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पत्रकारिता में आना है तो जरूर पढ़ें ब्रजेश राजपूत की "ऑफ द स्क्रीन"
वह बारिश की रात थी, अच्छी तेज बारिश हो रही थी. उस दिन मैंने "ऑफ द स्क्रीन" पढ़ना शुरू किया, जो मुझे मेरे सीनियर द्वारा बताई गई थी. किताब की पहली स्टोरी "हरदा से आई हादसे की खबर" में मेरे शहर के नाम का जिक्र हुआ "खंडवा" जी हां मैं खंडवा की रहने वाली हूं. उन 5 पृष्ठों की इस खबर में न जाने कहां से कहां रिपोर्टर्स को पहुंचना होता है, रिपोर्ट बनाने के लिए यह तब पता चला।
उनकी चिंता, निराशा, हर पल हालात बदलते रहे.स्टोरी पढ़ने के पहले पृष्ठ पर ही राजदीप सरदेसाई ने कहा था कि ब्रजेश के लेखों को पढ़ते हुए आप देखते हैं और महसूस करते हैं और असल में भी वही हुआ. इन खबरों को पढ़कर मेरी उत्सुकता बढ़ती ही चली जा रही थी कि मैंने कब इस किताब को 13 दिनों में पढ़ कर खत्म कर दिया पता ही नहीं चला.
उत्तराखंड की बाढ़ में मुझे लगा कैमरामैन होमेंद्र भला कैसे वापस लौटेंगे? मेरा डर खबर के हर शब्द के साथ बढ़ता जा रहा था, वह ब्रजेश सर की भूतों से मुलाकात में कभी नहीं भूलूंगी, ब्रजेश सर की पत्रकारिता का पहला पाठ अब मैंने भी सीख लिया.
ब्रजेश राजपूत अपने शब्दों से माहौल बनाना जानते हैं, किताब के माध्यम से मैंने जाना कि टीवी पर रिपोर्टिंग देखना जितना आसान लगता है उतना है नहीं. मैं भी एक पत्रकारिता की छात्रा हूं पर अब समझ आया असली रिपोर्टिंग कॉलेज की पढ़ाई से काफी अलग है. यहां कभी-कभी सम्मानित होते हैं तो कभी-कभी अपमानित भी होना पड़ता है.
एक लेख याद आया "टीवी में नॉन न्यूज़ भी न्यूज़ होती है जरा समझा करो" पढ़कर समझ आया कि कैसे एक ना खबर भी लोगों की डिमांड बन जाती है. "शेहला मसूद" के जाने का दुख अभी होता है कि अच्छे रिपोर्टर्स लोगों को सब क्यों ना पसंद करते हैं.
किताब में नर्मदा से तेरते शिवराज सिंह चौहान, वही रेप केस की घटना, वह फटी टी-शर्ट वाले 'महाराजा' ज्योतिरादित्य सिंधिया, वह रोंगटे खड़े कर देने वाली चुनावी मुठभेड़, यह सब चुनावी किस्से हैं तो वहीं रोमांचक यात्राएं भी हैं.
एक और किस्सा "जब नए साल की खुशियां हुई काफूर" ब्रजेश सर छुट्टी लेकर परिवार के साथ बांधवगढ़ तो गए परंतु दफ्तर के एक फोन ने उनकी छुट्टी बर्बाद कर दी, आखिरकार सर ने अपनी पहली प्राथमिकता पत्रकारिता को दी. वैसे मुझे अभी तक समझ नहीं आया पेट में बोतल आई कहां से?
ब्रजेश सर की कहानियों को मैंने ना केवल महसूस किया साथ ही काफी कुछ सीखा. टीवी रिपोर्टिंग की कहानियां सच में आज भी "ऑफ द स्क्रीन" ही है. मेरी सलाह है यदि आप टीवी देखते हो या नहीं भी इसे एक बार जरूर पढ़ें.
दिल से आभार ब्रजेश सर आप हमारे लिए आदर्श है.
निशा केशवानी (छात्रा, पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर)