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जमालपुर कारखाना को निर्माण कारखाना का दर्जा के सवाल पर होगा आंदोलन
कुमार कृष्णन
आजादी के बाद बिहार की गिनती देश के सबसे बेहतर प्रशासित राज्य के रूप में होती थी, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, यह विकास के सभी मानकों पर देश के बाकी राज्यों से पीछे छूटता चला गया।बिहार का अंतिम पायदान पर रहना मानो उसकी नियति बन गई है। शायद यही कारण है कि हाल में नीति आयोग की नई रिपोर्ट ने न किसी को चौंकाया, न ही प्रदेश के बाहर किसी ने इस पर कोई सवाल उठाया।
हम मुंगेर प्रमंडल की बात करे तों इसका एक हिस्सा जमालपुर है। यहां का औद्योगिक परिदृश्य एक समय ऐसा भी था कि इस क्षेत्र को बंगाल के बर्मिंघम (इंग्लैंड में उद्योगों के लिए मशहूर शहर) के रूप में जाना जाता था। यह बात बिहार-बंगाल विभाजन से पहले की है। एशिया का सबसे बड़ा रेलवे वर्कशॉप (जमालपुर रेल कारखाना) भी इस शहर के औद्योगिक रूप से मजबूत होने की कहानी बयां करती है। अंग्रेजों ने देश में पहली रेल लोकोमोटिव कार्यशाला खोलने के लिए मुंगेर जिले के जमालपुर को चुना क्योंकि यहां दक्ष कारीगर थे।
इस कारखाने में काम करने पूरे देश से लोग आए और खास मिश्रित संस्कृति के आधार जमालपुर विकसित हुआ।
इतिहासकार मानते हैं कि जमालपुर का वजूद पहले भी रहा होगा, लेकिन आधुनिक शहर के रूप में जमालपुर की शुरुआत कारखाने के साथ ही हुई। ईस्ट कॉलोनी के रूप में रेलवे के अंग्रेज साहबों के लिए यूरोपीय मानक के साथ शहर बसाया गया। जिले के गजेटियर में दर्ज है। रेलवे लाइन की दूसरी तरफ मजदूरों और छोटे बाबुओं के लिए रामपुर कॉलोनी, दौलतपुर कालोनी बसाई गई।
8 फरवरी 1862 को स्थापित जमालपुर रेल इंजन कारखाना का नाम भारत के पहले और एशिया का सबसे विशालतम रेल कारखाना में शुमार है। 159 वर्षों के अपने अतीत से ले कर आज तक रेलवे का जो कार्य इसे सौंपा गया उसे इसने बेहतर ढंग से पूरा करते हुए और अपना एक अलग अंतर्राष्ट्रीय मापदंड स्थपित किया है। जमालपुर रेल कारखाना पूर्व रेलवे के मालदा मंडल के अधीनस्थ है।
इस कारखाना की स्थापना उस दौर में हुई जब ब्रिटिश हुकूमत ने गुलाम हिन्दुस्तान में अपने व्यापार को बढ़ाने के दौरान सुलभ साधन के रूप में इंजन वाली ट्रेन को भारत में चलाना शुरू किया था। 1890 तक कारखाना 50 एकड़ के दायरे में था। इसमें 3122 मजदूर कार्यरत थे। 1896-97 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी का काम तेजी से फैला तो पहली बार विस्तारीकरण की गई। शेड विहीन शॉपों को शेड और आधुनिक मशीनों से लैस किया गया। धीरे-धीरे कारखाने का विस्तार होता गया और 1893 में प्रथम रेल फाउंड्री स्थापित की गई थी।
1899 से 1923 तक 216 वाष्प इंजन निर्माण, जमालपुर कारखाना में पहली बार उच्च क्षमता वाले इलेक्ट्रिक जैक, टिकट प्रिंटिंग, टिकट चॉपिंग, टिकट स्लाइडिंग और टिकट काउंटिंग की मशीन निर्माण किया गया था। ढ़लाई द्वारा इस्पात के उत्पादन के लिए निर्मित 1/2 टन क्षमता वाली विधुत अर्क भट्टी का निर्माण 1961 में पहली बार हुआ था। प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में गोला बारूद सहित हथियारों का भी निर्माण यहाँ सुरक्षित किया गया था। यह कारखाना भारतीय रेल का अकेला क्रेन निर्माता है। 1960 में कम क्षमता वाली वाष्प क्रेन निर्माण शुरू किया।
