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बचपन में जलाने वाली लकड़ी का गट्ठर उठाने वाली मीराबाई चानू को कितना जानते हैं, आप ??
बायोग्राफी : साइखोम मीराबाई चानू
बचपन में जलाने वाली लकड़ी का गट्ठर उठाने से लेकर रियो ओलंपिक में गहरी निराशा और उसके बाद टोक्यो ओलंपिक -2020 में भारत के लिए 21 साल का वेटलिफ्टिंग में लंबा रिकॉर्ड तोड़ने वाली मीराबाई चानू का सफर बेहद शानदार रहा है। यह उनके संघर्ष और लगन की दास्तां बयां करता है। टोक्यो में भारत का वेटलिफ्टिंग में सूखा आज समाप्त हुआ।
कहा जाता है कि, चानू की प्रतिभा को सबसे पहले उनके भाई ने पहचाना। जब वे दोनों पास की पहाड़ियों पर जलाऊ लकड़ी के लिए जाते, तो मीराबाई लकड़ियों के कठ्ठर को बड़ी आसानी से उठा लेती थीं, जिसे उनका बड़ा भाई सनतोम्बा मैतेई भी नहीं उठा पाता था।
साल 2004 रहा होगा जब एथेंस में साथी मणिपुर की कुंजरानी देवी को प्रदर्शन करते देखा, तो उनके अंदर भी ज्वाला प्रज्जवलित हो गई। चानू भी कुंजरानी देवी बनना चाहती थीं।
उनके भाई सनतोम्बा ने 2017 में PTI से कहा, "उसमें हमेशा बड़ा हासिल करने का जुनून होता है। उसने खुद को कभी दबाव में नहीं आने दिया और हमेशा शांत रहती है, जो उसके गलती रहित लिफ्ट में स्पष्ट दिखता था।"
मीराबाई चानू ने स्कॉटलैंड में हुए 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलोग्राम भार वर्ग में रजत पदक जीतकर मिराबाई चानू ने 20 साल की उम्र में अंतर्रष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनायी थी, वेटलिफ्टर कुंजरानी देवी उनकी कोच थी। मीराबाई चानू की इस जीत से प्रसन्न होकर कुंजारानी देवी ने, मीराबाई को एक महान खिलाड़ी कहा था।
और बस यही उन्हें चाहिए था जहां से उनकी मेहनत का सफर शुरू हुआ। उसके बाद रियो 2016 ओलंपिक के लिए नेशनल ट्रायल में मीराबाई चानू ने सात बार की विश्व चैंपियनशिप पदक विजेता कुंजारानी देवी के 12 साल पुराने नेशनल रिकॉर्ड को तोड़ दिया था, कुंजारानी देवी एक वेटलिफ्टर रह चुकी थी। मीराबाई चानू से देश की आशा थी कि चयन ट्रायल में उनके कुल 192 किलोग्राम भार उठाने के रिकॉर्ड के साथ ही मीराबाई चानू से रियो ओलंपिक में पदक की उम्मीद लगाए जाने लगी, लेकिन 2016 में मीराबाई ने रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई तो किया परंतु इस ओलंपिक में इन्हें कोई भी पदक नहीं मिला।
मीराबाई बताती हैं कि यह वो दौर था, जब वह एक अवसाद से गुजरने लगी थी। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, जानू ने खुद को ऐसा महसूस नहीं होने दिया और इसी वर्ष चानू ने साउथ एशियन गेम्स जो कि गुवाहाटी में आयोजित हुए थे, में गोल्ड मेडल जीता। एक अवसाद से निकलने के बाद मीराबाई चानू ठीक से खड़ी होने लगी और वर्ष 2017 में वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में 48 किलोग्राम वर्ग में मीराबाई ने गोल्ड मेडल हासिल किया। वर्ष 2018 में चोट के चलते मीराबाई एशियन गेम्स में हिस्सा नहीं ले पाई थी, लेकिन 2018 मीराबाई के लिए गोल्डन साल साबित हुआ क्योंकि यह वह साल था जब मीराबाई को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया था। साथ ही 2018 में ही इन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा भारत का सर्वोच्च खेल अवॉर्ड राजीव गांधी खेल रत्न प्रदान किया गया था।
मीराबाई ने सन् 2021 में उज्बेकिस्तान के ताशकंद में एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक के साथ ओलंपिक वर्ष की शुरुआत की थी। मीराबाई ने पदक जीतने के बाद स्पोर्टस्टार को बताया कि, "मैं प्रशिक्षण के दौरान क्लीन एंड जर्क में 120 किग्रा तक लिफ्ट कर रही थी और शुरुआत में ही विश्व रिकॉर्ड बना लिया। यह एक बड़ी उपलब्धि है। विश्व रिकॉर्ड को फिर से लिखना कभी आसान नहीं होता। इसमें काफी मेहनत लगती है। इससे मुझे और आत्मविश्वास मिलेगा।"
और आज मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक 2020 में देश को पहला मेडल दिला दिया है। टोक्यो ओलंपिक में भारत वेटलिफ्टिंग में 21 साल से इंतजार कर रहा था लेकिन आज मीराबाई चानू ने रजत पदक जीतकर देश का खाता भी खोला दिया है। उन्होंने महिलाओं की 49 किग्रा वर्ग में क्लीन एंड जर्क में सिल्वर मेडल अपने नाम किया। ये गौरवान्वित पल तुम्हें हमेशा याद करेंगे, मीराबाई चानू !!
( संपादित अंश )