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Exclusive: 15 दिसंबर को भी शायद पूरी तरह नहीं खुल पाएगी सड़क, एनएचएआई की टीम ने किया सड़क का मुआएना...
गाजीपुर बॉर्डर से धीरे-धीरे किसानों ने वापस अपने-अपने घरों को लौटना शुरू कर दिया है। किसान नेता गले में माला पहनाकर इन किसानों को विदा कर रहे हैं। किसानों ने प्रशासन से सोमवार शाम तक सड़क को खाली करने का समय लिया था। लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा।गाजीपुर बॉर्डर पर बनाए गए अस्थायी आशियाने अब धीरे-धीरे हटाए जा रहे हैं। एक ओर किसान जहां अपनी कामयाबी पर बेहद खुश हैं तो अब उनको यहां से जाने का गम भी है। एक साल से अधिक समय तक चले किसान आंदोलन के दौरान ग्रामीणों को लोकल लोगों का जमकर सपोर्ट मिला। किसान मानते हैं कि यदि लोकल लोगों का सपोर्ट न मिला होता तो शायद उनका आंदोलन कामयाब न हो पाता। हर मोड़ पर आसपास के लोग उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे, यहां तक उन्होंने सड़क बंद होने की वजह से होने वाली परेशानियों को भी हंसकर सहा।
दूसरी ओर आसपास के लोगों को किसानों से इतना लगाव हो गया था कि उन्होंने अपने बच्चे तक किसानों के पास पढ़ने भेजना शुरू कर दिए थे। कुछ पढ़े-लिखे नौजवान किसान आंदोलनकारियों ने आसपास के बच्चों को पूरे साल मुफ्त में पढ़ाया भी। पूरे साल किसान आंदोलन में शामिल रहे बुजुर्ग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद करते हुए कहा कि उनकी वजह से आज सभी मजहबों के लोग एक दूसरे के इतने करीब आ गए। यदि किसान आंदोलन न हुआ होता तो शायद लोग एक दूसरे के इतना करीब न आते।
उत्तर-प्रदेश के बरेली स्थित बहेड़ी गांव से किसान आंदोलन में आए बलजिंदर सिंह मान ने बताया कि वह पहले दिन से किसान आंदोलन में शामिल हैं। उनको उम्मीद नहीं थी कि आंदालन इतना दिन चल जाएगा। लेकिन आंदोलन एक साल खिच गया। बलजिंदर का कहना हैं कि यह भी सच है कि बैगर लोकल सपोर्ट के आंदोलन कामयाब नहीं हो सकता था। दिल्ली, गाजियाबाद, खोड़ा कालोनी के लोगों ने किसानों का खूब साथ दिया। सर्दियों के दौरान जब किसान आंदोलन की शुरुआत हुई तो लोगों ने अपने घरों से गर्म कपड़े लाकर किसानों को दिए। यहां तक उनके लिए रहने के इंतजाम करने में जो सामान लगा उसको भी स्थानीय लोगों ने मुहैया करवाया। दूसरी ओर खुशी-खुशी बढ़ाई, राजमिस्त्री समेत अन्य लोगों ने बिना पैसों के किसानों की मदद की। आसपास के दुकान भी बिल्कुल होलसेल रेट पर बिना मुनाफे के सामान उपलब्ध करवाते थे।
यहां तक किसानों को कभी किसी मशीन या औजार की जरूरत पड़ी तो आसपास के लोगों ने मुफ्त में ही उपलब्ध करवाई। बागपत के किसान मदन कुमार को बातचीत करते हुए भावुक हो गए। मदन ने बताया कि एक न एक दिन वापस तो लौटना था। कई लोगों से यहां पारिवारिक संबंध हो गए। अब यहां से जाने का दिल नहीं करता। नवाबगंज रामपुर, यूपी से आए देवेंद्र सिंह फौजी ने बताया कि लोकल लोगों से लगाव का ही नतीजा था कि इन लोगों ने अपने बच्चों को पढ़ने के लिए उनके पास भेजना शुरू कर दिया था। कई किसान 10वीं कक्षा तक के बच्चों को सभी विषय पढ़ा रहे थे।
15 दिसंबर को भी शायद पूरी तरह नहीं खुल पाएगी सड़क...
गाजीपुर बॉर्डर से धीरे-धीरे किसानों ने वापस अपने-अपने घरों को लौटना शुरू कर दिया है। किसान नेता गले में माला पहनाकर इन किसानों को विदा कर रहे हैं। किसानों ने प्रशासन से सोमवार शाम तक सड़क को खाली करने का समय लिया था। लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा। सड़क पर बनाए गए किसानों के आशियानें अभी हटे नहीं हैं। सोमवार को मेरठ-दिल्ली एक्सप्रेस वे पर अतिक्रमण ऐसा ही रहा। अलबत्ता उसकी सर्विस लेन पर बस कार निकलने भर का ट्रैफिक खोला गया। वहीं गाजीपुर बॉर्डर पर पुलिस की ओर से लगे बेरिकेड अभी ज्यों के त्यों लगे हैं। पुलिस का कहना है कि किसान जब तक सड़क को खाली नहीं करेंगे उनके बेरिकेड ऐसे ही लगे रहेंगे। सूत्रो का कहना है कि 15 दिसंबर को भी सड़क के पूरी तरह खुलने की संभावना कम है। अब किसान बुधवार शाम तक सड़क को खाली करने की बात कर रही है।
एनएचएआई की टीम सड़क का कर रही मुआएना...
नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) की टीम सोमवार को सड़क खुलवाने के इंतजाम में जुटी रही। सड़क पर जगह-जगह लगाए गए अवरोधों को हटाने का काम जारी थी। टीम सड़क की बेहद बारीकी से मुआएना कर पता कर रही थी कि सड़क पर कहीं कोई कील न लगी रही हो। बता दें कि किसान आंदोलन के दौरान पुलिस व प्रशासन की ओर से सड़क पर नुकीली कीलें लगाकर किसानों को दिल्ली जाने से रोकने का प्रयास किया गया था।