Top Stories

गांधीवादी गहलोत ने खुली छूट दे रखी है लूट की, कुर्सी से बेदखल नही करदे नकारा और निकम्मा

गांधीवादी गहलोत ने खुली छूट दे रखी है लूट की, कुर्सी से बेदखल नही करदे नकारा और निकम्मा
x

आज सवाल यह है कि सचिन पायलट का आखिर कसूर क्या है ? पिछले तीन साल में जिस तरह उनकी उपेक्षा, अपमान और दरकिनार करते हुए सार्वजनिक रूप से लांछित किया जा रहा है, वह अपमान की पराकाष्ठा है । नौटंकी को छोड़कर सच्चे मन से भरत मिलाप नही हुआ तो राजस्थान में फिर से जोरदार विस्फोट होने की संभावनाओं से इनकार नही किया जा सकता है ।

राजस्थान की तीन वर्षीय राजनीतिक हालात और वर्तमान स्वरूप के सम्बंध में मेरे एक मित्र द्वारा "नकारा व निकम्मा" नामक पुस्तक लिखी जा रही है । किताब करीब करीब पूरी हो चुकी है । केवल क्लाइमेक्स लिखना शेष है । पुस्तक में एक तथाकथित गांधीवादी के चेहरे से गांधीवाद का मुखोटा हटाकर उसकी असलियत से जनता को रूबरू कराया जाएगा ।

गांधी टोपी को अपने स्वार्थ के लिए माथे पर पहनने वाले अशोक गहलोत की सभी असलियत को उजागर करते हुए परत दर परत उतारी जाएगी । पुस्तक में इस बात को बेबाकी से परोसा जा रहा है कि कुर्सी के लिए गहलोत किसी हद तक नीचे जा सकते है । जिस तरह आज सचिन से गहलोत परेशान थे । किसी जमाने मे गहलोत ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर की नींद उड़ा रखी थी । गहलोत सीएम बनना चाहते थे । लेकिन उन्हें गृह मंत्री बनाया गया ।

पुस्तक में कहा जा रहा है कि गहलोत ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए सभी गांधीवादी सिद्धांतो और नैतिक मूल्यों का अंतिम संस्कार कर दिया । निश्चय ही यह किताब गांधीवादी का मुखोटा ओढ़ने वाले गहलोत के तमाम कच्चे चिट्ठो को उजागर करने में उपयोगी साबित होगी । अजमेर बलात्कार कांड भी इस पुस्तक का हिस्सा होगा । मुफोटलाल मोहनोत तथा धर्मेंद्र राठौड़ से गहलोत के क्या रिश्ते है, तफसील से अवगत कराया जा रहा है।

दरअसल ! सारी लड़ाई इसलिए शुरू हुई, क्योकि उप मुख्यमंत्री होते हुए भी उनको पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा था । सारे महत्वपूर्ण विभाग गहलोत के पास थे । रूल ऑफ बिजनेस के हिसाब से उप मुख्यमंत्री के पास अवलोकनार्थ और स्वीकृत्ति के लिए नही आती थी । धीरे धीरे यह उपेक्षा और अपमान नया आकार लेने लगा ।

इधर गहलोत सुनने को तैयार नही थे, उधर आलाकमान ने भी कान बन्द कर लिए । अपने ही लोगो से खफा पायलट अप्पने 18 विधायको के साथ हरियाणा के मानेसर पहुंच गए । चर्चा यह थी कि अपनी उपेक्षा से आहत पायलट एन्ड कम्पनी बीजेपी में शामिल होने गई थी । जबकि पायलट गुट का तर्क था वे अपनी समस्याओं से आलाकमान को रूबरू कराने गए थे । आलाकमान वाली बात कुछ हजम नही होती है । बहरहाल ! इसके बाद गहलोत और पायलट के बीच निर्णायक जंग प्रारम्भ होगई ।

