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- मंडियों में किसानों की...
मंडियों में किसानों की अंगुली कटती थी, सरकार नए कानूनों से सिर 'कलम' करना चाहती है - डॉ. राजाराम त्रिपाठी
इन कानूनों से केवल कार्पोरेट कमाएगा और किसान, मध्यम वर्ग व मजदूर पर महंगाई की पड़ेगी भारी मार
यह प्रावधान क्यों डाला कि मंडी में उपज बेचने पर टैक्स लगेगा और मंडी के बाहर यह टैक्स फ्री होगा?
यह प्रावधान क्यों डाला की अनुबंध खेती में घाटा होने पर नुकसान की वसूली "बकाया राजस्व की भांति" यानि कि, किसान की चल अचल संपत्ति मोटरसाइकिल ट्रैक्टर घर बाड़ी प्लाट आदि की नीलामी कुर्की के द्वारा की जाएगी।
यह प्रावधान क्यों डाला कि जब तक व्यापारी शत-प्रतिशत मुनाफा अथवा उससे भी अधिक चाहे जितना भी लाभ कमा ले तब तक, वह चाहे कितनी भी मात्रा में कृषि उत्पाद का स्टॉक जमा करें, जमाखोरी पर उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होगी।
सरकार के आठ दौर की बातचीत के नाटक से हम सब निराश, सरकार सरकार की नियत से भरोसा उठा, अब केवल सर्वोच्च संविधान पीठ से ही भरोसा तथा उम्मीद
45 किसान संगठनों के राष्ट्रीय संयोजक है डॉ राजाराम त्रिपाठी, इन्होंने विगत वर्ष इस पद से इस्तीफा भी दे दिया था, किंतु किसान संगठनों की प्रबल मांग पर इन्हें दोबारा राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया.
डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि आखिर केंद्र सरकार को कोरोना काल में यह चौथाई दर्जन कानून पारित करने की क्या जरूरत थी? उन्होंने कहा, 'यह कानून मुख्य रूप से कॉरपोरेट के हित में हैं। आखिर सरकार ने कानूनों में यह प्रावधान क्यों डाला कि मंडी में कृषि उपज बेचने पर टैक्स लगेगा और मंडी के बाहर यह टैक्स फ्री होगा।'
अनुबंध खेती में किसानों के लिए न्यायालय के अन्य समस्त दरवाजे बंद करके केवल डीएम तथा एसडीएम के अधीन क्यों किया गया और बेहद निर्मम तरीके से यह प्रावधान भी आखिर क्यों डाला की अनुबंध खेती में घाटा होने पर नुकसान की वसूली "बकाया राजस्व की भांति" यानि कि, किसान की चल अचल संपत्ति मोटरसाइकिल ट्रैक्टर घर बाड़ी प्लाट आदि की नीलामी कुर्की के द्वारा की जाएगी।
औषधि कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले बस्तर के किसान त्रिपाठी कहते हैं, 'सरकार कह रही है कि कानूनों को बनाने से पहले हमने देश के किसानों से चर्चा की लेकिन हमें तो इसकी भनक भी नहीं लगी।'
डॉ त्रिपाठी बताते हैं, 'लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा जब घोषणापत्र तैयार कर रही थी तो अन्य कृषि विशेषज्ञों के साथ ही मुझे भी वरिष्ठ पार्टी नेता राजनाथ सिंह के घर पर बुलाया गया था। मैंने देश की वरिष्ठ किसानों को जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश की खेती को समर्पित कर दिया उन्हें बुढ़ापे पर समुचित, ससम्मान जीवन यापन हेतु किसान सम्मान निधि देने की बात कही थी। पार्टी ने मेरी इस सलाह को स्वीकार किया, हालांकि योजना के रूप में ढलने तथा क्रियान्वयन की स्थिति तक पहुंचते-पहुंचते इसका स्वरूप पूरी तरह परिवर्तित हो गया। तब, मैंने कहा था कि तेलंगाना सरकार 16 हजार रुपए सालाना दे रही है, आप कम से कम 24 हजार तो दीजिए। उसी के एवज में यह ₹6000 सालाना किसान सम्मान निधि दी जा रही है। चर्चा के समय हमें आश्वस्त किया था कि कृषि उपज मंडियों की गड़बडियां ठीक करेंगे। यह नहीं बताया था कि इसे कॉरपोरेट के पक्ष में बदलेंगे।
त्रिपाठी ने कहा कि नए कानूनों के मुताबिक जब तक खाद्य पदार्थों की कीमतें 100% (अथवा उससे अधिक भी) न बढ़ जाएं. तब तक स्टॉक विनियोजित नहीं किया जाएगा। आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसी एक्ट) में संशोधन किया गया है, पर इसमें किसानों के लिए कुछ है ही नहीं। इसके तहत प्रोड्यूसर, लॉजिस्टिक, स्टॉकिस्ट व वैल्यूचैन पार्टनर आते हैं। इससे पता चलता है कि सोची-समझी रणनीति के तहत यह कानून बनाए गए हैं। इनसे केवल बड़े कार्पोरेट्स कमाएंगे और किसान, मध्यम वर्ग व मजदूर पर महंगाई की भीषण मार पड़ेगी
ऐसा नहीं है कि मंडियों में शोषण नहीं होता था। लेकिन मंडियों में अगर किसान की अंगुली कटती थी, तो अब केंद्र सरकार नए कानूनों के जरिए उनका सिर कलम करना चाहती है।'
हम बता दें कि आईफा में 45 किसान संगठन शामिल हैं, तथा डॉ राजाराम त्रिपाठी इस महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक की भूमिका 2016 से निभा रहे हैं सन विगत वर्ष उन्होंने राष्ट्रीय संयोजक पद से इस्तीफा भी दे दिया था किंतु किसान संगठनों की मांग पर उन्हें दोबारा राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया।
केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में बीते करीब डेढ़ महीने से दिल्ली की सीमाओं पर हजारों किसानों का आंदोलन जारी है। एक विशेषज्ञ और खेती-किसानी के जानकार के तौर पर अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के संयोजक डॉ. राजाराम त्रिपाठी भी इन कानूनों को वापस से लिखी अपील करते हैं उनका मानना है कि केंद्र सरकार के नए कानूनों से किसानों का शोषण खत्म होने के बजाय शोषण और भी बढ़ जाएगा। चर्चा के अंत में डां त्रिपाठी ने कहा कि इस आंदोलन में हमारे 60 से अधिक किसान साथी अपनी जान गवा चुके हैं और सरकार के आठ दौर की बातचीत के नाटक और हठधर्मिता से हम सब निराश हैं, अब केवल सर्वोच्च संविधान पीठ से ही भरोसा तथा उम्मीद है। हमें पूरी उम्मीद है कि देश के सर्वोच्च संविधान पीठ किसानों की समस्याओं और तकलीफों पर निष्पक्ष निर्णय देगी, यह कानून वापस होंगे। अगर देश को कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधार करते हैं और इस हेतु कोई कानून लाना है तो उस प्रक्रिया में हम सब किसान संगठन अपनी सक्रिय सकारात्मक भूमिका निभा दे हेतु तैयार और तत्पर हैं।