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गुजरात हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला, पत्नी को पति के साथ रहने के लिए नहीं किया जा सकता मजबूर
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Gujrat High Court : गुजरात हाई कोर्ट ने पति-पत्नी के निजी जीवन को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। गुजरात हाई कोर्ट ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी को साथ रहने और व्यावहारिक अधिकार स्थापित करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है। आगे गुजरात हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अदालती डिग्री लेने के बाद भी एक पत्नी को अपने पति के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। बता दें कि गुजरात हाई कोर्ट ने यह फैसला बनासकांठा जिले के एक मुस्लिम जोड़े से जुड़े मामले में सुनाया है।
अदालत का फैसला
अदालत में जो केस आया उस पर गुजरात हाईकोर्ट ने अहम फैसला लिया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार महिला पालनपुर सिविल अस्पताल में नर्स का काम करती है। महिला पर आरोप लगाया गया है कि वह अपने बेटे के साथ अपना ससुराल छोड़कर मायके चली रही है। इस मामले में महिला का कहना है कि उसके भाई-बहन ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। महिला के ससुराल वाले और पति उसके ऊपर ऑस्ट्रेलिया जाने का दबाव बनाते रहते थे। महिला ने आरोप लगाया है कि उसके ससुराल वाले उससे कहते थे कि ऑस्ट्रेलिया जाकर बाद में वह अपने पति को भी वहां बुला ले। बता दें कि इस मामले में एक कुटुंब अदालत का फैसला पलटते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायिक आदेश के बावजूद एक महिला को उसके पति के साथ रहने और दांपत्य अधिकार स्थापित करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
पत्नी पति के साथ रहने से कर सकती है इंकार
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गुजरात हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए का की पहली पत्नी अपने पति के साथ रहने से इंकार कर सकती है। साथ ही कोर्ट ने इसका आधार बताया कि मुस्लिम कानून बहू विभाग की अनुमति देता है लेकिन इसे कभी बढ़ावा नहीं दिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोर्ट ने अपने एक हालिया आदेश में कहा कि भारत में मुस्लिम कानून ने बहु विवाह को मजबूरी में सहन करने वाली संस्था के रूप में माना है लेकिन कभी इसे प्रोत्साहित नहीं किया गया है। मुस्लिम कानून के अनुसार पति को इस बात का मौलिक अधिकार प्रदान नहीं किया गया है कि उसकी पत्नी, पति की अन्य पत्नी को अपनी साथी के तौर पर रखने पर मजबूर करें। साथ ही गुजरात हाई कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के हालिया आदेश का हवाला दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने हालिया आदेश में कहा था कि समान नागरिक संहिता संविधान में केवल एक उम्मीद नहीं रहनी चाहिए।
कुटुंबा अदालत ने महिला के खिलाफ दिया था फैसला
बता दें कि गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति निरल मेहता की खंडपीठ ने काकी वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक मुकदमे में निर्णय पूरी तरह से पति के अधिकार पर निर्भर नहीं करता है। आगे उन्होंने कहा कि कुटुंब अदालत को भी इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या पत्नी को अपने साथ रखने के लिए मजबूर करना उसके लिए अनुचित होगा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार खंडपीठ ने गुजरात के बनासकांठा जिले की एक कुटुंब अदालत के जुलाई 2021 के आदेश को चुनौती देने वाली एक महिला की याचिका स्वीकार करते हुए या टिप्पणी की है। बता दें कि कुटुंब अदालत ने इस मामले में महिला को अपने ससुराल वापस जाने और वैवाहिक दायित्व के निर्वहन का आदेश दिया था।
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