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- गुजरात की बदली हुई हवा
गुजरात की सियासी हवा अबकी कुछ बदली सी लगी। पिछले विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक मैं चार बार वहां हो आया। पहली बार ऐसा लगा कि लोग कथित गुजरात मॉडल के झूठ से ऊब चुके हैं और चुपके से बदलाव चाह रहे हैं। इतना ही नहीं, पहली बार आम लोग खुल के बोल रहे हैं सार्वजनिक जगहों पर। मुख्यमंत्री बदले जाने की घटना की व्याख्या भी वहां दिल्ली की नज़र से बिल्कुल अलहदा है।
इस बदलाव के केंद्र में एक पत्रकार है जिसका नाम ट्रेन से लेकर सरकारी बस और चौराहों तक हमने सबके मुंह से सुना- ईशुदान गढ़वी। मैं इनको नहीं जानता, पर लोग बताते हैं कि इनके आम आदमी पार्टी में जाने से बड़ी उम्मीदें पैदा हुई हैं लोगों में। कांग्रेस को लोग अब रियायत दे रहे हैं चूंकि पिछली बार कांग्रेस ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। जो रह गया, इसे इस बार पूरा करने की इच्छा लोगों के मन में है।
सवाल वही है- कांग्रेस अगर भाजपा से नाराज़ लोगों के दम पर कुछ करने की स्थिति में आ चुकी है तो आम आदमी पार्टी इतनी तेजी क्यों दिखा रही है? इसका जवाब साफ नहीं है। दशकों बाद तीसरी राजनीतिक पार्टी का उदय स्वागत योग्य है, लेकिन इसका वोटर बेस भी वही है जो कांग्रेस का है। लिहाजा काटा काटी के चक्कर में कहीं फिर हादसा न हो जाए गुजरात के साथ, इसकी आशंका भी प्रबल है। बावजूद इसके, अच्छी बात ये है कि लोग अब बोल रहे हैं। खुल के बोल रहे हैं।
मुझे लगता है कि यूपी से ज़्यादा गुजरात पर नज़र रखनी चाहिए। यूपी में कुछ भी हो, केंद्र में सूरत शायद ही बदले इस बार लेकिन गुजरात के पास मोदी-शाह के राज का बीस बरस अनुभव है जो अब चुकता दिख रहा है। वहां एक हल्का बदलाव भी यहां इनके पैर उखाड़ सकता है। मुख्यमंत्री का बदला जाना वहां कमज़ोर होती इनकी पकड़ के रूप में देखा जाना चाहिए, जैसा कि वहां के लोग देख रहे हैं।