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- हलाला एक शर्मनाक प्रथा...
मुस्लिम समाज में किसी महिला को तलाक देने के बाद दोबारा उसी महिला का दोबारा विवाह करने की प्रथा को हलाला या निकाह हलाला कहते हैं।
इस्लाम धर्म में यह व्यवस्था है कि, तलाक के बाद यदि कोई महिला किसी अन्य पर उसके साथ शादी कर लेती है और संयोगवश दूसरा पति उसे तलाक दे देता है या मर जाता है, और इस बीच उसका पहला पति उस महिला से फिर निकाह करना चाहता है और महिला भी राज़ी है। तो दोनो सहमति के आधार पर पुन: निकाह करके बिना किसी रुकावट के रह सकते है। ऐसे में महिला पुरुष के लिए हलाल(जायज) मानी जाती है लेकिन ऐसा सुनिश्चित नहीं होता।
परंतु वर्तमान युग में हलाला के इस नियम को मौलवियों ने अपने निजी स्वार्थ, पैसा-लालच, व्यापार के अनुसार तोड़ा-मरोड़ा है। हलाला के नाम पर बलात्कार और दुष्कर्म को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण यह मुस्लिम समाज की एक शर्मनाक कुप्रथा बन चुका है।
हलाला के नाम पर मोलवी लोग तलाकशुदा महिलाओं की मजबूरी का फायदा उठाकर हलाला, निकाह के लिए दोनों पक्षों से मोटी रकम हासिल करते हैं और मुस्लिम महिलाओं का शोषण भी करते हैं। मौलवियों के अनुसार तलाकशुदा मुस्लिम महिला को किसी अजनबी पुरुष के साथ एक रात हमबिस्तर होना तथा संभोग की परंपरा को पूरा करना होता है। तभी वह महिला अपने पहले पति के साथ पुनः निकाह करके रह सकती है, क्योंकि कोई सभ्य व्यक्ति इस प्रथा के लिए तैयार नहीं होता।
इसलिए मौलवी लोग अपने साथ एक नौजवान हट्टा कट्टा रखते हैं जिन्हें उस पर विश्वास होता है कि वह महिला के साथ एक रात अय्याशी करके अगले दिन अवश्य उसे तलाक दे देगा। जिससे महिला अपने पहले पति से निकाह कर सके।
मौलवी लोग अपने लालच और निजी स्वार्थ के लिए मुस्लिम महिला के साथ एक रात के लिए, अजनबी पुरुष का निकाह कर देते हैं। वह पुरुष उस महिला को जिसे 1 रात के लिए अपनी पत्नी बनाता है पूरी रात उसके साथ अय्याशी करता है और अपनी इच्छा अनुसार कुंठा भरा संभोग भी । अगले दिन अजनबी पुरुष उस महिला को मौलवी को वापस कर देते हैं और मौलवी उस महिला का पहले पति के साथ निकाह करा देते हैं। मौलवियों के अनुसार निकाह के बाद महिला अपने पहले पति के साथ सामाजिक रुप से प्रमाणित होकर रहने लगती है। जो पूर्णतया गलत और अप्रमाणिक है।
अतः हलाला की इस कुप्रथा को मुस्लिम समाज को स्वयं आगे आकर बंद कराने का प्रयास करना चाहिए।
मैं उन तमाम एक्टिविस्ट, पत्रकारों और सनातन भाइयों - बहनों के साथ हूं जो इस कुप्रथा को समाज में आगे आकर मुस्लिम महिलाओं को यौन शोषण से बचाने और उनके मौलिक अधिकारों के लिए सतत प्रयास कर रहे हैं। आज मुस्लिम समाज को आवश्यकता है कि इस प्रथा को जल्द से जल्द बंद किया जाए , जिससे निकाह के नाम पर मुस्लिम महिलाओं के यौन शोषण, दुष्कर्म और बलात्कार को रोका जा सके।
- शारिक रब्बानी (वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार)
नानपारा, बहराइच (उत्तर प्रदेश)