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इन गलियों से बेदाग़ गुजर जाता तो अच्छा था : कुँवर नारायण

Desk Editor
18 Sept 2021 4:23 PM IST
इन गलियों से बेदाग़ गुजर जाता तो अच्छा था : कुँवर नारायण
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1) जख़्म

इन गलियों से

बेदाग़ गुजर जाता तो अच्छा था

और अगर

दाग ही लगना था तो फिर

कपड़ों पर मासूम रक्त के छींटे नहीं

आत्मा पर

किसी बहुत बड़े प्यार का जख़्म होता

जो कभी न भरता


2) एक अजीब दिन

आज सारे दिन बाहर घूमता रहा

और कोई दुर्घटना नहीं हुई

आज सारे दिन लोगों से मिलता रहा

और कहीं अपमानित नहीं हुआ

आज सारे दिन सच बोलता रहा

और किसी ने बुरा न माना

आज सबका यकीन किया

और कहीं धोखा नहीं खाया

और सबसे बड़ा चमत्कार तो यह

कि घर लौट कर मैंने किसी और को नहीं

अपने को ही लौटा हुआ पाया


3) मेरे दुःख

मेरे दुःख अब मुझे चौकाते नहीं

उनका एक रिश्ता बन गया है

दूसरों के दुखों से

विचित्र समन्वय है यह

कि अब मुझे दुःस्वप्नों से अधिक

जीवन का यथार्थ विचलित करता है

अखबार पढ़ते हुए घबराहट होती-

शहरों में बस्तियों में

रोज यही हादसा होता-

कि कोई आदमखोर निकलता

माँ के बगल में सोयी बच्ची को

उठा ले जाता –

और सुबह-सुबह जो पढ़ रहा हूँ

वह उस हादसे की खबर नहीं

उसके अवशेष हैं।

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