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प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार राजेंद्र यादव ने जातिवाद पर लिखा था : पिछड़े वर्ग, वर्ण-व्यवस्था में आधारभूत बदलाव नहीं लाएँगे- उनका ध्येय सिर्फ सत्ता में सम्मानजनक हिस्सेदारी है
वह (दलित) हिंदुत्व की वर्णवादी व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह करते हैं- उसके सारे ढांचे को तोड़ते हैं। विद्रोह पिछड़े भी कर रहे हैं, मगर वे वर्ण-व्यवस्था के खिलाफ नहीं हैं, उसी में अपना एक सम्मानजनक स्थान चाहते हैं- उनकी माँग सिर्फ उसे लचीला बनाने की है। अगर पिछड़ों को उसी व्यवस्था में क्षत्रियों राजपूतों वाली स्वीकृति मिल जाए तो उन्हें 'हिंदुत्व' से कोई शिकायत नहीं है। अगड़ों और पिछड़ों का दलित-विरोध इसी वर्ण-व्यवस्था की अस्वीकृति को लेकर है।
अगर शिवाजी (गड़रिया) की तरह अगर ब्राह्मण समाज लालू यादव को भी क्षत्रिय की सामाजिक स्वीकृति दे दे तो उनका सारा जातिवाद समाप्त हो जाए। बाद में तो शिवाजी स्वयं गौ-ब्राह्मण रक्षक हो गये थे। इसलिए स्पष्ट है कि पिछड़े व्यवस्था में आधारभूत बदलाव नहीं लाएँगे- उनका ध्येय सिर्फ सत्ता में सम्मानजनक हिस्सेदारी है। वह बदलाव आएगा स्त्रियों और दलितों की ओर से- क्योंकि वही इस ढांचे में सबसे अधिक उत्पीड़ित और शोषित वर्ग हैं।
- राजेंद्र यादव
(हंस, मार्च 1998 के संपादकीय में। सितम्बर, 2021 अंक में पुनर्प्रकाशित)
( रंगनाथ सिंह की फेसबुक वॉल से )