ्य सुरक्षा देना ज़रूरी है। मेरी स्वास्थ्य सुरक्षा हर किसी पर निर्भर है और उसी तरह मेरी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा भी एक दूसरे पर निर्भर है। सिर्फ़ चंद अमीरों को अमीर बनाने वाली अर्थ-व्यवस्था से न केवल, अधिकांश लोग और अधिक ग़रीब हो रहे हैं बल्कि स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा से भी वंचित हो रहे हैं। अब यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि आर्थिक सुरक्षा के साथ-साथ सबको स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा भी मुहैया हो।
चुनाव रैली हो रही हैं तो ट्रेन-बस सभी जगह आवागमन चालू है परंतु यदि किसी को अस्पताल जाने की आवश्यकता पड़ जाए तो कोविड नियम क़ानून हैं। लखनऊ के सरकारी अस्पताल के बारे में समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ था कि ३४ में से २० आपरेशन थीयटर चालू हैं बाक़ी बंद, और ५०% वार्ड पर ताला लगा है क्योंकि कोविड नियंत्रण के चलते सरकारी आदेश आया था। अब आप बताइए कि जन स्वास्थ्य महामारी में जहां होटल आदि तक को अस्पताल में परिवर्तित किया गया था वहाँ पर वार्ड पर ताला लगने का क्या औचित्य है? जन स्वास्थ्य को मौलिक मानवाधिकार के रूप में मानेंगे और जन स्वास्थ्य को सेवा तो ही यह सम्भव होगा कि सबको स्वास्थ्य अधिकार मिल सके।
शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत - सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)