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मैं बनारस हूँ

मैं बनारस हूँ
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मन कहता है मन करता है

कुछ बनारस के नाम लिखूँ

इसे विद्या का मंदिर कह दूँ

या इसको तीरथ धाम लिखूँ

पानी में गंगाजल हूँ

और पत्थर में मै पारस हूँ

इस पावन धरती पर मै

पावन शहर बनारस हूँ

मैं गूगल की अडवाइस नहीं

बुजुर्गों की अनुभवी राय हूँ

मैं नहीं हॉट कॉफी लाते सी

मैं कुल्लहड वाली चाय हूँ

मै वैलेंटाइन का सेलिब्रेशन नहीं

करवा चौथ मनाने वाली हूँ

मै रोज बुके नहीं रोज डे का

मै पूजा के फूलों की थाली हूँ

विद्या धन पाने वालों के लिए

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय हूँ

भक्ति में श्रद्धा रखने के लिए

मै दुर्गाकुंड और शिवालय हूँ

संकट को हरने वाला

संकट मोचन का हनुमान हूँ मै

मर्यादा की राह बताने को

तुलसी मानस का राम हूँ मै

मैं शिव पार्वतीजी की धरती

मैं ही हूँ काशी विश्वनाथ

मै विंध्याचल का आँचल हूँ

मै बुद्ध जैनों की सारनाथ

मै मालवीय जी की शक्ति

मुंशी प्रेमचंद की कहानी हूँ

मै दोहा तुलसी दास की हूँ

मै ही कबीर की वाणी हूँ

मै हरीश चंद्र की सच्चाई

मानवता की गहराई हूँ

मै नहीं पॉप डिस्को म्यूज़िक

बिस्मिल्लाह की शहनाई हूँ

मै दशाश्वमेध की आरती हूँ

मै ही शामें अस्सी हूँ

मै कोई पेप्सी कोला नहीं

मै रामनगर की लस्सी हूँ

मै सुबह की राग भैरवी हूँ

और कल्याण थाट हूँ मै

मै मोक्ष मुक्ति का द्वार भी हूँ

हाँ मणिकर्णिका घाट हूँ मै

कुछ साल भी यहाँ रह कर जाओ

तुम्हारी यादें सदा यहाँ रहती हैं

लौट के फिर से आना तुम

यहाँ सारी गालियाँ कहती हैं

डाॅ. अजय कुमार मौर्य, सारनाथ, वाराणसी

अभिषेक श्रीवास्तव

अभिषेक श्रीवास्तव

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