रेल कारखाना जमालपुर ही देश का पहला और एक मात्र कारखाना है, जहां 140 टन एआरटी क्रेन का निर्माण रेलवे के लिए आज भी किया जाता है। देश के विभिन्न कारखानों को 140 टन के उन्नत क्रेन उपलब्ध कराते हुए क्रेन के कार्य स्थल पर ही इसका मेंटेनेंस 140 टन क्षमता वाले ब्रेकडाउन रेल क्रेन दुर्घटना सहित अन्य निर्माण कार्यों में अहम भूमिका निभा रहा हैं। यह दुर्घटना राहत ट्रेन का अभिन्ना अंग भी है। आधुनिकीकरण के दौर में दुर्घटना में क्षतिग्रस्त भारी माल वाहक वैगन, भारी इंजिन को ट्रैक से हटाने में सक्षम व दुर्घटना स्थल पर शीघ्र गति से पहुंचने की क्षमता भी इसमें है।
रेल इंजन कारखाना जमालपुर के कर्मियों द्वारा पहली बार आईसीएफ कोच एवं एलएचबी कोच के लिए 35 टन यूनिवर्सल जमालपुर जैक का निर्माण कर एक नई उपलब्धि हासिल की।
कुशल कारीगरों के दम पर एशिया का सबसे बड़ा रेल कारखाना का दर्जा हासिल करने वाले रेल कारखाना जमालपुर ने भारतीय रेल को कई अन्य उपलब्धियां भी दिलाई। जमालपुर रेल कारखाना पूर्वी भारत के पहले रेल कारखाने की सूची में आ गया है। देश में इसका तीसरा स्थान है। मालगाड़ी के वैगन (डिब्बे) मरम्मत में पश्चिम बंगाल के तीनों कारखानों को इसने पीछे छोड़ कर यह स्थान प्राप्त किया है। पूर्व रेलवे अपने इस लोकोमोटिव कारखाना की उल्लेखनीय उपलब्धि पर गौरवान्वित है।
मौजूदा समय में मालगाड़ी के वैगन (डिब्बे) मरम्मत में पश्चिम बंगाल के तीनों कारखानों को इसने पीछे छोड़ कर यह स्थान प्राप्त किया है। रेलवे को ऊंचाई पर ले जाने वाला यह कारखाना आज वर्कलोड, मैन पावर एवं अपने क्षेत्र के विकास के नाम पर पिछड़ता दिख रहा है।
वर्तमान में जमालपुर में स्थापित रेलवे का एक संयंत्र डीजल शेड के अलावा रेल कारखाना स्थित मिल राइट्स शॉप, ढलाई घर, चक्का घर, डीजल पीओएच सहित कई प्रमुख इकाइयां आज या तो बंद हो चुकी है या तो बंद होने की कगार पर है। आज रेल कारखाना जमालपुर में कार्यरत अधिकारियों की कुल संख्या बाईस हजार से घटकर सात हजार तक सिमट कर रह गई है। समय-समय पर जमालपुर के सवाल पर अनेक जनसंगठनों ने आंदोलन किए लेकिन स्थिति में कोई खास अंतर नहीं आया है।
जमालपुर रेल कारखाना के सवाल को स्थानीय सांसद राजीव रंजन सिंह ललन ने लोक सभा में भी उठाया। उनका कहना था कि रेलवे के विद्युतीकरण के कारण अब ज्यादा मात्रा में विद्युत इंजनों का उपयोग किया जा रहा है। जमालपुर में डीजल लोको कारखाना है और इसके आसपास में कई हजार एकड़ में आधारभूत संरचना है। विद्युत इंजनों का उपयोग बढ़ने से डीजल लोको कारखाने पर चरणबद्ध तरीके से
बंद होने का संकट उत्पन्न हो गया है जहां चरणबद्ध तरीके से कर्मचारियों का तबादला किया जा रहा है। इसका परिणाम यह निकला कि रेल मंत्री ने आश्वस्त किया कि डीजल शेड के इलेक्ट्रिक शेड में तब्दील किया जाएगा।
मेंस यूनियन ओपन लाइन शाखा जमालपुर के सचिव केडी यादव डीजल शेड जमालपुर में विद्युत लोको के अनुरक्षण को लेकर किसी तरह की आधारभूत संरचना में बदलाव नहीं दिख रहा है और न ही अभी तक उपरोक्त कार्य के लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इससे यहां के कर्मचारियों में भ्रम व भय की स्थिति उत्पन्न हो रही है कि सचमुच में डीजल शेड जमालपुर को विद्युत लोगों के अनुरक्षण का कार्यभार मिलेगा या नहीं, कब तक कितने विद्युत लोगों के अनुरक्षण का कार्यभार मिलेगा।
जमालपुर के लोग इंतजार में हैं कि आखिर कब तक बदलेगी सूरत?
