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अरविंद जयतिलक
जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की दो दिवसीय भारत यात्रा कई मायने में महत्वपूर्ण है। यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब रुस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है और अमेरिका रुस के खिलाफ वैश्विक गोलबंदी में जुटा हुआ है। रुस के मसले पर पश्चिमी देश अमेरिका के साथ हैं वहीं भारत तटस्थता का रुख अपनाए हुए है। चूंकि जापान अमेरिका का भरोसेमंद साथी है लिहाजा ऐसे वक्त में जापानी प्रधानमंत्री का भारत आना ढे़र सारे निहितार्थों को समेटे हुए है। अच्छी बात है कि वैश्विक गोलबंदी के परिप्रेक्ष्य में भारत और जापान के बीच सामरिक प्रतिबद्धता समेत अन्य किसी मसले पर तनाव नहीं है। यहीं वजह है कि दोनों देशों के बीच संबंधों के नित-नए आयाम गढ़े-बुने जा रहे हैं। दोनों सदाबहार दोस्तों ने साइबर सुरक्षा, सतत शहरी विकास अपशिष्ट जल प्रबंधन, बागवानी, स्वास्थ्य, जैव विविधता समेत आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग के क्षेत्र में मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जता दोस्ती के रंग को चटक कर दिया है। दोनों देशों ने कनेक्टिविटी, हेल्थकेयर इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के निमित्त सात ऋण करार पर भी मुहर लगाई है। इसके अलावा हिंद-प्रशांत क्षेत्र, लद्दाख में एलएसी के हालात, सैन्य जमावड़ा एवं सीमा संबंधी मसले पर चीन के मौजूदा रुख को लेकर भी दोनों देश एक समान विचारों पर अडिग हंै।
वार्षिक सम्मेलनों के जरिए दोनों देश हर बार प्रगति के नए बीज रोपते हैं और उससे निकलने वाली कपोंले संबंधों को मिठास से भर देती है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा वार्षिक सम्मेलन चार वर्ष बाद हुआ है। इससे पहले यह सम्मेलन अक्टुबर 2018 में टोक्यो में हुआ था। 2019 में असम में प्रस्तावित वार्षिक सम्मेलन इसलिए रद्द करना पड़ा था कि सीएए को लेकर प्रदर्शन चल रहा था। वर्ष 2020 और वर्ष 2021 में कोरोना महामारी के कारण् वार्षिक सम्मेलन संभव नहीं हो सका। उम्मीद है कि मौजूदा वार्षिक सम्मेलन से दोनों देशों के बीच आर्थिक-सामरिक साझेदारी मजबूत होगी और वैश्विक फलक पर दोनों देश कंधा जोड़ते दिखेंगे। वैसे भी ध्यान दें तो दोनों देश एशिया में चीन की बढ़ती दबंगई से परेशान हैं और उससे निपटने के लिए कई तरह के समझौतों को आकार दिए हैं। अभी गत वर्ष पहले ही दोनों देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में म्यूचुअल लाॅजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट को परवान चढ़ा अपने मंतव्य को जाहिर कर दिया है।
यह भी किसी से छिपा नहीं है कि सेनकाकू द्वीप को लेकर चीन और जापान के बीच तनातनी है। चीन सेनकाकू द्वीप पर अधिकार चाहता है वहीं जापान के तेवर कड़े हंै। इसके अलावा पूर्वी चीन सागर में भी विवादित द्वीपों के उपर एक हवाई क्षेत्र बनाए जाने के बीजिंग के एकपक्षीय कदम को लेकर जापन ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया हैं। अच्छी बात यह है कि इन मुद्दो पर भारत जापान के साथ है और भारत-चीन विवादित मसलों पर जापान भी भारत के साथ है। याद होगा गत वर्ष पहले डोकलाम विवाद पर जापान ने खुले तौर पर भारत का पक्ष लेते हुए कहा था कि चीन डोकलाम की वास्तविक स्थिति को एकतरफा बदलने की कोशिश कर रहा है, जो कि गलत है। ध्यान दें तो कुछ वर्षों के दरम्यान भारत एवं जापान के बीच रक्षा-सुरक्षा रणनीतिक समझौता मजबूत हुआ है। अभी गत वर्ष पहले ही जापान ने भारत के साथ एटमी करार को आकार दिया। चीन को यह समझौता रास नहीं आया। गौर करें तो भारत ऐसा पहला देश है जिसने एनपीटी (परमाणु हथियार अप्रसार संधि) पर हस्ताक्षर नहीं किया, के बावजूद भी जापान ने उसके साथ समझौता किया है।
