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इतिहास पढ़ने के लिए मज़ेदार चीज़ है और लिखने की भी, इससे भी मज़ेदार हैं इतिहास के चरित्र

Desk Editor
25 Oct 2021 4:48 PM IST
इतिहास पढ़ने के लिए मज़ेदार चीज़ है और लिखने की भी, इससे भी मज़ेदार हैं इतिहास के चरित्र
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1670 में मुहम्मद मुअज़्ज़म ने औरंगज़ेब का तख़्तापलट करने की योजना बनाई लेकिन मराठों ने योजना का भंडाफोड़ कर दिया

जैघम मुर्तजा

इतिहास पढ़ने के लिए मज़ेदार चीज़ है और लिखने की भी। इससे भी मज़ेदार हैं इतिहास के चरित्र। तारीख़ ने औरंगज़ेब को सबसे सख़्त मुग़ल लिखा है। अपनी आधी से ज़्यादा ज़िंदगी, दिल्ली का दो तिहाई ख़जाना और लाखों लोगों को मैदाने ज॔ग में झोंकने वाले बादशाह आलमगीर मुइनुद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब अपने बच्चों की तरबियत के लिए शायद कभी वक्त नहीं निकाल पाए। उनके पिता शाहजहां के ज़माने में जो साम्राज्य दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सैन्य शक्ति था उनके बेटों के ज़माने में औंधे मुंह पड़ा था। साम्राज्य को शक्ति देने वाले तमाम जनरल सामूगढ़ की जंग और इसके बाद निबट लिए और जो राजा साम्राज्य को ख़िराज देते थे वही दुश्मन बन गए।

ख़ैर, मुग़ल सल्तनत में औरंगज़ेब के सुपुत्र मुहम्मद मुअज़्ज़म उर्फ बहादुर शाह अव्वल मज़ेदार चरित्रों में से एक हैं। क्रम में मुहम्मद मुअज़्जम बादशाह आलमगीर मुइनुद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब के दस बच्चों में चौथे नंबर पर जन्मे। मुअज़्ज़म का जन्म 14 अक्टूबर 1643 को हुआ। राजपूत रानी रहमतुन्निसा बेगम ने औरंगज़ेब के दो बेटों को जन्म दिया इनमें औरंगज़ेब के सबसे बड़े बेटे मुहम्मद सुल्तान और तीसरे नंबर के मुहम्मद मुअज़्ज़म।

03 मार्च 1707 को सम्राट औरंगज़ेब की मौत के बाद मुहम्मद आज़म दिल्ली के तख़्त पर बैठे लेकिन तीन महीने भी शासन नहीं कर पाए। जाजऊ की जंग में मुहम्मद मुअज़्ज़म के ख़िलाफ लड़ते हुए औरंगज़ेब के वली अहद मुहम्मद आज़म अपने तीन बेटों के साथ मारे गए।

इसके बाद 19 जून 1707 को मुहम्मद मुअज़्ज़म बहादुर शाह की पदवी लेकर गद्दीनशीन हुए। मुहम्मद मुअज़्जम बहादुर तो थे मगर व्यवहार में अपने पिता औरंगज़ेब की ही तरह ख़ब्ती भी। औरंगज़ेब तो तमाम उम्र अपने इस बाग़ी बेटे से जूझना पड़ा। मानो उसमें शाहजहां की रूह आ गई थी जो आरमगीर सू बदला लेने पर आमादा थी।

1663 में औरंगाबाद पर शिवाजी के हमले के दौरान उन्होंने लड़ने से तक़रीबन मना कर दिया। इसके बाद नाराज़ औरंगज़ेब ने अपने सेनापति राजा जय सिंह को औरंगाबाद भेजा। जय सिंह शिवाजी को गिरफ्तार करके दिल्ली ले आए।

1670 में मुहम्मद मुअज़्ज़म ने औरंगज़ेब का तख़्तापलट करने की योजना बनाई लेकिन मराठों ने योजना का भंडाफोड़ कर दिया। औरंगज़ेब ने मुअज़्ज़म को दिल्ली बुलाकर अगले कुछ साल कड़ी निगरानी में रखा। 1680 में राजपूतों के साथ ग़लत बर्ताव का आरोप लगाते हुए मुअज़्ज़म ने फिर बग़ावत कर दी। औरंगज़ेब फिर से बेटे को मनाने में कामयाब रहे और फिर से कड़ी निगरानी में डाल दिया। अगले सात साल मुहम्मद मुअज़्ज़म पिता के आज्ञाकारी बेटे बनकर दिल्ली में रहे।