जमालपुर कारखाना को निर्माण कारखाना का दर्जा, रेलवे विवि की स्थापना, स्टेशन का वाई लेग तक विस्तार, रेलवे अस्पताल को एम्स का दर्जा, डीजल शेड को इलेक्ट्रिक शेड में तब्दील, कारखाना में मेन पावर बढ़ाने सहित रेल से जुड़े सवालों को लेकर वर्षो से संघर्ष कर रहे हैं जमालपुर रेल निर्माण कारखाना संघर्ष मोर्चा की बैठक माले के वरिष्ठ नेता अशोक कुमार की अध्यक्षता में हुई बैठक में कारखाना के विकास, भ्रष्ट अधिकारियों पर लगाम, तबादला व आउटसोर्स जैसे बिदुओं पर विचार रखा गया। इन्होंने कहा कि रेल कारखाना के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगा है, इसके लिए निश्चित रूप से बड़ी लड़ाई की जरूरत है। सीपीआइ के जिला सचिव दिलीप कुमार व बसपा के जिलाध्यक्ष कपिलदेव दास ने कहा कि कारखाना के खिलाफ चल रहे षडयंत्र को बर्दाशत नहीं किया जाएगा। संचालन करते हुए जदयू के वरीय नेता सह मोर्चा के संयोजक कन्हैया सिंह ने कहा कि संघर्ष के बाद जमालपुर कारखाना को इलेक्ट्रिक का कार्यभार मिला।
पूर्व रेलवे के जीएम और सीडब्ल्यूएम ने मेमो शेड को लिलुआ शिफ्ट कर लोगों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है। जाप जिलाध्यक्ष पप्पी कुमार उर्फ पप्पू यादव, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शकील अहमद, लोजपा के जिला महासचिव कृष्णानंद राउत, एनसीपी के प्रवक्ता नौशाद उस्मानी ने भी कहा कि जमालपुर में लूट-खसोट चल रहा है। मोर्चा के संयोजक सह सपा जिलध्यक्ष पप्पू यादव ने कहा कि जमालपुर कारखाना में वर्तमान में वर्क लोड की कमी नहीं है, लेकिन मेन पावर का अभाव है। वैगन, पीओएच हो या फिर जमालपुर जैक का निर्माण ठेकेदारों के मजदूर से कराया जा रहा है। जमालपुर कारखाना की साख गिर रही है। हजारों प्रशिक्षित अप्रेंटिस ज्वाइनिग के लिए वाट जोह रहे हैं। रेलवे आउटसोर्स मजदूर की जगह प्रशिक्षित अप्रेंटिस से काम ले रही है। आठ फरवरी को रेल से जुड़े विकास के सवाल को लेकर मोर्चा के नेता 10 किमी की पदयात्रा निकालकर जिलाधिकारी को ज्ञापन सौपेंगा। बैठक में सपा महासचिव मिथलेश यादव, सचिव नकुल यादव, एनसीपी से मु. पप्पू रवीश यादव, वाकिफ हुसैन,मु.सफिक सहित कई लोगों ने हिस्सा लिया।