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कविता के माध्यम से लता दीदी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि
स्वर कोकिला लता मंगेशकर अब हमारे बीच नहीं रहीं। उन्होंने रविवार सुबह 8 बजे मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में आखिरी सांस ली। 92 साल की लता मंगेशकर को 29 दिन पहले 8 जनवरी को कोरोना और निमोनिया के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
लता मंगेशकर अपने सुर संसार में लौट गईं। 80 साल से संगीत का वह मधुर अटूट नाता आज टूट गया। उनके निधन से पूरा देश गम में डूब गया। वाराणसी में पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने बताया कि जब उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में 1952 में एडमिशन लिया तो उसी दौरान लता दी आई थीं। उस समय उनकी प्रसिद्धि युवाओं में खूब देखी जाती थी। लता जी भारतीय संगीत और संस्कृति की राजधानी कहे जाने वाले बनारस में केवल एक बार आईं। इसके बाद उन्होंने कभी भी बनारस में कदम नहीं रखा।
कहाँ गई वो सुरों की मल्लिका
कहाँ गई वो मधुर सी कोकिला
जिसके सुरों के जादू से सारा
हिंदूस्तां था फूलों सा खिला।
छेड़ती थी जब सुरों की तान
मंद -मुग्ध हो जाता हिन्दूस्तान
तेरे गुनगुनाएं गीतों से
ऊर्जा से भरता नौजवान।।
बस गई थी सभी के दिलों में
भारत की यह लाडली बेटी
तेरे गीतों को गा -गाकर
चलती थी कितनों की रोटी।।
जाते जाते न कोई संदेश
न पैगाम तेरा कोईं आया
खफा तो नही थी हमसे तुम
कोईं गीत भी न गुनगुनाया।।
तेरी जगह न कोईं ले पाया
न ही कोईं ले पाएगा
गाये गी जब गीत कोकिला
तेरा ही जिक्र जुबां मे आएगा।।
डाॅ. अजय कुमार मौर्य, प्रवक्ता, बौद्ध दर्शन विभाग,
धर्म चक्र विहार अंतर्राष्ट्रीय मूल बौद्ध शिक्षा शोध संस्थान सारनाथ, वाराणसी