इस जंग के चलते विधायकों की खूब चांदी हुई । कभी मेरियट में तो कभी जैसलमेर के पांच सितारा होटल में विधायकों ने जमकर अय्याशी की । यह वह दौर था जब राजस्थानी विधायकों की जमकर चांदी हो रही थी । कुछ विधायक मानेसर में मजे लूट रहे थे तो कुछ विधायक मुख्यमंत्री के सरंक्षण में अय्याशी में लिप्त थे ।

अफसर लोग अपने तबादलों के लिए जैसलमेर तक पहुंच गए थे । पैसे दो और हाथ की हाथ तबादला आदेश लो । लूट तो राजस्थान में कई साल से मची हुई है । लेकिन यह लूट और रिश्वतखोरी अभूतपूर्व थी । लूट का यह सिलसिला आज तक नही थमा है । सरकार को मुख्यमंत्री नही, विधायक संचालित कर रहे है । गहलोत मुख्यमंत्री के नाम पर केवल रबड़ स्टाम्प का काम कर रहे है । क्योंकि उनको अपनी कुर्सी बचानी है और बाद में बेटे वैभव गहलोत को भी एमएलए बनवाना है । ऐसे में विधायकों के सामने नतमस्तक होना गहलोत की उदारता नही, राजनीतिक विवशता है । आज के दिन हर विधायक गहलोत के लिए भगवान से कम नही है ।

लड़ाई उसी समय थम जाती, यदि गहलोत सरकार उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट, पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह और खाद्य मंत्री रमेश मीणा के खिलाफ धारा 124 ए के अंतर्गत राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दायर नही करती । दिखावे के तौर पर धारा 124 ए का नोटिस स्वयं मुख्यमंत्री ने खुद के नाम भी जारी करवा लिया । हिंदुस्तान के इतिहास में इस तरह की राजनीतिक बेवकूफी कभी नही हुई । यदि स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राष्ट्रद्रोह में लिप्त थे तो उनके खिलाफ अभी चालान क्यों नही ? यदि बदनीयती से नोटिस जारी किया गया था तो नोटिस जारी करने वाले एडीजी, आईजी, डीआईजी और एसपी आदि अभी तक सलाखों के बाहर क्यो ? बताया जाता है कि इस सारी कारस्तानी के पीछे कैसी वेनुवोपाल और रणदीप सुरजेवाला का हाथ रहा है ।

राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत ने कभी ख्वाब में भी नही सोचा होगा कि कल का छोकरा मेरी रात की नींद हराम कर सकता है । जब गहलोत सरकार भरभरा कर गिरने वाली थी, तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना वास्तविक रूप प्रेस के सामने दिखाया । गहलोत ने माँ-बहिन की गाली तो दी नही, बाकी कसर कोई छोड़ी नही । गहलोत ने एकसाथ सारे कारतूस पायलट के खिलाफ दाग दिए ।

घटना से कुछ दिन पहले प्रेस ने गहलोत से सचिन पायलट के बारे पूछा था । मुख्यमंत्री का कथन था कि दोनों के बीच बहुत अच्छा तारतम्य है । रिश्ते खराब होने की बात मीडिया ही उड़ा रहा है । इसके कुछ ही दिनों बाद अपने जख्म कुरेदते हुए गहलोत ने समूचे मीडिया के सामने सचिन के लिए कहा - मैं जानता था कि नकारा है, निकम्मा है । कामचोर है.......। गहलोत ने साबित कर दिया कि राजनीति में जो होता है, वह दिखता नही और जो दिखता है वह होता नही।

गले मिलने का स्वांग कई बार रचा जा चुका हूँ । हकीकत यह है कि गहलोत और पायलट एक दूसरे की शक्ल तक देखना पसंद नही करते । यह लड़ाई इतनी आसानी से समाप्त हो जाएगी, दूर दूर तक इसकी संभावना नजर नही आती । इस खेल का सबसे बड़ा मजेदार पहलू यह है कि पायलट चुपचाप अपनी चाल चलकर गहलोत के हाथी, घोड़े, ऊंट और प्यादे पीट रहे है ।