1681 में बादशाह औरंगज़ेब के चौथे बेटे और मुअज़्ज़म के सौतेले भाई मुहम्मद अकबर ने बाप के ख़िलाफ बग़ावत की। औरंगज़ेब ने बग़ावत कुचलने के लिए मुहम्मद मुअज़्ज़म को दक्षिण भेजा लेकिन मुअज़्ज़म ने बाप के हुक्म की अनदेखी की और अकबर को भाग जाने का मौक़ा दिया। 1687 में मुअज़्ज़म को गोलकुंडा पर हमला करने भेजा गया लेकिन शाही जासूसों ने कुछ ख़त पकड़ लिए। इनसे साबित हुआ कि मुअज़्ज़म ने गोलकुंडा के राजा अबुल हसन को बचने का रास्ता पहले ही बता दिया था। मुअज़्ज़म पर ग़द्दारी का आरोप लगा और जेल में डाल दिया गया। इसके बाद 1695 में औरंगज़ेब ने मुअज़्ज़म को माफ करके पंजाब भेज दिया।

राजा बनने के बाद मुअज़्ज़म ने सबसे पहले आंबेर,जोधपुर, उदयपुर की राजपूत रियासतों पर हमला किया। राजपूत राजाओं की बग़ावत के चलते उनके लिए मुअज़्ज़म की पूर्व की सहानुभूति अब ख़त्म हो चुकी थी। राजपूतों के बाद उन्होंने अपने बाग़ी भाई काम बख़्श को ठिकाने लगाया और फिर बाग़ी सिखों के ख़िलाफ अभियान छेड़ दिया।

उनके कारनामे यहीं ख़त्म नहीं होते। एक दिन उन्होंने ऐलान किया कि वो शिया हो गए हैं और आज से सारी शाही मस्जिदों में ख़ुत्बे के दौरान अली उन वली अल्लाह, वसी ए रसूल-अल्लाह (सअ) पढ़ा जाएगा। इस मसले पर लाहौर में हंगामा हो गया। सितंबर 1711 में मुहम्मद मुअज़्ज़म ख़ुद लाहौर गए और वहां तमाम सुन्नी मौलानाओं को इकट्ठा करके इमाम अली की फज़ीलत और वसी ए रसूल होने के पक्ष में तमाम दलील सुना डालीं। इस दौरान ख़बर मिली कि फसाद मस्जिद के मुख्य ख़तीब का बोया हुआ है। 2 अक्टूबर 1711 को मुहम्मद मुअज़्ज़म ने बादशाही मस्जिद के ख़तीब को गिरफ्तार करा लिया। हालांकि इसके बाद ख़ुत्बे से अली उन वली अल्लाह की अनिवार्यता ख़त्म कर दी गई। कुल मिलाकर मुहम्मद मुअज़्ज़म ने जीते जी अपने बाप का ख़ून पिए रखा और मरने के बाद वो तमाम काम किए जिनसे आलमगीर अपनी क़ब्र में भी बेचैनी से करवटें बदलते रहे होंगे।

जनवरी 1712 में लाहौर में ही बादशाह मुहम्मद मुअज़्ज़म की बीमारी से मौत हो गई। 11 अप्रैल को उनका जनाज़ा दिल्ली भेजा गया जहां उन्हें महरौली की मोती मस्जिद के आंगन में दफ्न कर दिया गया। लेकिन कहानी यहां ख़त्म नहीं है। बादशाह औरंगज़ेब के एक और सुपुत्र थे जिन्हें ज्योतिषियों ने बहका दिया कि वह मुहम्मद मुअज़्ज़म को हरा देंगे। उनका क्या हुआ और कैसे भारत की तारीख़ पर हज़रत आलमगीर औरंगज़ेब के इन बेटों की मूर्खतापूर्ण हरकतों का असर पड़ा इस सबके लिए पूरी किताब लिखनी पड़ेगी, एक पोस्ट से काम नहीं चलेगा :)

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