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- चला गया शांति का मसीहा...
हम तो जाते अपने धाम सबको राम राम राम....
शांति का मसीहा, राष्ट्रीय युवा योजना के संस्थापक, वरिष्ठ गांधीवादी, प्रख्यात चिंतक, नौजवानों के प्रेरणा स्रोत,अनगिनत सम्मानों-पुरस्कारों-अलंकरणों से सम्मानित और समूचे जगत में भाई जी के नाम से ख्यात आदरणीय एस एन सुब्बाराव जी अब हमारे बीच नहीं रहे। 27 अक्टूबर की अल सुबह जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका चला जाना देश और समाज की अपूरणीय क्षति है जिसकी भरपायी असंभव है। उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। वह भले आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके विचार, उनका सादगी भरा जीवन आने वाली पीढि़यों को सदैव सत्य, शांति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता रहेगा।
मुझे उनके दर्शनों का सौभाग्य 1972 में जौरा, मुरैना में चम्बल के डाकुओं के समर्पण के दौरान मिला जब उन्होंने आदरणीय जय प्रकाश जी के साथ बीहड़ के कुख्यात दस्युओं का आत्म समर्पण कराया था। खासकर डाकुओं को देखने की उत्सुकता वश मैं उस समय खुद को वहां जाने से रोक नहीं सका और उस समय जब मैं मात्र बीस बरस का ही था, तब अपने कुछ साथियों के साथ साइकिल से जौरा गया था। तब बमुश्किल मुझे आदरणीय जय प्रकाश जी और सुब्बा राव जी के चरण स्पर्श का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
उसके बाद 1978 में जब भरतपुर के नुमाइश मैदान में अखिल भारतीय सेवा दल का प्रशिक्षण शिविर का आयोजन हुआ था, तब वहां सुब्बाराव जी का सानिध्य मिला। वहां शिविर में देशभर से सैकडो़ युवा आये थे। वहां उनके अनुशासन में सुबह पांच बजे से शाम तक रहने, जीने का सलीका सीखने का अवसर मिला और सेवादल प्रमुख श्री मनुभाई पटेल, प्रधानमंत्री श्री मोरार जी देसाई, श्री जगजीवन राम, मास्टर आदित्येन्द्र, पंडित रामकिशन, सांसद हंसाबेन राजडा आदि केन्द्र व राज्यों के शीर्षस्थ नेताओं के एक साथ दर्शन का सौभाग्य मिला, वहीं उनके विचारों से भी लाभान्वित भी हुआ।
शिविर में ही सुब्बाराव जी के पास बैठने का सौभाग्य भी मिला। वहां किसी ने उन्हें मेरी साफ लेखनी के बारे में बताया। तब उन्होंने मुझे बुलाया। उस समय मनुभाई पटेल जी भी उनके पास बैठे मंत्रणा कर रहे थे। उस समय उन्होंने मुझसे शिविरार्थियों को दिये जाने वाले प्रमाण पत्र लिखने को कहा। उनका कहना मेरे लिए आदेश था जो मैंने समय रहते पूरा किया। हां इस दौरान उनके चरणों में बैठकर बहुत कुछ जानने-समझने का सुअवसर मिला।
उसके बाद तो जब मैं 1984 में दिल्ली आया तब तो फिर कई बार गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली,बालाजी कालेज,बल्लभगढ़, हरियाणा, दिल्ली में हरिजन सेवक संघ के कैम्प स्थित आश्रम में उनके दर्शन का सौभाग्य मिला। मेरे जीवन का सबसे अनमोल क्षण वह था जब उन्होंने बरपलिया, गुठनी, सिवान में स्थित बालाजी कालेज में बिहार के पुलिस महानिदेशक डा.गुप्तेश्वर पांडेय, मंत्री श्री अबध बिहारी चौधरी के साथ "पर्यावरण रत्न सम्मान" और प्रगति मैदान, दिल्ली में वर्ल्ड इनवायरमेंट कान्फ्रेंस में प्रख्यात पर्यावरणविद आदरणीय श्री चंडी प्रसाद भट्ट जी के साथ मुझे " पर्यावरण भूषण सम्मान " प्रदान किया।
'आज देश की ताकत नौजवान नौजवान, आपस में हो सदभावना सदभावना' कहने वाला, हमेशा नौजवानों को संस्कारवान बनाने वाला और एकता-अखंडता का पाठ पढा़ने वाला वह महान व्यक्तित्व भाई जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी, मां भारती के सपूत हमेशा-हमेशा जीवित रहेंगे, अमर रहेंगे। उन्हें भुलाया नहीं जा सकता। उनको श्रृद्धा सहित आदरांजलि और शत शत नमन । ओउम शांति : शांति : ।
वह चिरस्मरणीय क्षण जो कभी भुलाये न जा सकेंगे...
(लेखक ज्ञानेन्द्र रावत वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।)