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ज्ञानवापी केस वाराणसी जिला अदालत में ट्रांसफर, सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान दिए तीन सुझाव
ज्ञानवापी मस्जिद मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तीन सुझाव दिए हैं. इसके साथ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि जिला जज अपने हिसाब से सुनवाई करें, क्योंकि वह अनुभवी न्यायिक अधिकारी होते हैं. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस नरसिम्हा और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने तीन सुझाव देते हुए कहा कि हम निचली अदालत से कहें कि मुस्लिम पक्ष के आवेदन पर जल्द सुनवाई कर निपटारा करे. वहीं, जब तक ट्रायल कोर्ट इस आवेदन पर फैसला लेता है, तब तक हमारा अंतरिम आदेश प्रभावी रहेगा. इसके साथ कहा कि हम निचली अदालत को किसी खास तरीके से कुछ करने के लिए नहीं कह सकते, क्योंकि वे अपने काम में माहिर हैं.
जिला जज के पास 25 साल का अनुभवः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने सुझाव में कहा कि जिला जज के पास 25 साल का अनुभव है। इसलिए पहले इस मामले की सुनवाई जिला अदालत को करने दीजिए। ज्ञानवापी केस पर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी काफी अहम मानी जा रही है।
शांति और सौहार्द बनाना हमारी जिम्मेदारीः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये जटिल सामाजिक समस्याएं हैं और इंसान द्वारा कोई भी समाधान सही नहीं हो सकता। हमारा आदेश कुछ हद तक शांति और सौहार्द बनाए रखना है। हम देश में एकता की भावना को बनाए रखने के संयुक्त मिशन पर हैं। सुप्रीम अदालत ने कहा है कि एक बार आयोग की रिपोर्ट आ जाने के बाद इसे लीक नहीं किया जा सकता। प्रेस को बात लीक मत करो, केवल जज ही रिपोर्ट खोल सकते हैं।
हम एकता के मिशन पर हैंः सुप्रीम कोर्ट जज
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि 1991 में जो एक्ट पारित हुआ था कि कोई भी धार्मिक स्थान को बदला नहीं जा सकता है। अयोध्या वाला मसला टाइटल को लेकर था। लेकिन ये मामला पूजा को लेकर है। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि कमीशन की नियुक्ति की अवैधानिक है। क्योंकि इसका मकसद सिर्फ स्थल से मंदिर का पता लगाना था। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारा काम शांति और संतुलन बनाए रखना है। हम एकता के मिशन पर हैं।
मस्जिद कमेटी के वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा शुरू से ही पारित सभी आदेश बड़ी सार्वजनिक गड़बड़ी पैदा करने में सक्षम हैं। अहमदी ने कहा कि कमेटी की चुनौती ट्रायल कोर्ट द्वारा आयोग नियुक्त करने की है। यह 1991 के पूजा अधिनियम के खिलाफ और संविधान के विरुद्ध है। अधिनियम कहता है कि इस तरह के विवादों से बड़ी सार्वजनिक गड़बड़ियां होंगी। आयोग की रिपोर्ट चुन-चुन कर लीक की जा रही है।
हुजेफा अहमदी का यह भी कहना है कि निचली अदालत के समक्ष वादी उस स्थान को सील कराने में सफल हुए, जिसका उपयोग अगले 500 वर्षों से किया जा रहा था। अहमदी ने दलील दी कि जब तक समिति की याचिका पर अदालत द्वारा फैसला नहीं किया जाता तब तक जमीन पर क्या होगा? आपको देखना होगा कि देश भर में चार या पांच मस्जिदों के लिए इस मामले का कैसे इस्तेमाल किया जा रहा है। यह सार्वजनिक गड़बड़ पैदा करेगा जिससे बचने के लिए 1991 का पूजा अधिनियम बनाया गया था।
अहमदी ने कहा, हमारे अनुसार जो अंदर पाया गया वह शिवलिंग नहीं है, यह एक फव्वारा है, वजू खाना को सील कर दिया गया है और भारी पुलिस उपस्थिति के साथ लोहे के गेट लगाए गए हैं।