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- होटल अशोका" नेहरू जी...
होटल अशोका" नेहरू जी की बेशुमार उपलब्धियों में से एक थी'
"होटल अशोका" नेहरू जी की बेशुमार उपलब्धियों में से एक थी' लेकिन अब इसे भी "देश नही बिकने दूंगा" का वादा करने वाला सपनों का सौदागर बेचने जा रहें हैं, बस ऐसे ही इस बाजीगर का तमाशा देखिये, धीरे धीरे वह सब कुछ उनको बेच देगें, जिनके चुनावी चंदे से वह भारत भाग्य विधाता बना है।
होटल अशोका कैसे बना इसकी कहानी बड़ी ही सुंदर ढंग से Adwet Bahuguna जी ने लिखी है, आप भी इसे पढिये-
"आजादी के कुल आठ साल और कुल 5 साल का गणराज्यीय भारत"
कल्पना कीजिये तो- 1955 में यूनेस्को का 8वां शिखर सम्मेलन था, पं. नेहरू को सुनने के लिये पेरिस में बड़ी गहमागहमी थी, दुनिया के ताकतवर देशों में नेहरू को एक तिलस्माई नेता के रूप में देखा जाता था, हालांकि सम्पन्न देशों की कुटिलता भारत के संघीय लोकतंत्र को लेकर आशंकित रहती थी, उनकी नजरों में भारत बहुत लम्बे समय तक संघीय ढांचे को बरकरार नहीं रख सकने वाला था।
नेहरू का भाषण हुआ तो दूसरे दिन के फ़्रान्स के बड़े अखबार ने लिखा-"Chef intellectuel du pays pillé des Britanniques अंग्रेजों के लूटे हुए देश का बौद्धिक सम्पन्न नेता "
नेहरू ने यूनेस्को का 9वां सम्मेलन भारत में करने की पेशकश की, दो दिन तक कोई निर्णय नही हुआ, फिर हामी भर दी गयी, रूस के मित्रों ने नेहरू को बाद में बताया कि- 'ये हामी भारत की साख गिराने को भरी गयी है, भारत में यूनेस्को जैसी संस्था के आयोजन के लिये मानक के अनुरूप कुछ भी तय नहीं है, कैसे एक साल में कर लोगे? विश्व के प्रतिनिधियों के रहने, खाने लायक न 5 सितारा होटल सुविधा है और न पांच सितारा कान्फ्रेस हाल....।।
देश में मौजूद विरोधियों ने इसे नेहरू की लोजिस्टिकल भूल घोषित कर दिया।
नेहरू सुनते सबकी थे, वही हुआ भी' नेहरू ने हर खरी खोटी, भली बुरी सब सुनी, उसके बाद नेहरू देश के सबसे बेहतरीन तत्कालीन दो वास्तुकारों ई.बी.डॉक्टर और आर.ए.गहलोते को अपने पास बुलाया और मन का डिजाइन साझा कर दिया...।
वास्तुकारों ने कहा-आपके डिजाइन को साकार करने के लिये कम से कम 20 एकड़ जमीन और 2.5 करोड रूपये की दरकार पड़ेगी है जो' वर्तमान हालात में दूर की कौड़ी नजर आती है।
नेहरू ने उनकी बात सुनी और एक महीने बाद काम शुरू करने को कह दिया, अगले दिन नेहरू ने सुबह जम्मू कश्मीर के राजकुमार रीजेन्ट डा0 कर्ण सिंह को अपने पास बुलाया और अपना सपना साझा किया, राजकुमार ने 9 दिन में सारी फार्मेलिटी निपटा के अपनी 25 एकड़ पार्कलैंड भारत सरकार को दान कर दी, फिर नेहरू ने मित्र रघुनन्दन सरन जो कांग्रेस के आजाद हिन्द फौज सैनिक सहायता कोष के ट्स्टी थे' को बुलाया और बात साझा की, इसी ट्रस्ट के मित्रों ने यथा संभव भारत सरकार को नकद रूपये दान किये।
और फिर 10 महीने 28 दिन की मेहनत के बाद 1956 में कुल 3 करोड की लागत से भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का पहला पंच सितारा होटल "द अशोक " चाणक्यपुरी दिल्ली में खड़ा हो गया।
5 नवम्बर 1956 को जब नेहरू ने होटल अशोक के कान्फ्रेन्स हाल में UNESCO की दुनिया के अतिथियों का स्वागत किया तो अतिथियों की उंगलियां तो सबसे बडे पिलर लैस हाल में दांतों तले दबा ली थीं, किन्तु चैलेन्ज की मंशा से न्योता देने वाले कुटिल देशों के प्रतिनिधियों की आंखें फटी की फटी रह गयी थीं, क्योंकि आंखों का खून शर्म बन कर टपकने को उमड रहा था' लेकिन सामने नेहरू को देख कर शर्म को पीने के सिवा कोई चारा न था।
इस होटल में विकसित देशों के इतर और भी कुछ था जो उनकी कल्पना के भी परे था, वो था-बेहद अनुशासित डेकोरम और भारत के ग्रामीण अंचलों के स्वादिष्ट पौष्टक पारंपरिक व्यन्जन, जो कि उन्होंने अपने जीवन में पहली बार खाये थे।
भारत की जमीन को एक सम्प्रभु देश बनाने वाले निस्वार्थ दानियों, योजनाकरों और निस्वार्थ सेवकों की ये अनमोल गौरवशाली विरासत को आज,एक निक्कमा अनपढ़ व्यक्ति बेचने को टेंडर निकाल रहा है जिसकी खुद की न तो कोई विचारधारा है और न ही इसे बनाने में उसका कोई योगदान है।
उसे देश की हर धरोहर बेच कर उसे अपने लिये 8000 करोड का बोइंग खरीदना है, उसे देश की हर शैक्ष्रिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक धरोहरों से चिढ है, क्योंकि वो ऐसी किसी भी जगह जब जाता है तो खुद को बौना पाता है, इसलिये अपने बौनेपन को' अपने बौनों लोगों के बीच वो हर ऊंचे मानक को ढहा देना चाहता है, ताकि उस जैसे बौने से उंचा कोई दिखे ही नहीं।
लेकिन वो ये भूल जाता है कि "बौनापन आनुवंशिक बीमारी है, उपलब्धि नहीं"
देश की अस्मिता के प्रतीक होटल अशोक को बेचने का विरोध कीजिये !!