दूसरी ओर गहलोत स्थिति आज बहुत ही दयनीय और कारुणिक दिखाई देती है । ऐरे गेरे विधायक की भी दस बात सुननी पड़ती है । विधायक अफसर व जनप्रतिनिधि सबलोग निर्ममता से जनता को लूट रहे है । बेचारी जनता चुपचाप लुटने को विवश है । कोई लूट जाता है, कोई लुट जाता है । यही राजस्थान की हकीकत है । कानून व्यवस्था चौपट हो चुकी है और विकास कार्य का पैसा अफसर और विधायकों की जेब मे जा रहा है ।

एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है । कभी भी किसी नंगे से पंगा नही लेना चाहिए । पायलट आज पूरी तरह नंगे है । खोने के लिए उनके पास कुछ नही है । जबकि गहलोत को केवल खोना ही खोना है । चूंकि पायलट के पास खोने के लिए कुछ नही है । इसलिए वे मस्ती के साथ गहलोत बखिया उधेड़ने में लगे हुए है । पायलट के भूत ने गहलोत की सारी मानसिक शांति भंग करदी । इसलिए वे आजकल मुख्यमंत्री की गरिमा से परे हटकर वाहियात टिप्पणी करने लगे है ।

अशोक और राहुल की मुलाकात के सम्बंध में पिछले दिनों राष्ट्रदूत में कुछ पंक्तियां प्रकाशित हुई थी । चूँकि ये पंक्तियां गहलोत के अनुकूल नही थी । इसलिए बिना पूछे राष्ट्रदूत पर गहलोत चढ़ बैठे । इस अखबार को फर्जी और ब्लेकमेलर बताया । प्रेस काउंसिल से उम्मीद की की वह ऐसे अखबार के खिलाफ संज्ञान ले ।

आवेश में आकर गहलोत यह भूल चुके थे कि वे एक प्रदेश के मुख्यमंत्री भी है । यदि कोई अखबार फर्जी प्रसार संख्या के आधार पर सरकार को चूना लगा रहा है तो उसके रोकथाम की जिम्मेदारी स्वयं मुख्यमंत्री की । तकलीफ गहलोत को राष्ट्रदूत से नही थी । पीड़ा इस बात की थी कि इस अखबार ने यह क्यो लिखा कि राहुल गांधी ने गहलोत से नजर मिलाना भी मुनासिब नही समझा ।

बहरहाल राजस्थान कांग्रेस की सेहत बिल्कुल ठीक नही है । पायलट की एक झलक पाने के लिए हर वर्ग के लोगो मे जबरदस्त दीवानगी और पागलपन है । जहाँ भी पायलट जाते है, हजारों की भीड़ उनसें मिलने के लिए बावली हो उठती है । इसलिए ज्यादातर लोग पायलट को अपने यहां बुलाना चाहते है । भीड़ के इस चक्कर मे जहां पायलट जाते है, गहलोत नही जाते । गहलोत बखूबी जानते है कि पायलट के समक्ष उनका जादू फेल हो जाएगा ।

हालांकि गहलोत अगले कार्यकाल के लिए भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मंसूबा बना रहे है । जबकि हकीकत यह कि उनका जादू अब पूरी तरह फेल हो चुका है । उनको घर बैठकर माला फेरनी चाहिए और नौजवानों को ससम्मान कुर्सी सौपे । वरना आज के नौजवान जबरन कुर्सी खींचना भी जानते है । गहलोत साहब ! यह बात आपको समय रहते अवश्य समझ लेनी चाहिए । वरना आपका वही हाल होगा जो आडवाणी का हो रहा है ।

अभिषेक श्रीवास्तव

अभिषेक श्रीवास्तव

    Next Story