उल्लेखनीय है कि 1998 में भारत ने पोखरण परमाणु परीक्षण को अंजाम दिया तब भारत पर आर्थिक और तकनीकी प्रतिबंध थोपने वाले देशों में जापान भी शामिल था। भारत द्वारा कालेधन के विरुद्ध छेड़े गए वैश्विक अभियान में सहयोग करते हुए जापान द्वारा दोहरा कराधान बचाव संधि (डीटीएए) में संशोधन की भी हामी भरा जा चुका है। इसके अलावा दोनों देशों के बीच साझा विजन डाॅक्यूमेंट 2025 के अंतर्गत कई अहम समझौते हो चुके हैं। जापान द्वारा भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट के लिए सवा तीन अरब के स्पेशल फंड बनाने का वादा किया जा चुका है। जापान का भारत की रेल परियोजनाओं में भी जबरदस्त दिलचस्पी है। इस दिलचस्पी के कारण ही उसने गत वर्ष भारत को बुलेट टेªन परियोजना के लिए 88 हजार करोड़ रुपए के ऋण को महज 0.1 प्रतिशत ब्याज दर पर देने का एलान किया। इस ऋण को 50 वर्षों में चुकाना होगा और इसकी अदायगी 15 साल बाद शुरु होगी। बुलेट टेªन के अलावा दोनों देशों के बीच पहले और भी कई अहम समझौते हो चुके हैं जिनमें आपदा प्रबंधन, कौशल विकास, जापानी भाषा की शिक्षा, उत्तर-पूर्वी हिस्से की परियोजनाओं का संवर्द्धन इत्यादि शामिल हैं। जापान गुजरात के मंडल बेचराज-खोरज क्षेत्र में बुनियादी विकास कार्यक्रम में सहयोग, एकदूसरे के शहरों को वायुमार्ग से जोड़ने, शोध क्षमता और शोध निष्कर्षों की प्रभावशीलता बढ़ाने पर भी अपनी प्रतिबद्धता जता चुका है। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि दोनों देशों की दोस्ती अर्थव्यवस्था, निवेश व विकास को गति देने तक ही सीमित नहीं है बल्कि मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में यह दोस्ती कुटनीतिक व भू-रणनीतिक संदर्भों को भी समेटे हुए है। कुटनीतिक पहलू पर नजर डालें तो भारत और जापान के साथ आने से भारत की पूर्वोंन्मुख नीति को नई धार मिली है।
शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद से ही भारत की पूर्वोन्मुख नीति उसकी विदेशनीति की महत्वपूर्ण आधार रही है। जापान, मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, वियतनाम और फिलीपींस के साथ उसके मजबूत संबंध वैश्विक जगत में संजीवनी का काम करते रहे हैं। कहा भी जाता है कि भारत का श्रम और बुद्धि बल तथा जापान की पूंजी और तकनीकी मिलकर दक्षिण एशिया में शांति और समृद्धि का वातावरण निर्मित कर सकती है। लेकिन चीन को यह दोस्ती रास नहीं आ रही है। वह इस दोस्ती को अपनी सुरक्षा व अर्थव्यवस्था के लिए खतरा मान रहा है। वह नहीं चाहता कि भारत व जापान एक मंच पर आएं और उनके बीच आर्थिक-सामरिक साझेदारी मजबूत हो। एक कहावत है कि शत्रु का शत्रु मित्र होता है। ऐसे में अगर भारत और जापान के बीच निकटता बढ़ती है तो फिर चीन की बौखलाना लाजिमी है। आज दक्षिण एशिया के अधिकांश देश मसलन फिलीपींस, लाओस, थाईलैंड और कंबोडिया सभी चीन की विस्तारवादी नीति से नाराज हैं। भारत और जापान के संबंधों की पड़ताल करें तो दोनों देशों का सभ्यतागत संबंध 1400 साल पुराना है। कारोबारी लिहाज से संपूर्ण दक्षिण एशिया में जापान सबसे बड़ा दाता और भारत सर्वाधिक जापानी आधिकारिक विकास यहायता यानी ओडीए प्राप्त करने वाला देश है। जापान भारत को 1986 से ही अनुदान देता आ रहा है। जापानी ओडीए भारत के त्वरित आर्थिक विकास प्रयत्नों विशेषकर उर्जा, पारगमन, पर्यावरण और मानवीय जरुरतों के जुड़ी परियोजनाओं को सहायता प्रदान करता है।
भारत की सभी मेट्रो रेल परियोजनाएं भी जापानी आधिकारिक विकास सहायता की ही घटक हैं। जापान भारत के दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा में भी भागीदार है। यह गलियारा 90 अरब डाॅलर की एक वृहत आधारिक संरचना परियोजना है जो जापान के वित्तीय और तकनीकी सहयोग से फलीभूत हो रहा है। दिसंबर 2006 में इस परियोजना के एमओयू पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किया। 2011 में इस परियोजना के क्रियान्वयन हेतु मंत्रिमंडल ने दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा विकास निगम ने 18500 करोड़ रुपए की मंजूरी प्रदान की। इस पर काम तेजी से हो रहा है। गौरतलब है कि समर्पित मालभाड़ा गलियारा यानी डेडिकेटेड फ्रेट काॅरिडोर भी जापान द्वारा वित्तपोषित है। यह गलियारा भारतीय रेलवे की एक महत्वकांक्षी परियोजना है जो देश के दो सबसे व्यस्त मार्गों पश्चिमी गलियारा व पूर्वी गलियारा के परिवहन आवश्यकताओं को अगले 20 वर्षों में पूरा करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहा है। दिसंबर 2009 में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने इस गलियारे के निर्माण पर अपनी प्रतिबद्धता जताया। इस परियोजना में पश्चिमी गलियारा के निर्माण हेतु जापान ने 'आर्थिक भागीदारी की विशेष शर्तें' के तहत ओडीए कर्ज के द्वारा इनके वित्त पोषण को स्वीकार किया। दोनों देशों की कंपनियां एकदूसरे की अर्थव्यवस्था को ताकत दे रही हैं। सच कहें तो दोनों देश दोस्ती की नई इबारत लिख रहे हैं।